दुनिया में सर्वाधिक बिकनेवाली पत्रिका के कवर पेज पर आशा
दुनिया में चर्चित पत्रिकाओं में एक- कॉस्मोपोलिटन के कवर पेज पर इस बार आशा हैं। उन्हें कोविड वॉरियर्स के बतौर पत्रिका ने सम्मान दिया। बिहार सरकार कब जागेगी?
कॉस्मोपोलिटन पत्रिका लगातार अपना पांच अंक होप और काइंडनेस ( उम्मीद और दयालुता) शीर्षक से निकाल रही है। उसने इस बार का अंक आशा के नाम से समर्पित किया है। उन्हें कोविड के दौरान उम्मीद और सेवा का प्रतीक माना है। आशा ने गांव-गांव में मरीजों की पहचान करने, उन्हें दवा देने, जागरूक करने में बेमिसाल भूमिका निभाई है। दुनिया की चर्चित पत्रिका ने आशा को सम्मान दिया, पर बिहार सरकार सम्मान तो दूर, सम्मानजनक मानदेय और भत्ता तक देने को राजी नहीं है। जबकि आशा ने पहली और दूसरी लहर दोनों में जान पर खेल कर कोविड मरीजों की सेवा की।
बिहार सहित देशभर की आशा ने 31 मई को सम्मानजनक मानदेय-भत्ता और अन्य सुविधाओं के लिए प्रदर्शन किया, लेकिन न केंद्र की मोदी सरकार और न ही बिहार की नीतीश सरकार ने कोई ध्यान दिया।
ऑल इंडिया स्कीम वर्कर्स फेडरेशन की राष्ट्रीय संयोजिका व ऐक्टू राष्ट्रीय उपाध्यक्ष शशि यादव ने बताया कि आशा ने जान पर खेल कर लोगों की जान बचाई। उन्हें जरूरी सुरक्षा किट और जीने लायक पारिश्रमिक भी सरकारें नहीं देतीं। आशा और फैसिलिटेटर के लिए क्रमशः 1000 व 500 रुपये मासिक देने की घोषणा हुई है जो अपमानजनक है। इससे ज्यादा खर्च तो रिक्शा और ऑटो में लग जाता है।
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शशि यादव ने बताया कि उनका संगठन सभी स्कीम वर्कर को कम से कम दस हजार रुपए मासिक मानदेय तथा 50 लाख का जीवन बीमा सुरक्षा देने के लिए आंदोलन कर रहा है। सिद्धार्थ जैन @siddarth_jain ने आशा वर्कर को जमीन पर काम करनेवाली अनसंग सोल्जर्स बताया। सोशल मीडिया पर अनेक लोग आगे आ कर आशा के कार्य की सराहना कर रहे हैं और सरकारों से उन्हें सम्मानजनक वेतन और सुविधा देने की मांग कर रहे हैं।
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