अपने काल के सर्वाधिक लोकप्रिय कवि डा हरिवंश राय बच्चन, गुणवत्तापूर्ण जीवन और उत्साह के कवि हैं। उनके गीत जीवन के मंजुल–गान कहे जा सकते है, जो प्रेरणा देते हैं, जीवन से हताश और निराश लोगों की आँखों के आँसू पोछकर उनमें नवीन उत्साह की प्रेरणा भरते हैं।
यह बातें आज यहाँ साहित्य सम्मेलन में, अपने काल के अत्यंत लोकप्रिय कवि हरिवंश राय बच्चन की जयंती पर आयोजित समारोह एवं कवि–सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, बच्चन जी की ‘मधुशाला‘ एक निगूढ़ आध्यात्मिक दर्शन है, जो लौकिक और अलौकिक संसार को नए रूप में समझने की शक्ति देती है।
समारोह का उद्घाटन करते हुए, वरिष्ठ साहित्यकार जियालाल आर्य ने कहा कि, बच्चन की रचनाओं में रस और मृदुभावों के साथ अध्यात्म की पराकाष्ठा दिखाई देती है।
आरम्भ में अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्र नाथ गुप्त ने कहा कि बच्चन जी अंग्रेज़ी के प्राध्यापक होकर भी हिंदी की जो सेवा की वह स्तुत्य है। उनकी काव्य–पुस्तकें ‘मधुशाला‘ और ‘मधुवाला‘ आज भी भारतीय पाठकों के हृदय में स्थित है।
इस अवसर पर आयोजित कवि–गोष्ठी का आरंभ कवयित्री और लोक–गायिका डा लक्ष्मी सिंह ने स्वरचित वाणी–वंदना से किया। इसके साथ हीं गीत और ग़ज़लों की जो गंगा–जमुनी धारा बही,उसके संगम में कविगण–श्रोतगण घंटों नहाते रहे। वरिष्ठ शायर आरपी घायल ने लफ़जे–मुहब्बत को इस तरह से परिभाषित किया कि,-” मुहब्बत का सिला जब मैं मुहब्बत से हीं पाता हूँ/ अंधेरी रात में भी मैं उजालों में नहाता हूँ/ मुसीबत में मुहब्बत का फँसाना काम आता है/ इसी से मैं मुसीबत में बाई अक्सर मुस्कुराता हूँ।“
डा शंकर प्रसाद ने कहा कि– “ बिक गए ज़मीर ख़रीदार दुखी हैं/ अरमानों के बाज़ार में जज़्बात दुखी है“। तल्ख़ तेवर के कवि ओम् प्रकाश पाण्डेय ‘प्रकाश ने नेताओं पर इन शब्दों से प्रहार किया कि,”नारे और नेताओं की हो रही बरामसिया उत्तम पैदावार/ कंधे से कंधा मिला लूट रहे, दोनों गहरे यार“। युवा कवि कुंडन आनंद ने कहा– “जीएंगे जब तक काम करेंगे/ क़ब्र में हीं जा आराम करेंगे। कवयित्री आराधना प्रसाद का कहना था -”उसे मेरा जो कोई ग़म नही था/ मुझे सदमा ये कोई काम नही था“।
डा मेहता नगेंद्र सिंह, बच्चा ठाकुर, कवि राज कुमार प्रेमी, सच्चिदा नंद सिन्हा, रमाकान्त पाण्डेय, बच्चा ठाकुर, शालिनी पाण्डेय, प्रभात धवन, लता प्रासर, डा मनोज कुमार उपाध्याय, घनश्याम तथा कृष्ण मोहन प्रसाद ने भी अपनी रचनाओं का पाठकर श्रोताओं को आह्लादित किया।
इस अवसर पर डा बी एन विश्वकर्मा, अप्सरा रणधीर मिश्र, आनंद किशोर मिश्र, डा अशोक आनंद , राज आनंद, चंद्र शेखर आज़ाद, अंबरीष कांत समेत बड़ी संख्या में सुधिजन उपस्थित थे। मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने तथा धन्यवाद–ज्ञापन करिशनरंजन सिंह ने किया।