कर्नाटक के नाटक का क्लाइमॅक्स अभी बाकी है लेकिन इस नाटक का सबसे दुखद पहलू यह है कि राज्यपाल से लेकर न्यायिक व्यवस्था का हर चेहरा बेनकाब होकर सामने आ चुका हे.करनाटक के राज्यपाल ने कांग्रेस और जे डी एस को नजरअंदाज करके जिस तरह यदुरप्पा को फ्लोर टैस्ट के लिए पंद्रह दिन का समय दिया , इससे मोदी के करीबी कहे जाने वाले वजुभाई वाला ने राज्यपाल की मर्यादा को ही समाप्त कर दिया।
– तबस्सुम फातिमा
सुप्रीम कोर्ट आसानी से राज्यपाल के निर्णय को अस्वीकार कर सकता था लेकिन शनिवार के दिन 4 बजे का समय दे कर सुप्रीम कोर्ट ने भी अपनी ज़िम्मेदारी से पलड़ा झाड़ लिया। । हो सकता है कि यदुरप्पा हॉर्स ट्रेडिंग के खेल में सफल रहे हों। विजयी उम्मीदवार में कई ऐसे हैं जो उनके दोस्त रहे हैं। ऐसे कारनामे अमित शाह और यदुरप्पा के लिए असम्भव नहीं कहे जा सकते । राजपाल का निर्णय 17 मई की रात को को आता है और 16 मई को ही यदुरप्पा को इसकी खबर हो जाती है। इस तरह के कई फैसले बाद में आते हैं, लेकिन बीजेपी नेताओं को सारी जानकारी पहले ही मिल जाती है।
हम कहाँ आ रहे हैं? कर्नाटक के चुनाव परिणामों के बाद अब यह सवाल अनावश्यक है। । कांग्रेस के सभी आरोपों का बीजेपी के पास केवल एक ही जवाब था कि यह राजनीति उसने ने कांग्रेस से ही सीखा है। कांग्रेस ने सत्ता में अपनी शक्ति का ऐसा ही प्रदर्शन किया था। यह बीजेपी का आधा सच है। आधा सच यह है कि सरकार के गठन और हिंदू राष्ट्र के निर्माण के लिए भाजपा अब सभी राजनीतिक नैतिकता को पार कर चुकी है।
मोदी सरकार के चार वर्षों में सभी प्रमुख संस्थान मोदी और अमित शाह के अधीन रहे हैं। । चुनाव आयोग, सीबीआई ,न्यायपालिका, चीफ जस्टिस, आरबीआई से आगे बढ़ें तो राष्ट्रपति और उप राष्ट्रपति भी मोदी और अमित शाह के सामने सर झुकाये और हाथ जोड़े खड़े रहते हैं .किसी भी सरकारी संस्थान के पास मोदी के खिलाफ निर्णय लेने की कोई शक्ति नहीं है। 2006 में एक चुनावी फैसले को ध्यान में रखते हुए सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा बयान जारी किया था कि भारत का राष्ट्रपति कोई राजा नहीं है। आज की तारीख में, बीजेपी ने सभी राज्यपालों को राजा की स्थिति दी है और आप राजा के आदेश को चुनौती नहीं दे सकते।
तानाशाही की ओर
तानाशाही का खेल इस समय सारी दुनिया में चल रहा है है। अमेरिका, रूस और चीन भी इस कदम का पालन कर रहे हैं। । यदि आप पाकिस्तान के राजनीतिक खेल को देखते हैं, तो यहां बहुत कुछ ऐसा है, जो भारत में हो रहा है। पाकिस्तानी न्यायपालिका ने नवाज शरीफ को अयोग्य घोषित कर दिया है । दोनों देशों के राजनितिक खेलों में समानता है। भाजपा ने कांग्रेस मुक्त भारत का नारा लगाया तो राजनीतिक नैतिकता की हर सीमा पार करते हुए उसके पास सिर्फ एक रास्ता रह गया कि संविधान, कानून, न्याय , राजयपाल सबको अपनी झोली में डालो और प्रत्येक राज्य में अपनी सरकार बना डालो।
जो जीता वही सिकंदर जैसे मुहावरों को इतिहास किताबों में दफन किया जा चुका है । झूठ , अविश्वास, जालसाज़ी , शक्ति के प्रदर्शन ने भारत के गौरवशाली इतिहास की धज्जियां बिखेर दी हैं। केवल जीतना ही लक्ष्य रह गया है । कांग्रेस भी इसी दिशा में आगे बढ़ रही है। लोकतंत्र कब का मर चुका है।
झूठ, फरेब, मक्कारी
हम एक नयी राजनीति को सलाम कर चुके हैं जहां दलील और क़ानून कोई मायने नहीं रखता। इन परिस्थितियों में यह सोचना भी जरूरी है कि हम एक झूठे और फरेबी भारत की तरफ बढ़ रहे हैं। क्या हम ने नाजायज़ , झूठ , रिश्वत, भ्रष्टाचार और अन्याय की ताक़तों को क़बूल कर लिया है ? देश की नई छवि में सभी गलत और अनुचित की परिभाषाएं बदल गई हैं। पूर्व प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह को भारत के राष्ट्रपति को एक पत्र लिखना पड़ा कि प्रधान मंत्री मोदी निरंतर धमकियों की राजनीति कर रहे हैं और राष्ट्रपति अपनी स्थिति का अपमान कर रहे हैं। एक ट्वीट में कहा गया कि यह मोदी एक लहर नहीं है। वास्तव में यह अमित शाह – क़हर है। । यह सोचने की बात भी है कि क्या भारतीय जनता को इस बदली हुई राजनीती का कोई एहसास नहीं है ?। यदि जनता आसानी से लोकतंत्र की हत्या को सहन करती है , तो यह भी विश्लेषण किया जाना चाहिए कि देश के बहुमत ने मोदी और अमित शाह के प्रत्येक अनुचित कारनामों को सहजता से स्वीकार किया है। और अब देश उसी मार्ग पर चलेगा जिस पर मोदी और अमित शाह इस देश को लिए जा रहे हैं।
हार्स ट्रेडिंग के खेल से भी राजनीति काफी आगे निकल चुकी है। । कांग्रेस अभी भी इस खेल में पीछे है। कर्नाटक ने आगे बढ़ कर नया इतिहास रचा है। अब राजनीती जीत हार के परिणामों से आगे निकल चुकी है। हमारी सहजता भयानक दौर से गुज़र रही है। इसके परिणाम भी भयानक होंगे। आने वाले भविष्य में राजनीती का नया चेहरा पूरी तरह सङ्गल चुका होगा। हम नैतिकता के अंतिम चरण से गुज़र रहे हैं।