हलाल और झटके की बहस में लेखक ने चिरकुटों को दिया फंसा
हलाल और झटके की बहस में लेखक अशोक कुमार पांडेय ने चिरकुटों को फंसा दिया। वे लेखक को गाली भेज रहे हैं, पर गाली उनके पास वापस लौट जा रही।
देश में नफरत और प्रेम के बीच जारी जंग में लेखक अशोक कुमार पांडेय ने नया अध्याय जोड़ दिया। कश्मीरनामा, उसने गांधी को क्यों मारा, सावरकर जैसी कई पुस्तकों के लेखक अशोक कुमार पांडेय ने एक सवाल किया-वैसे हिन्दू धर्म के किस ग्रंथ में लिखा है कि हलाल मीट खाना ग़लत है और झटका खाना सही?
इस सवाल का जवाब हलाल के खिलाफ तथाकथित जागृति फैलानेवालों के पास नहीं था। उन्होंने गाली-गलौज सीखा है, यही उनका नया संस्कार है, जिसे वे हिंदू के नाम पर थोपना चाहते हैं। इसीलिए लेखक अशोक पांडेय उन्हें चिरकुट कहते हैं।
एक चिरकुट ने तुम-तड़ाक पर उतरते हुए लिखा- बलि देकर खाते थे हिन्दू और बलि हलाल से होती थी कि झटके से? पर तुम जैसे कतिथ ( चिरकुटों की हिंदी कमजोर होती है- इसे कथित पढ़ें) बुद्धिजीवियों को तो एजेंडा सेट करना है जानते सब हो पर कैसे अपनी जलन मिटाओ तो कुछ भी लिख दो वैसे बरनाल लेलो।
लेखक ने इस चिरकुट की हिंदी को नजरअंदाज करते हुए फिर लिखा- जो सवाल पूछा उसका उत्तर दो। बलि प्रथा तो अब भी है, हमारे इलाक़े में भैंसे की भी बलि होती है। लेकिन कहाँ लिखा है कि ‘हलाल’ खाना ग़लत है? वैसे बेरोज़गारी में बरनाल के सेल्समैन बने होंगे, समझ आता है।
दूसरे चिरकुट ने लिखा-भगवान की दया से टेलेंट है पांडेय जी इसलिए आप की तरह बेरोजगार तो न है और कहाँ लिखा है हलाल खाना है पशु वध मेरे नज़रिए से तो किसी भी तरह न ठीक है पर कहते है जब किसी को मारना हो तो झटके में मारना चाहिए न कि तड़पा तड़पा के और हलाल वही तड़पाने वाली कला है जो अमानुषिक ज्यादा है
लेखक अशोक पांडेय ने इसे जवाब दिया-टैलेंट लिखना आता तो ज़रूर मान लेता। फ़र्ज़ी नाम से कोड नंबर लिखकर आई टी सेल की ट्रोलिंग करना रोज़गार नहीं होता। हत्या करने में अमानुसिकता की बात अच्छी लगी, फिर तो फाँसी के भी खिलाफ़ होंगे? एक बार में गंडासे से मार देना बेहतर समझते होंगे?
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