दो विरोधी ध्रुव पर खड़े दिखे रैदास पर तेजस्वी और मोदी
महापुरुषों को याद करना काफी नहीं है, आप किस रूप में याद करते हैं, यह ज्यादा महत्वपूर्ण है। रैदास पर सुशील मोदी भी बोले और तेजस्वी भी, पर दोनों दो ध्रुव पर।
कुमार अनिल
अगर सवाल करें कि संत रविदास या रैदास यथास्थिति के पोषक थे या यथास्थितिवादियों से लड़ रहे थे, वे अपने समय की मान्यताओं को चुनौती दे रहे थे या तथाकथित समरसता का प्रचार कर रहे थे, तो आपका जवाब क्या होगा? आप दो पूर्व उपमुख्यमंत्रियों के बयान को गौर से देखिए, तो फर्क दिख जाएगा।
रैदास जयंती पर विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने कहा कि रैदास धर्म के नाम पर उन्माद, समाज में ऊंच-नीच और आडंबर के विरुद्ध थे। कर्म की प्रधानता, जीवन में सरलता और हृदय की पवित्रता पर जोर देनेवाले संत थे।
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उधर, भाजपा सांसद सुशील कुमार मोदी ने कहा समाज में एकता, समरसता और भाईचारे का संदेश देनेवाले महान संत को कोटिशः नमन।
समरसता का अर्थ है सामंजस्य, संतुलन, तालमेल। अंग्रेजी में हारमनी। समरसता में यथास्थितिवाद भी शामिल है। जैसा समाज है, वैसा ही चलने दें। अगर समाज में जाति के नाम पर किसी को प्रताड़ित किया जा रहा है और इसका आप विरोध करेंगे, तो आपको उन लोगों का विरोध झेलना पड़ेगा, जो पुराने सामाजिक ढांचे से लाभ कमा रहे हैं। रोहित वेमुला इसी पुराने ढांचे में बदलाव के लिए लड़ रहे थे। समरसता चाहिए, पर बराबरी के हक के साथ। गैरबरबरी में समरसता कैसी?
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भाजपा नेता का एक और ट्विट देखिए। उन्होंने कहा कि भजपा दलित मुसलमानों और दलित इसाइयों को आरक्षण देने के पक्ष में नहीं है। उन्होंने बौद्ध और सिख दलितों की बात नहीं की। वे दलित मुसलमानों को आरक्षण देने के विरुद्ध हैं। जैसा समाज चल रहा है, वैसा ही चलने दें। किसान एमएसपी पर कानून मांग रहे हैं, यह भी समरसता के विरुद्ध जाती है। समरसता का मतलब है पहले की तरह ही किसान रहें।
तेजस्वी यादव ने स्पष्ट कहा कि वे छुआछूत के खिलाफ अपने समय में अपने ढंग से लड़ रहे थे। एकतरफ तथाकथित ज्ञानियों का दबदबा था, तो दूसरी तरफ देसी बोली में श्रमिकों में नई जागृति ला रहे थे रैदास।
दो साल पहले जब दिल्ली में रैदास मंदिर को बचाने के लिए देशभर से लोग जमा हुए थे, तभी वहां पहुंचे पंजाब विवि के प्रोफेसर रोंकी राम ने एक अंग्रेजी अखबार को दिए इंटरव्यू में कहा था- रैदास ने सदियों से जमी जाति प्रथा, छुआछूत पर सामने से हमला किया। रैदास की शिक्षा और वाणी कमजोर जातियों को संघर्ष करने की ताकत दे रही थी। उन्होंने श्रम को प्रतिष्ठा दिलाने के लिए आवाज उठाई। इसीलिए वे पंजाब-हरियाणा में मेहनतकशों के बीच मसीहे की तरह देखे जाते हैं।
इस संदर्भ में देखें, तो तेजस्वी यादव और सुशील कुमार मोदी के बीच के फर्क को समझना कठिन नहीं होगा।