मोदीजी अगर जाति जनगणना के पक्ष में होते तो 2021 का जनगणना नहीं टाला जाता। कोरोनाकाल का बहाना बनाकर जनगणना टाल दिया पर रैलियां और चुनाव होते रहे। बिहार में जाति जनगणना का मुद्दा लालूजी ने उठाया। बाद में तेजस्वीजी ने उठाया जिसे सभी दलों का समर्थन मिला। बिहार से सर्वदलीय शिष्टमंडल प्रधानमंत्री मोदी जी से मिला भी। भाजपा सरकार ने बिहार की इस मांग को ठंढे बस्ते में डाल दिया। तब बिहार में नीतीश और तेजस्वी की सरकार ने जातिगत सर्वेक्षण का फैसला लेकर सर्वेक्षण कराया और आरक्षण बढाकर 65% प्रतिशत किया जिसे भाजपा ने उच्च न्यायालय में चुनौती देकर स्टे करवाया जिसके खिलाफ  नीतीश तेजस्वी की सरकार उच्चतम न्यायालय में चुनौती दी। यहां भी भाजपा ने प्रतिशपथ पत्र दाखिल किया। उच्चतम न्यायालय ने सर्वेक्षण पर रोक लगाने से इंकार कर दिया। इसप्रकार बिहार की नीतीश तेजस्वी की सरकार ने पहले जातिगत सर्वेक्षण कराकर 2023 में ही आंकड़े प्रकाशित कर दिया। बाद में लोकसभा चुनाव में महागठबंधन ने जातिगत जनगणना को राष्ट्रीय मुद्दा बनाया। अतः भाजपा इसका श्रेय लेने का हकदार कतई नहीं है। बल्कि भाजपा सरकार ने जनगणना में पांच साल बिलंब कर देश के विकास  के मार्ग में अपूरणीय क्षति पहुंचायी है।

जहांतक पांच साल बाद में मोदी सरकार ने जातिगत जनगणना कराने का फैसला लेने के लिये विवश क्यों हुआ,  इस पर विचार करने की जरूरत है।

भाजपा में अध्यक्ष के चुनाव को लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और भाजपा के बीच चल रही अंदरुनी कलह, बक्फ संशोधन कानून पर नीतीश और नायडू के साथ देने से मुसलमान नेता ओं की बगाबत और जदयू छोड़कर महागठबंधन में आने से अल्पसंख्यक मतों के विभाजन में  नीतीश की संदर्भ हीनता, बक्फबोर्ड संशोधन कानून पर उच्चतम न्यायालय का अंतरिम आदेश से भाजपा की साजिश की विफलता और ऊरी, पाठानकोट, बालाकोट, पुलवामा और पहलगांव पर हुए  आतंकवाद पर भाजपा सरकार की नाकामयाबी के बाद  डेमेज कंट्रोल के लिए जातिगत गणना का निर्णय भाजपा की विवशता ही झलकती है। बिहार  की जनता सब समझती है। अगर भाजपा की नियत साफ होती तो 2021 में ही जातिगत जनगणना कराकर लगभग पांच साल की राष्ट्रीय अपूरणीय क्षति होने से रोकती और बिहार के 65% आरक्षण को अनुसूची 9 के तहत तमिलनाडू की तरह विशेषाधिकार देकर आरक्षण बरकरार रखती। नीतीश, चिराग,  मांझी जी अगर सत्ता लोभ के बजाय  बिहार के बहुजन का हित सोचते तो भाजपा सरकार बाध्य होकर संविधान के अनुच्छेद 9 के अनुसार बिहार  को बिशेषाधिकार दिलाकर बिहार की जनता के साथ खड़े होते। जनता मालिक सब जानती है। फैसला आगामी चुनाव  में अवश्य करेगी।

अगर लोकतंत्रात्मक सरकारें अंतिम कतार के लोगों को विकास की मुख्य धारा में शामिल कर समतामूलक समाज बनायी होती तो न तो आरक्षण की जरूरत होती और न जातिगत जनगणना की जरूरत होती। बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर ने तो जाति उच्छेद किताब ही लिख दिया और  जाति को शोषण का मूल कारण बताया। इसीलिए आज सकारात्मक अवसर देने के लिए जातिगत जनगणना जरूरी प्रायश्चित है। क्योंकि, अगर जातिगत जनगणना होगी तो पिछले कतार में खड़े गरीबों की असलियत सामने आती कि आजादी के सात दशक बाद भी उन्हें विकास की मुख्य धारा में शामिल नहीं होनेवाली  वास्तविक स्थिति कैसी है। उन्हें मुख्य धारा में शामिल करने के लिये किन संकेतों पर काम करने की योजना बनाने की जरूरत है। स्मरण रहे कि समाज में अमन चैन तब ही सम्भव है जब सभी तबका खुशहाल रहे। साथ ही यह भी जरूरी है कि निजीकरण को नकार कर सार्वजनिक क्षेत्र को सुदृढ बनाया जाय जिससे रोजगार परक अवसर बढें। महज आरक्षण बढाकर भी लाभ नहीं दिया जा सकता अगर रोजगारपरक विकास का जोर न हो। दुर्भाग्यवश भाजपा हो या तथाकथित समाजवादी या कांग्रेस, सभी निजीकरण के पक्षधर हैं। ऐसे में आरक्षण का लाभ भी नहीं मिल सकेगा। इसलिए बुनियादी सबालों पर जनता को गोलबंद करना आवश्यक है। अन्यथा अवसरवाद के संसदीय राजनीति के दलदल में जनता की हालात बदतर से बदतर ही होगी।

 

By Editor