दो मॉडल : तेजस्वी और अखिलेश की राहें हुईं जुदा
हिंदी पट्टी के दो उभरते नेता तेजस्वी यादव और अखिलेश यादव पर सबकी नजरें थीं। अब फाइनली दोनों की राहें जुदा हो गई हैं। क्या होगा दोनों का भविष्य?
कुमार अनिल
देश की राजनीति को बिहार और यूपी दिशा देते रहे हैं। बिहार के तेजस्वी यादव और यूपी के अखिलेश यादव पर पर सबकी नजरें थीं। तेजस्वी अपने परिवार पर केंद्रीय एजेंसियों की छापेमारी से डरे नहीं, बल्कि रोज गरजते हुए विरोध में खड़े हैं। उन्हें खुद भी सीबीआई के दफ्तर में 25 को हाजिर होना है, इसके बावजूद शनिवार को उन्होंने सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को निशाने पर लेते हुए कहा कि गुजरात के जालसाज किरन पटेल को जेड प्लस सुरक्षा दे कर देश की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है। सारी एजेंसियों को विपक्ष के पीछे लगा दिया गया है और जालसाज देश की सुरक्षा में सेंध लगाते हुए कश्मीर जैसे संवेदनशील प्रांत में घूम रहे हैं।
तेजस्वी यादव ने मोदी सरकार को तानाशाह सरकार बताते हुए लोकतंत्र और संविधान बचाने की लड़ाई छेड़ दी है। इस लड़ाई में वे विपक्ष के मुख्य मोर्चे के साथ हैं। इसमें कांग्रेस भी है। वे कह चुके हैं कि देश में लोकतंत्र बचाने की लड़ाई कांग्रेस के साथ मिल कर लड़ी जाएगी।
एक तीसरी बात कि तेजस्वी यादव अपने पिता लालू प्रसाद के रास्ते पर चल रहे हैं। लालू प्रसाद भाजपा के आगे झुकने, प्रत्यक्ष या गुपचुप संबंध बनाने के खिलाफ रहे। तेजस्वी भी बार-बार कहते रहे हैं कि सीबीआई से वे डरने वाले नहीं हैं और न ही भाजपा के आगे झुकनेवाले हैं। उन्होंने आर-पार की लड़ाई छेड़ दी है।
उधर अखिलेश यादव कोलकाता में हैं। सपा कार्यकारिणी की बैठक चल रही है। इससे पहले कल शुक्रवार को उन्होंने ममता बनर्जी से मुलाकात की। दोनों में इस बात पर सहमति बनी कि कांग्रेस और भाजपा से समान दूरी रखी जाए। अखिलेश पहले कह चुके हैं कि भाजपा और कांग्रेस में कोई फर्क नहीं है। ममता कह चुकी हैं कि कांग्रेस, भाजपा और लेफ्ट में कोई फर्क नहीं है। ममता बनर्जी अगले हफ्ते ओड़िशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक से मुलाकात करेंगी और उन्हें भी तीसरे मोर्चे के लिए राजी करेंगी। वे अप्रैल के पहले हफ्ते में दिल्ली में अरविंद केजरीवाल से मुलाकात करेंगी। हाल में अखिलेश यादव दिल्ली में लालू प्रसाद से भी मिले थे, लेकिन कांग्रेस को छोड़कर विपक्षी एकता की कोई बात सामने नहीं आई, जैसा ममता के साथ अखिलेश की मुलाकात के बाद आई।
2024 में क्या होगा-
अखिलेश यादव और ममता बनर्जी की सहमति से स्पष्ट है कि 2024 लोकसभा चुनाव में यूपी और बंगाल में भाजपा के खिलाफ विपक्ष के दो या तीन प्रत्याशी होंगे। यूपी में भाजपा के खिलाफ सपा अलग लड़ेगी और कांग्रेस तथा बसपा अलग। मतलब भाजपा के खिलाफ एक सीट पर विपक्ष के तीन प्रत्याशी होंगे। फायदा किसे होगा, समझा जा सकता है।
बंगाल में भी भाजपा के खिलाफ कम से कम दो प्रत्याशी होंगे। एक टीएमसी का और दूसरा कांग्रेस-लेफ्ट का।
वर्तमान राजनीति में भी अखिलेश यादव और तेजस्वी यादव की राजनीति का फर्क देखा जा सकता है। जहां अडानी मसले पर, केंद्रीय एजेंसियों के विपक्ष के खिलाफ अभियान के खिलाफ, लोकतंत्र और संविधान बचाने की लड़ाई में राजद आगे-आगे है, वहीं अखिलेश यादव और सपा की हिचक देखी जा सकती है। अल्पसंख्यों पर हमवे के खिलाफ आरएसएस को निशाने पर लेना हो, तब भी तेजस्वी और अखिलेश या फर्क देखा जा सकता है। तेजस्वी आरएसएस की विचारधारा के खिलाफ मुखर हैं, जबकि अखिलेश कम ही बोलते हैं।
फर्क लालू प्रसाद और मुलायम सिंह में भी था। लालू संघ की विचारधारा के खिलाफ हर सभा में बोलने के लिए जाने जाते हैं, वहीं मुलायम सिंह ने यहां तक कहा था कि उनकी इच्छा है कि नरेंद्र मोदी पिर से प्रधानमंत्री बने। याद रहे पिछले हफ्ते हरियाणा में आरएसएस ने अपने वार्षिक बैठक में स्व. मुलायम सिंह यादव को श्रद्धांजलि दी। वहीं संघ समर्थक लालू प्रसाद के बारे में क्या राय रखते हैं, यह बताने की जरूरत नहीं।
अब जबकि तेजस्वी और अखिलेश की राहें जुदा हो गई हैं, तो सवाल उठता है कि दोनों का भविष्य क्या होगा। एक बात तो तय है कि भविष्य उसी का होता है, जो लड़ता है। कभी बसपा प्रमुख मायावती का नाम देश के संभावित प्रधानमंत्रियों में गिना जाता था, आज राजनीति में उनकी जगह कहां है, यह बताने की जरूरत नहीं। देखिए आगे होता है क्या।
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