हिंदी दिवस : मंत्री क्या बोले, क्या बोले लेखक, जारी है जंग
मंत्री बोले, भाषा तब सार्थक होगी, जब सत्ता के प्रति विश्वास पैदा हो। लेखक बोले, हिंदी बोलना काफी नहीं, आप विष उगलते या प्रेम बढ़ाते हैं, यह महत्वपूर्ण है।
आज हिंदी दिवस पर पहले की तरह अनेक लोगों ने बधाई देते हुए कहा कि हिंदी राष्ट्रीय एकता की भावना पैदा करती है। इस पर यह सवाल होता है कि क्या बांग्ला, पंजाबी, तमिल, तेलगु, मलयालम राष्ट्रीय एकता की भावना पैदा नहीं करती?
आज खेल मंत्री अनुराग ठाकुर ने कहा-राष्ट्र की भाषा जब विकास की वाहक बनती है तो नागरिकों में राष्ट्र के प्रति प्रेम और सरकार के प्रति विश्वास बढ़ता है।
मंत्री के इस बयान पर पूछा जा सकता है कि भाषा अगर सरकार की आलोचना करे, विरोध का माध्यम बने, तब क्या कहा जाएगा? जब नागार्जुन 1974 में कांग्रेस के खिलाफ कविता लिख रहे थे, जब अंग्रेजी सरकार के खिलाफ हिंदी कवि कविताओं से आंदोलन को धार दे रहे थे, तब क्या भाषा सार्थक नहीं थी?
हिंदी दिवस पर अनेक लेखकों-कवियों ने अपनी टिप्पणी से इस दिवस को विमर्श का दिवस बना दिया।
लेखक अशोक कुमार पांडेय ने लिखा-तारीफ़ इसकी नहीं है कि आपने हिंदी में कहा/लिखा। वह तो सिर्फ़ इसलिए कि आपको वही भाषा ठीक से आती है, मुझे भी वही आती है। सवाल यह है कि आपने हिन्दी में क्या कहा? जो कहा उसका समाज पर कैसा असर पड़ा? उससे लोगों ने क्या सीखा। अगर वह शानदार है, सकारात्मक है तो फिर तारीफ़ बनती है।
लेखक और पत्रकार ओम थानवी ने कहा-मैं हिंदी दिवस की रस्म-अदायगी के हक़ में कभी नहीं रहा। फिर भी, हिंदी दिवस का मतलब हिंदी का प्रयोग बढ़ाना भर नहीं है। असल सवाल यह है कि हिंदी का आप करते क्या हैं। छिछली पत्रकारिता करना, रोमन में संवाद लिख अंगरेज़ी में बतियाते हुए हिंदी फ़िल्म बनाना, अनुवाद की मानसिकता।
किस्सागो (स्टोरीटेलर) राम कुमार सिंह ने तंज कसा-उन दोस्तों को भी हिंदी दिवस मुबारक, जो ‘हिंदी’ को बचाने घर से निकले और मोहल्ले में जाकर ‘हिंदू’ को बचाने लग गए।
दिल्ली विवि के प्राध्यापक और लेखक अपूर्वानंद ने लिखा-हम चाहते हैं कि सब हिंदी सीखें लेकिन हम न मलयालम सीखें,न तमिल,न संथाली, न भीली। हम जन्मना राष्ट्रीय हैं, बाकी को होना है। हिंदुस्तान की पूर्व संपादक मृणाल पांडेय ने रघुवीर सहाय की एक कविता ट्वीट किया- -हमारी हिंदी एक दुहाजू की नई बीवी है बहुत बोलनेवाली, बहुत खानेवाली, बहुत सोनेवाली
गहने गढ़ाते जाओ
सर पर चढ़ाते जाओ
वह मुटाती जाए
पसीने से गंधाती जाए, घर का माल मैके पहुँचाती जाए
पड़ोसिनों से जले
कचरा फेंकने को ले कर लड़े..।
पत्रकार अभिनव पांडेय ने हिंदी को गाली-गलौज की भाषा बनाने पर तंज कसा-अंग्रेजी पीकर आदमी कहता है… नहीं समझ आ रहा तो हिंदी में समझाऊं ? बस हिंदी की ताकत का एहसास वहीं हो जाता है।