पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने फिर एक बात दोहराई है. उन्होंने कहा कि यही कारण है कि बिहार में एक आईएएस के तबादले में 50 लाख से एक करोड़ रुपए तक की वसूली की जाती है.
मांझी जब मुख्यमंत्री थे तब भी यही बात कहते थे. अब पद पर नहीं हैं तब भी यही दोहरा रहे हैं.
भ्रष्टाचार के मामले में मांझी ऐसे बयान देते रहे हैं. याद करें कि उन्होंने मुख्यमंत्री रहते यहां तक कहा था कि सरकारी भवन निर्माण में भ्रष्टाचार करने का अपना पैमाना है. एक इमारत निजी स्तर पर हम अगर दस लाख में बना सकते हैं तो वही इमारत 30 लाख के बजट पर बनती है. बाकी पैसे ऊपर से ले कर नीचे तक जाते हैं. इतना ही नहीं मांझी ने तब यह भी कहा था कि भ्रष्टाचार के पैसे सीधे अण्मेमार्ग तक पहुंचते रहे हैं.
हर स्तर पर भ्रष्टाचार से इनकार नहीं किया जा सकता. पर सवाल है कि मुख्यमंत्री रहते एक नेता जब ऐसी बात कहता है तो उन्हें किसने रका था कि वह इस सिस्टम को कंट्रोल करें. खुद मांझी के दौर में दर्जनों आईएएस अफसरों के तबादले हुए. क्या उन्हें इन तबादलों की सच्चाई क्यों नहीं बतायी. मांझी ने मुख्यमंत्री रहते यह भी कहा था कि सीएम बनने के बाद पहले कुछ दिनों तक तो वह महज फाइलों पर दस्तखत करते थे.
मांझी अब मुख्यमंत्री नहीं है. हालांकि संभव है कि उनके आरोपों में सच्चाई हो. पर एक विरोधी पार्टी के नेता होने के नाते उनके आरोपों की गंभीरता से तभी लिया जा सकता है जब वह इन आरोपों को साबित करने के लिए कुठ ठोस जानकारी दें. उन्हें चाहिए कि वह ऐसे मामलों की जांच करने की मांग रखें और संबंधित एजेंसी को ठोस प्रमाण भी दें ताकि सच्चाई सामने आ सके. वरना कहके निकल जाने से उनके आरोपों की गंभीरता कमजोर होती चली जायेगी.