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Haque Ki Baat; तेजस्वी का ऑफर और चिराग की दुविधा

Tejashwi offers chirag to Join hands

Haque Ki Baat में Irshadul Haque बता रहे हैं कि तेजस्वी इशारों व संकेतों के बजाये चिराग पासवान को साथ आने का खुला ऑफर दे दिया है लेकिन चिराग दुविधा में क्यों हैं.

Haque Ki Baat By Irshadul Haque
Haque Ki Baat By Irshadul Haque

तेजस्वी यादव ने अब इशारों व संकेतों की सियासत छोड़ कर चिराग पासवान को साथ आने का खुला ऑफर दे दिया है. तेजस्वी ने कहा कि चिराग पासवना अपने सियासी अस्तित्व को बचाने के लिए गोलवलकर( संघ) के विचारों के खिलाफ लड़ाई में हमारे साथ आ जायें.

तेजस्वी का यह ऑफर अपने आप में इसलिए महत्वपूर्ण है क्यों कि चिराग पासवान की पीठ में जो छुरी चलाई गयी है उसके पीछे एनडीए की रणनीति काम कर रही है. भले इस मामले में मुखौटा चिराग के चाचा पशुपति पारस हैं पर इसका महत्पूर्ण सिरा एनडीए से जुड़ता है. चिराग भी इस बात को बखूबी समझते हैं. लेकिन अब तक वह खुल कर सामने आने से बच रहे हैं. तेजस्वी यादव ने रामविलास पासवान की जयंती अपनी पार्टी द्वारा मनाने की घोषणा के अर्थ को मतलब भी बताया. उन्होंने कहा कि रामविलास जी जीवन भर गरीबी, गैरबराबरी, जाति और वर्चस्ववाद के खिलाफ लड़ते रहे. हमारी यह पहल अपने आप में सब बयां करने वाला है.

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उधर चिराग पासवान ने रामविलास पासवान की जयंती राजद द्वारा मनाने पर टेक्निकटल प्रतिक्रिया दी है. उन्होंने कहा कि राजद द्वारा जयंती मनाने का नयी पीढ़ी में स्पष्ट संदेश जायेगा कि नयी पीढ़ी अपने बुजुर्गों के प्रति कितनी संवेदनशील है. उन्होंने तेजस्वी की इस पहल की तारीफ तो की लेकिन वह तेजस्वी के ‘साथ आने के ऑफर’ पर ज्लदबाजी में फैसला लेने के मूड में नहीं दिख रहे हैं. ऐसा क्यों है ? यह एक महत्वपूर्ण सवाल है.

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क्या चिराग अब भी नरेंद्र मोदी से कोई खास उम्मीद पाले हुए हैं. क्या चिराग को यह लगता है कि चाचा पशुपति पारस द्वारा लोजपा को तोड़ने के बाद भी नरेंद्र मोदी पारस की जगह उन्हें ही मंत्रिमंडल में जगह देंगे?  अगर चिराग ऐसा सोचते हैं तो यह माना जायेगा कि वह संघर्ष की सियासत के बजाये सुविधाभोगी राजनीति को प्राथमिकता देना चाहते हैं. चिराग पासवान यंग लीडर हैं. उनके सामने एक लम्बा सियासी करियर पड़ा है. उन्हें सुविधा की सियासत के मोह से निकलना होगा. संघर्ष की सियासत से मिली सफलता नेतृत्व क्षमताको अलगा आयाम देती है. ऐसा करने से चिराग अपने पिता की सियासी जागीर से अलग खुदकी पहचान को सशक्त करेंगे. जैसा कि तेजस्वी यादव ने खुद को 2020 के विधान सभा चुनाव में साबित किया. तेजस्वी लालू प्रसाद के बिना खुद मैदान में डटे और अपने बाजुओं की ताकत से बिहार की सबसे बड़ी सियासी पार्टी के तौर पर राजद को स्थापित कर दिया.

चिराग को तय करना होगा कि वह भविष्य में कैसे लीडर के रूप में खुद को देखना चाहते हैं.

By Editor


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