गिरिजा बरणबाल की जयंती पर साहित्य सम्मेलन में आयोजित हुआ कवयित्री–सम्मेलन
पटना,१२ अप्रैल। आज बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन का भव्य सभागार,गए शाम तक कोमल–मीठे स्वरों से गुंजित होता रहा,जिसमें स्त्री–मन की हृदय–भेदी संवेदनाएँ भी थी और मन को झंकझोर देनेवाली वेदना भी। कहीं प्रेम और उदात्त समर्पण के शब्द थे,तो कहीं उलाहने और अधिकार माँगते स्वर भी।
आज विदुषी साहित्यसेवी गिरिजा बरणबाल की ७९वीं जयंती पर,साहित्य सम्मेलन में कवयित्री–सम्मेलन का आयोजन किया गया था। आकर्षक परिधानों में सजी–धजी दर्जनों की संख्या में पहुँची कवयित्रियों का यह विराट–सम्मेलन देखते हीं बनता था। आज फिर सम्मेलन का सभागार दिलकश मधुर स्वरों का साक्षी बना और सिद्ध कर दिया कि,बिहार में महिलाएँ सारस्वत–अभिव्यक्ति के कार्य में भी पुरुषों से कम नहीं हैं। कानों में रस घोलती आवाज़ का क्रम जो कवयित्री चंदा मिश्र की वाणी–वंदना से आरंभ हुआ,कवयित्री डा भूपेन्द्र कलसी के अध्यक्षीय काव्य–पाठ पर समाप्त हुआ।
कालिन्दी त्रिवेदी
वरिष्ठ कवयित्री कालिन्दी त्रिवेदी ने जीवन के सौंदर्य–पक्ष को सामने रखते हुए कहा कि, “फूलों के हीं साथ–साथ,काँटों को गले लगाता चल/सुख और दुःख के धूप–छांव,में हीं पलता है यह जीवन“। कवयित्री आराधना प्रसाद ने जब इन पंक्तियों को स्वर दिया कि, “इक मुसाफ़िर हूँ मगर मुझको ये मालूम नही/इस कड़ी धूप में क्यूँ दूर मेरा साया है“,तो श्रोताओं ने तालियों की गड़गड़ाहट से शायरा की सराहना की।
डा अर्चना त्रिपाठी
डा अर्चना त्रिपाठी का कहना था कि, “अँगड़ाइयां लेने लगी है मेरी भी तन्हाइयाँ/अब साथ चलने लगी हैं किसी की परछाइयाँ“। लता प्रासर ने कहा – “जिस रास्ते से मैं रोज़ गुज़रती हूँ/ वहाँ पीपल मेरा इंतज़ार करता है/झाड़ियाँ झूम–झूम दुलराती है“। मधु रानी ने चुनावी मौसम में नेताओं का कजितर खींचते हुए कहा कि, “थोड़ी सी खींसे निपोड़े/नेताजी हैं कर जोड़े/ तनिक आग्रह तनिक लज्जा /तनिक प्रेम मनुहार,गली–मुहल्ले घूम–घूम कर / कर रहे चुनाव–प्रचार“। श्वेता मिली ने एक भारतीय दुल्हन का चित्र इस तरह खींचा कि “चौखट–चौबारे आई नई दुल्हन/दायित्वों के बोझ तले दबी नई दुल्हन/चाभियों के गुच्छों में/अनगिनत तालों में/ जकड़ी नई दुल्हन सपनों को संदूक में सौंप चली दुल्हन“।
कल्याणी कुसुम सिंह
वरिष्ठ कवयित्री कल्याणी कुसुम सिंह,कालिन्दी त्रिवेदी,डा पूनम आनंद,पुष्पा जमुआर,डा सुधा सिन्हा,लता प्रासर,डा सीमा यादव,डा शांति ओझा,डा सुलक्ष्मी कुमारी,डा सुधा सिन्हा,पूनम सिन्हा श्रेयसी,रेणु श्रीवास्तव,अनुपमा नाथ,विभा रानी श्रीवास्तव,अनिल विर्णवे,डा रेखा मिश्र,डा रजनी श्रीवास्तव,डा उषा सिंह,डा मीना कुमारी,रेखा भारती,डा सुनीता बरणबाल,पूजा ऋतुराज,सुनीता गुप्ता, डा शहनाज़ फ़ातमी और कुमारी मेनका ने भी अपनी रचनाओं के सुमधुर पाठ से श्रोताओं का ध्यान खींचा।कवयित्री सम्मेलन का संचालन डा शालिनी पाण्डेय ने किया।
अनिल सुलभ
इसके पूर्व,सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ समेत अनेक साहित्यकारों और प्रबुद्धजनों ने गिरिजा जी के चित्र पर माल्यार्पण और पुष्पांजलि कर अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की। अपने उद्गार में डा सुलभ ने कहा कि,गिरिजा जी एक अत्यंत प्रतिभाशाली कवयित्री और निबंधकार थीं। उनकी शिक्षा–दीक्षा बनारस विश्वविद्यालय से हुई और उन्हें आचार्य हज़ारी प्रसाद द्विवेदी,डा नामवर सिंह, पं त्रिलोचन शास्त्री जैसे विद्वान आचार्यों से शिक्षा और साहित्य का ज्ञान प्राप्त करने का अवसर मिला। उनकी रचनाओं में उनकी प्रतिभा और विद्वता की स्पष्ट झलक मिलती है। उनकी विनम्रता और उनका आंतरिक सौंदर्य,उनके विचारों, व्यवहार और रचनाओं में अभिव्यक्त हुआ है। उनके व्याख्यान भी अत्यंत प्रभावकारी होते थे। उनके चेहरे पर सदा एक स्निग्ध मुस्कान खिलती रहती थी, जो उन्हें विशिष्ट बनाती थी।
समारोह के मुख्य अतिथि और वरिष्ठ साहित्यकार जियालाल आर्य,गिरिजा जी के पति और सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्र नाथ गुप्त,मृत्युंजय मिश्र ‘करुणेश‘,डा शंकर प्रसाद,डा मधु वर्मा,प्रधानमंत्रीमंत्री डा शिववंश पांडेय,डा जंगबहादुर पाण्डेय,कृष्णकांत शर्मा,अमियनाथ चटर्जी,डा नागेश्वर प्रसाद यादव,आरपी घायल,रमेश कँवल,डा मेहता नगेंद्र सिंह,श्रीकांत सत्यदर्शी,अंबरीष कांत,आचार्य आनंद किशोर शास्त्री,डा विनय कुमार विष्णुपुरी आदि ने भी अपने उद्गार व्यक्त किए।