गुलाम नबी के आगे मोदी का रोना: Irshadul Haque का विश्लेषण

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Irshadul Haque, Editor naukarshahi.com

गुलाम नबी आजाद ( Ghulam Nabi Azad) के सामने, भरी सभा में फफक-फफक कर नरेंद्रे मोदी का रोना सारी दुनिया ने देखा.

प्रधान मंत्री बनने के बाद यूं तो नरेंद्र मोदी अनेक बार सार्वजनिक मंच पर रोते-बिलखते देखे गये हैं. लेकिन राज्यसभा में आज गुलाम नबी आजाद के विदाई समारोह में नरेंद्र मोदी का रोना कुछ खास था. उनका गला रुंधता जा रहा था. वह बार बार पानी पीते जा रहे थे. कई बार तो ऐसा भी हुआ कि जब बोल नहीं पाये तो आधी बातें इशारों में कही.

नरेंद्र मोदी ने एक वाक्ये का जिक्र किया. वह उच्च सदन में कांग्रेस के नेता गुलाम नबी आजाद के विदाई के असर पर उनके योगदान की चर्चा कर रहे थे. मोदी ने कहा- जब गुलाम नबी आजाद जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री थे तो वहां आतंकी हमला हुआ था. तब मैं भी मुख्य मंत्री था. तब आठ गुजरातियों की आतंकियों ने हत्या कर दी थी. गुलाम नबी साहब ने मुझे फोन कर के इसकी जानकारी दी. उन्होंने एक अभिभावक की तरह भूमिका निभाई. मैंने उनसे तब कहा कि मृतकों को गुजरात भेजने का इंतजाम कर दिया जाता. गुलाम नबी साहब ने अपनी तरफ से निजी दिलचस्पी ली और तमाम मृतकों को गुजरात पहुंचाया. पहुंचाने के बाद फिर उन्होंने फोन किया कि तमाम डेडबा़डी पहुंचा दी गयी है. इतना कहते ही मोदी का गला रुंध गया. वह बोले देश उनकी भूमिका को हमेशा याद रखेगा. उनके अनुभवों का लाभ देश को आगे भी मिलता रहे.

गुजरात दंगे का अपराध बोध

अब सवाल यह है कि अपने धुर विरोधी कांग्रेस के एक नेता के उस योगदान को याद करना जिसमें उन्होंने एक मुख्यमंत्री का दायित्व निभाते हुए आतंकी हमले में मौत के शिकार लोगों को मोदी के राज्य में पहुंचा दिया. इस पर इतने भाउक क्यों हुए मोदी?

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गुलाम नबीआजाद 2005 से 2008 तक जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री थे. उस समय नरेंद्र मोदी गुजरात के सीएम थे. तब तक गुजरात के भयावह दंगे हो चुके थे. नरेंद्र मोदी पर इन दंगों को ना रोकने का भरपूर इल्जाम लगा था. 2000 से ज्यादा लोगों की हत्या हुई थी. इनमें ज्यादातर मुसलमान थे. तब नरेंद्र मोदी पर ये भी आरोप लगे थे कि उन्होंने साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण का चुनावी लाभ उठाने के लिए मुसलमानों की रक्षा नहीं की थी. बाद के दिनों में जब मोदी से गुजरात दंगों के बारे में पूछा गया था तो उनका जवाब बड़ी निराशाजनक था. उन्होंने तब कहा था कि “कुत्ते का बच्चा भी गाड़ी के नीचे आ जाये तो दुख होता है”. मोदी के इस जवाब को मुसलमानों के प्रति उनकी भावना के रूप में देखा गया था.

वहीं नरेंद्र मोदी आज गुजरातियों की हत्या के बाद, तब के जम्मू कश्मीर के मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद की मानवीय संवेदना का बखान कर रहे थे. जबकि मोदी का दामन दंगों के छीटों से दागदार है. क्या मोदी के ये आंसू एक अपराध बोध और आत्मग्लानि के आंसू थे. क्या उनकी आत्मा से यह आवाज आ रही थी कि गुलाम नबी आजाद ने मानवता की जो उच्चचस्तरीय नजीर पेश की उसके सामने मोदी का व्यवहार काफी निचले स्तर का था. अगर मोदी गुजरात दंगों के दौरान अपनी भूमिका पर आत्मग्लानि और अपराधबोध के शिकार हुए इसलिए रो पड़े. मुझे नहीं मालूम ऐसा है या नहीं, लेकिन अगर ऐसा है तो मोदी के इस आंसू का सम्मान किया जाना चाहिए.

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