नीतीश कुमार के तेवर भाजपा के प्रति लगातार सख्त होते जा रहे हैं. वह कुछ दिनों से सार्वजनिक कार्यक्रमोॆ में भाजपा को इशारों में ललकारने लगे हैं. नीतीश की रणनीति पर ध्यान देने वालों को पता है कि वह गठबंधन सहयोगी के खिलाफ धीरे-धीरे ही माहौल बनाते हैं.

 

[author image=”https://naukarshahi.com/wp-content/uploads/2016/06/irshadul.haque_.jpg” ]इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट कॉम, फॉर्मर अंतरराष्ट्रीय फेलो फोर्ड फाउंडेशन[/author]

भाजपा को ललकारने का ताजातरीन उदाहरण कर्नाटक के चेन्नागिरी का है. वहां उन्होंने अपने दल के प्रत्याशी महिमा जे पटेल के पक्ष में चुनाव प्रचार करने गये थे. उन्होंने वहां दो महत्वपूर्ण बातें कहीं- पहली हमने अपने जीवन में कभी साम्प्रदायिकता, भ्रष्टाचार और अपराध से समझौता नहीं किया. दूसरी- देश में युनिफार्म सिविल कोड थोपने और अनुच्छेद 370 हटाने की कोशिश हमें स्वीकार्य नहीं है. नीतीश ने यह कहते हुए भाजपा का नाम तक नहीं लिया, यह उनकी शैली भी रही है. क्योंकि वह जानते हैं कि ऊपर कही गयी उनकी बातें किसके( भाजपा ) लिए हैं. सच मानिये तो नीतीश के यह बोल भाजपा के प्रति उनकी रणनीति में बदलाव की झलक है. ये बाते कहते हुए नीतीश ने कर्नाटक की धरती का उपयोग किया. जहां उनकी पार्टी भाजपा से इतर चुनाव ल़ड़ रही है. वहां जदयू अपने वजूद को बढ़ाना चाहता है. जहां भाजपा सत्ता हासिल करने के लिए जद्दोजहद कर रह है. और साम्प्रदायिकता, अनुच्छेद 370 व युनिफार्म सिविल कोड उसकी राजनीति की दुधारू गाय है. नीतीश ने भाजपा की दुधारू गाय को ललकारा है.

 

नीतीश इससे पहले भी दो एक बार बिहार में भाजपा को परोक्ष रूप से ललकार चुके हैं. पर बिहार की ललकार जरा दूसरे तरीके की थी. रामनवमी के अवसर पर साम्प्रदायिक गुंडागर्दी फैलाने की साजिश करने वालों के खिलाफ उन्होंने कहा था कि वह भ्रष्टाचार की ही तरह साम्प्रदायिकता से किसी भी हाल में समझौता नहीं कर सकते. इस बयान में नीतीश के लिए यह सहूलत छिपी थी कि वह यह बात जता सकें कि उनका बयान भाजपा के खिलाफ नहीं, अपितु साम्प्रदायिक उन्माद फैलाने वालों के खिलाफ था. ( हालांकि इस उन्माद को फैलाने में केंद्रीय मंत्री अश्विनी चौबे के बेटे समेत अनेक भाजपा विधायकों का हाथ था). बिहार में नीतीश ने नीतीगत मामलों में भाजपा को नहीं घेरा था. उन्होंने इसके लिए कर्नाटक के चुनावी मैदान को चुना. वहां उन्होंने अनुच्छेद 370 व युनिफार्म सिविल कोड को इश्यु बना कर जताया कि वह भाजपा की नीतियों के साथ नहीं हैं.

 

भाजपा के प्रति नीतीश के रुख में आ रहे इस बदलाव की एक खास बात यह भी है कि उन्होंने ये बातें तब कहीं जब एक दिन पहले बिहार में हुई सर्वदलीय बैठक में विशेष राज्य के दर्जे की मांग पर सारे दल एकमत थे. इस बैठक में जदयू के नम्बर दो की पंक्ति के नेता आरसीपी सिंह ने कहा था कि ‘हमारी समझ में नहीं आता कि केंद्र सरकार बिहार को किस गलती की सजा द रही है. विशेष राज्य का दर्जा बिहार का अधिकार है’.

एक टका सा सवाल है कि क्या नीतीश कुमार का भाजपा गठबंधन के अंदर दम घुट रहा है?  ठीक वैसे ही, जैसे कथित तौर पर पिछले जुलाई से पहले राजद के साथ उनका दम कथित तौर पर घुट रहा था.

याद रखने की बात है कि महागठबंधन से अलग होने के लिए उन्होंने ऐसी ही परिस्थितियां बनाई थीं. पहले हर बात पर चुप्पी, फिर अपने सिपहसालारों को बयानबाजी के लिए आगे करना और अंत में कह देना कि भ्रष्टाचार से कभी समझौता नहीं कर सकते. अब नीतीश फिर उसी तर्ज पर तो आगे नहीं बढ़ रहे हैं?  अब वह कहने लगे हैं कि साम्प्रदायिकता पर जीवन में कभी समौझौता नहीं कर सकते.

भाजपा क्या चाहती है

पिछले हफ्ते यह खबर मीडिया में आयी थी कि दिल्ली में नीतीश कुमार ने पीएम नरेंद्र मोद से मुलाकात की है. इस खबर का प्रकाशन विभिन्न अखबारों में हुआ था. लेकिन इस संबंध में कोई प्रेस वक्तव्य जारी नहीं  किया गया. समानांतर सियासत करने वालों का दावा था कि पीएम से नीतीश की मुलाकात का कोई प्रमाणिक स्रोत नहीं है. हकीकत जो भी हो, जदयू के वरिष्ठ प्रवक्ता केसी त्यागी का एक बयान छपा था कि पीएम से मुलाकात हुई औ बिहार के लिए विशेष दर्जा के मुद्दे पर बात हुई.  इन बयानों से अब यह स्पष्ट होता जा रहा है कि नीतीश आने वाले दिनों में भाजपा के खिलाफ दो मुद्दे मजबूती स उठायेंगे और इसे ईवेंट की श्कल देंगे. ब़ड़ा मुद्दा बनायेंगे. मुम्किन  है कि ऐसा नीतीश इसलिए भी करना चाहेंगे क्योंकि भाजपा का एक धड़ा चाहता है कि 2019 का चुनाव नीतीश, भाजपा से अलग हो कर लड़ेंगे तो 2014 के हालात की पुनरावृत्ति हो सकती है. तब नीतीश  व लालू अलग अलग भाजपा के खिलाफ लड़े थे, जिससे भाजपा के खिलाफ वोट बंट गये थे. और भाजपा भारी जीत हासिल करने में कामयाब रही थी.

संभव है कि नीतीश कुमार को भी इस बात का एहसास होने लगा हो, कि भाजपा ऐसी रणनीति अपना सकती है. लिहाजा भाजपा के कदम का इंतजार करने के बजाये, नीतीश खुद साम्प्रदायिकता व विशेष राज्य के मामले को बड़ा इश्यु बना दें. और उससे अलग हो जायें.

 

 

By Editor


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