विश्व में तेज़ी से फैल रही हिन्दी अपने हीं देश में उपेक्षित
हिन्दी एक सरस और मधुर भाषा है। यह अपने गुणों के कारण पूरे विश्व में विस्तृत हो रही है। किंतु पीड़ा और लज्जा का विषय है कि यह अपने देश में हीं उपेक्षित है। लज्जा का विषय यह भी है कि, इस देश की कोई राष्ट्रभाषा नहीं है। भारत की सरकार की कामकाज की भाषा, अर्थात राजभाषा बनाए जाने के, संविधान–सभा के निर्णय का भी अनुपालन नहीं किया जा सका। आज भी देश के कामकाज की औपचारिक भाषा अंग्रेज़ी बनी हुई है। यह देश के हर एक नागरिक के लिए वैश्विक लज्जा का विषय है कि भारत की सरकार की राजकीय भाषा, देश की कोई भाषा नहीं, बल्कि एक विदेशी भाषा है। ऐसा शर्मनाक उदाहरण संसार में कहीं नहीं है। यदि हम इस लज्जा का निवारण करना चाहते हैं तो शीघ्र हीं ‘हिन्दी‘ को, राष्ट्र–ध्वज और राष्ट्र–चिन्ह की भाँति ‘राष्ट्र–भाषा‘ घोषित की जानी चाहिए।
यह बातें आज यहाँ, विश्व हिंदी दिवस पर, बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन में आयोजित समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने इस अवसर पर, मगध विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति सरदार मेजर बलबीर सिंह ‘भसीन‘ द्वारा किए गए, ‘सुखमनी साहिब‘ के हिन्दी पद्यानुवाद तथा सम्मेलन की दिन–पत्री (कैलेंडर) का लोकार्पण भी किया। उन्होंने कहा कि, पंजाबी में मूल सहित, समानांतर पृष्ठ पर हिन्दी में महनीय पद्यानुवाद एक साथ पढ़ना तीर्थाटन जैसा पावन है। हिन्दी, उर्दू और पंजाबी के समर्थ कवि मेजर भसीन ने सुखमनी–साहिब की पवित्रता और मर्यादा की रक्षा करते हुए, बहुत हीं सुंदर और काव्य–कौशल से समृद्ध पद्यानुवाद किया है, जो हिन्दी के सुधी पाठकों को निश्चय हीं लाभान्वित करेगा।
समारोह का उद्घाटन पटना विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डा एस एन पी सिन्हा ने किया। अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने कहा कि, वर्ष १९७५ में, वर्धा, महाराष्ट्र में हुए प्रथम विश्व हिन्दी सम्मेलन की स्मृति में, भारत सरकार द्वारा वर्ष २००६ से प्रत्येक १० जनवरी को ‘विश्व हिन्दी दिवस‘ मनाया जाता है।
इस अवसर पर २० विदुषियों और विद्वानों को, ‘हिन्दी सेवी सम्मान‘ से सम्मानित किया गया।, जिनमें प्रो इंद्रकांत झा, डा अशोक प्रियदर्शी, मनोज कुमार वर्मा, अलका अग्रवाल, प्रो रमाकान्त झा, डा सुधा सिन्हा, प्रणय प्रियंवद, डा मनोज कुमार, डा विजय कुमार पाण्डेय, डा प्रतिभा पाराशर, डा रामवदन बरुआ, निकहत आरा, माधुरी भट्ट, इन्दु उपाध्याय, अनुपमा नाथ, प्रेम लता सिंह, रेखा भारती, श्रीमती ऋतु सिन्हा, सच्चिदानंद सिन्हा तथा श्रद्धा कुमारी के नाम सम्मिलित हैं। विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित वरिष्ठ कवि राम उपदेश सिंह ‘विदेह‘, श्रीहरिमंदिर साहिब गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटि के महासचिव सरदार महेंद्रपाल सिंह ढिल्लन, रमण सिंधी, रिज़वान अहमद, सरदार गुरदयाल सिंह, सरदार त्रिलोकी सिंह, सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, डा कल्याणी कुसुम सिंह तथा आनंद मोहन झा ने भी अपने उद्गार व्यक्त किए।
इस अवसर पर आयोजित कवि–सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र की वाणी–वंदना से हुआ। वरिष्ठ कवि मृत्युंजय मिश्र ‘करुणेश‘, डा शंकर प्रसाद, अमियनाथ चटर्जी, डा अर्चना त्रिपाठी, बच्चा ठाकुर, डा शालिनी पाण्डेय, पूनम आनंद, राज कुमार प्रेमी, सुनील कुमार दूबे, डा मेहता नगेंद्र सिंह, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, मधुरानी लाल, डा सुलोचना कुमारी, जय प्रकाश पुजारी, आनंद किशोर मिश्र, श्रीकांत व्यास, सिद्धेश्वर, डा सुलक्ष्मी कुमारी, डा मौसमी सिन्हा, अभिलाषा कुमारी, लता प्रासर, कुंदन आनंद, श्रीकांत सत्यदर्शी, डा आर प्रवेश, नूतन सिन्हा, राक किशोर वत्स, नेहाल कुमार सिंह ‘निर्मल‘ आदि कवियों और कवयित्रियों ने अपनी रचनाओं में हिन्दी की काव्य–संपदा का परिचय दिया।
मंच का संचालन सम्मेलन की साहित्य मंत्री डा भूपेन्द्र कलसी तथा योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने संयुक्त रूप से किया। धन्यवाद–ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।