हेमंत सोरेन के कारण सबसे अलग दिख रही झारखंड की ब्यूरोक्रेसी
झारखंड सीएम हेमंत सोरेन ने सिर्फ डेढ़ साल में राज्य की ब्यूरोक्रेसी का वर्क-कल्चर पूरी तरह बदल कर रख दिया। अच्छा हो, झारखंड मॉडल को दूसरे राज्य भी अपनाएं।
आज से डेढ़ साल पहले हेमंत सोरेन ने झारखंड के मुख्यमंत्री पद की सपथ ली। कुछ ही दिनों बाद उन्होंने सोशल मीडिया का उपयोग करते हुए प्रदेश की गरीब जनता को तुरत मदद पहुंचाने की शुरुआत की। शुरू में कई विश्लेषकों ने सोरेन के प्रयास की आलोचना की और कहा कि इस तरह वे कितने लोगों को मदद पहुंचाएंगे। लेकिन सोरेन का वह प्रयास न सिर्फ सफल रहा, बल्कि वह विकसित भी हुआ।
राज्य के किसी साधारण व्यक्ति ने भी किसी दुख-विपदा में पड़े व्यक्ति की बात मुख्यमंत्री को टैग करके बताई, तो मिनटभर में मुख्यमंत्री सोरेन उस ट्विट को संबंधित जिले के डीसी को रेफर करते। साथ में यह निर्देश भी होता कि पीड़ित को मदद करके सूचित करें। मुख्यमंत्री के आदेश का पालन होना ही था। यह कल्चर बन गया। अब वह शुरुआत नए रूपों में सामने दिख रहा है। आज कोरोना काल में झारखंड के डीसी जितना सीधे आम लोगों के बीच जा रहे हैं, उतना देश के किसी प्रदेश की ब्यूरोक्रेसी नहीं जा रही।
झारखंड के डीसी दूर-दराज के गांवों तक पहुंच रहे हैं और सीधा गरीब आदिवासियों की बात सुन रहे हैं। उन्हें हेमंत सरकार की योजनाओं का लाभ दे रहे हैं। किसी प्रदेश में अपने स्तर पर सक्रिय ऐसे अधिकारी जरूर मिल जाएंगे, लेकिन पूरे प्रदेश की ब्यूरोक्रेसी इसी वर्क-कल्चर से काम कर रही हो, ऐसा एक भी प्रदेश नहीं है। अच्छा होगा, दूसरे प्रदेश के मुख्यमंत्री झारखंड मॉडल को अपनाएं।
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शुरू में मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को प्रयास करना पड़ा, लेकिन जब यही वर्क-कल्चर बन जाता है, तो स्थिति बदल जाती है। अब तो डीसी ही पहल करने लगे हैं। डीसी खुद ही किसी गरीब टोले पर जाते हैं और ग्रामीणों से बात करते अपना फोटो शेयर करते हैं। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन उसे ट्विटर पर लाइक करते हैं। इससे ब्यूरोक्रेसी का न सिर्फ मनोबल बढ़ा, बल्कि सीधे ग्रामीणों तक जाने का ट्रेंड मजबूत हुआ।
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