इस्तीफे की सियासत से शरद पवार ने भाजपा के मंसूबे को रौंद डाला

सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले भाजपा ऑपरेशन कमल की फिराक में थी, लेकिन इस्तीफे की सियासत से शरद पवार ने भाजपा के मंसूबे को रौंद डाला।

एनसीपी अध्यक्ष शरद पवार ने शुक्रवार को अपना इस्तीफा वापस ले लिया। उन्होंने तीन दिन पहले 2 मई को अध्यक्ष पद से इस्तीफा दिया था। शिंदे गुट के विधायकों के सवाल पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले भाजपा ऑपरेशन कमल की फिराक में थी, लेकिन इस्तीफे की सियासत से शरद पवार ने भाजपा के मंसूबे को रौंद डाला। 2 मई से पहले महाराष्ट्र की राजनीति में भाजपा भारी थी। माना जा रहा था कि शरद पवार के भतीजे अजीत पवार एनसीपी के 40 विधायकों को लेकर भाजपा के साथ मिल जाएंगे और भाजपा के साथ सरकार बनाएंगे। लेकिन अब इसकी संभावना पर शरद पवार ने पानी फेर दिया।

शिंदे गुट बनाम उद्धव ठाकरे के बीच विवाद के मामले पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई पूरी कर चुका है। फैसला सुप्रीम कोर्ट ने सुरक्षित रखा है। सुनवाई सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डीवीई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली बेंच ने सुनवाई की है। कोर्ट अपना फैसला इसी महीने सुना सकता है। सुनवाई के दौरान जिस प्रकार कोर्ट ने सवाल किए, उससे अनुमान लगाया जा रहा है कि कोर्ट शिंदे गुट के सभी विधायकों की बगावत को अवैध करार दे सकता है। तब वर्तमान भाजपा सरकार अल्पमत में आ जाएगी और सरकार का गिरना तय है। इसीलिए भाजपा चाहती थी कि सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने से पहले वह एनसीपी को तोड़ दे और शिंदे के खिलाफ फैसला आने पर नई सरकार बना ले।

2 मई से पहले एनसीपी में टूट की साफ संभावना दिख रही थी। कहा जा रहा था कि अजीत पवार के साथ 40 विधायक भाजपा के साथ जा सकते हैं। ठीक उसी समय शरद पवार ने पार्टी से इस्तीफे की घोषणा कर दी। इसके बाद पूरा माहौल ही बदल गया। पूरे महाराष्ट्र में शरद पवार पद पर बने रहें, इसके लिए आवाज उठने लगी। पूरी पार्टी एकजुट हो गई। यह एनसीपी समर्थकों के दबाव का ही नतीजा था कि पवार ने वैकल्पिक व्यवस्था बनाने के लिए जो कमेटी बनाई, उस कमेटी ने भी पवार का इस्तीफा नामंजूर करते हुए उनसे पद पर बने रहने की अपील की। इसके बाद शुक्रवार को शरद पवार ने अपना इस्तीफा वापस ले लिया। शरद पवार ने अपने राजनीतिक दांव से न सिर्फ पार्टी में टूट की संभवना को खत्म कर दिया, बल्कि भजपा के मंसूबे पर भी पानी फेर दिया।

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By Editor