सदानंद प्रसाद की पुस्तक जिंदगी के रंग का हुआ लोकार्पण
सम्मेलन में पुस्तक ‘ज़िंदगी के रूप रंग’ का हुआ लोकार्पण।
पटना,.स्वास्थ्य-विज्ञान और योग से गहरा संबंध रखनेवाले साधु-पुरुष सदानंद प्रसाद, प्रकृति से समन्वय के पक्षधर और सद्भाव के कवि-कथाकार हैं।
हिन्दी गद्य और पद्य, दोनों में ही गम्भीर सृजन कर रहे श्री प्रसाद अपने विचार अत्यंत सरलता से रखते हैं, जो संबद्ध पाठकों का हृदय स्पर्श करता है। यह बातें, रविवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, सदानंद प्रसाद की सद्यः प्रकाशित पुस्तक ‘ज़िंदगी के रूप रंग’ का लोकार्पण करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि यद्यपि कि श्री प्रसाद ने अपनी प्रौढ़ावस्था में, साहित्य-सृजन के मूल्यवान कार्य में प्रस्तुत हुए हैं, तथापि इनकी लोकार्पित पुस्तक, जो इनकी प्रथम कृति भी है, हिन्दी साहित्य में अपना स्थान बनाने में सफल हुई है।
आशा की जाती है कि इनकी लेखनी अकुंठ गति से चलती रहेगी और भविष्य में लेखक के चिंतन और विचार, और भी अधिक परिष्कृत रूप में सुबुद्ध पाठकों को प्राप्त होंगे। बिहार सरकार के मंत्रिमण्डल सचिवालय (राजभाषा) विभाग में विशेष सचिव रहे सुप्रसिद्ध कवि और सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा उपेन्द्रनाथ पाण्डेय ने कहा कि सदानंद जी हृदय से कवि हैं। एक कवि लोक-जीवन की चिंताओं को अपनी चिंता बना लेता है और उसे अपनी रचनाओं में प्रकट करता है। राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय, दरभंगा के प्राचार्य डा दिनेश्वर प्रसाद ने अपना विचार रखते हुए कहा कि कथाएँ आदिकाल से मानव-जीवन पर प्रभाव डालती रही हैं। सदानंद जी की कथाओं से यह विदित होता है कि आज भी उसका प्रभाव कम नहीं हुआ है।
विशिष्ट अतिथि और बिहार सरकार के पूर्व संयुक्त सचिव डा आलोक कुमार ने कहा कि लोकार्पित पुस्तक में लेखक की साहित्यिक प्रतिभा अपने तेज के साथ मुखर हुई है। सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, डा मधु वर्मा, डा कल्याणी कुसुम सिंह, बच्चा ठाकुर, आराधना प्रसाद, डा अर्चना त्रिपाठी, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, डा शालिनी पाण्डेय, विजय कृष्ण प्रकाश, योजना विभाग के उपनिदेशक प्रेम प्रकाश, डा सीमा रानी, तथा डा नागेश्वर प्रसाद यादव ने भी अपने विचार व्यक्त किए ।
अतिथियों का स्वागत सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने तथा धन्यवाद ज्ञापन कृष्णरंजन सिंह ने किया। मंच का संचालन सुनील कुमार दूबे ने किया। इस अवसर पर, मशहूर शायरा तलअत परवीन, जय प्रकाश पुजारी, पं गणेश झा, ज्ञानेश्वर शर्मा, डा बी एन विश्वकर्मा, आनंद किशोर मिश्र, बाँके बिहारी साव, डा आर प्रवेश, जबीं शम्स, डा कुंदन लोहानी, नेहाल कुमार सिंह ‘निर्मल’ तथा वंदना प्रसाद, कुमार शान्तनु, सुधीर चौधरी समेत बड़ी संख्या में सुधीजन और साहित्यकार उपस्थित थे