इस्लाम ने हमेशा भाईचारा, सहनशीलता और अमन का पैगाम दिया
इस्लाम और कुरान ने अपने अनुयायियों को बार-बार इस बात पर बल दिया है कि वे सौहार्द, शांति और सहअस्तित्व को स्थापित करें और इन सिद्धांतों पर पूरी मजबूती के साथ अमल करें.ताकि इस से समाज में शांति और सहअस्तित्व को बढ़ावा मिल सके.
अकसर यह देखा गया है कि धर्म, जाति, भाषा, नस्ल, खान-पान, रहन-सहन आदि के आधार पर भेदभाव उत्पन्न होते हैं. इससे समाज के एक हिस्से में असुरक्षा की भावना बढ़ती है. पते बात यह है कि जानवर और पक्षी भी आपसी मेल मिलाप से एक दूसरे के साथ रहते हैं. यह मानवता के लिए एक संदेश है.
जब इसाइयों ने मस्जिद में इबादत की
एक बार का वाक्या है कि मस्जिद नबवी में असर की नमाज अदा करने के बाद पैगम्बर मोहम्मद साहब सहाबा के साथ बात चीत में तल्लीन थे. इसी बीच इसाइयों की जमात जिसमें 50-60 लोग शामिल थे, उनके हाथों में पोस्टर था. वे मस्जिद में बिना अनुमति के दाखिल हो गये और अपने मजहबी अंदाज में इबादत करने लगे. ऐसा होते देख सहाबा गुस्से में आ गये और उन्हें वहां इबादत करने से रोकने की कोशिश करने लगे. लेकिन पैगम्बर साहब ने उन्हें शांत रहने को कहा और इसाइयों को उनकी शैली में इबादत करने देने को कहा. जब इसाइयों ने अपनी इबादत खत्म कर ली तो पैगम्बर ने उनसे बड़ी ही स्नेह भरे अंदाज में बातचीत शुरू की. उन्होंने अपने अनुवाइयों को कहा कि वे कहीं भी ईसाइयों के इबादतखानों को नुकसान न पहुंचायें. इतना ही नहीं उन्होंने इसाइयों को पूरी आजादी दी कि वे अपने तौर तरीके के अनुसार इबादत करें.
जानिये अफो या माफ करने का क्या है इस्लामी सिद्धांत
पैगम्बर मोहम्मद साहब ने अन्य धर्मावलम्बियों के साथ सौहार्द, प्रेम और सहनशीलता की ऐसी मिसाल पेश की. उन्होंने न सिर्फ इसाइयों को बल्कि अन्य धर्मों के लोगों को भी पूरी स्वतंत्रता दी कि वे अपने तौर तरीके से अपने धर्म पर चलें और इबादत करें. पैगम्बर साहब के ऐसे बरताव ने पूरी दुनिया में शांति और भाईचारे का संदेश दिया. इससे आगे चल कर दुनिया में अमन व भाईचारे को बल मिला.