जलियावाला नरसंहार जिसने राष्ट्रीय आंदोलन व राष्ट्रवाद की भावना को ऊंचाइयों पर पहुंचा दिया
जलियावाला बाग/ अमृतसर नरसंहार ( 13 अप्रैल 1919) भारतीय इतिहास का काला दिन के तौर पर याद किया जाता है. इस दिन ब्रिटिश फौज के द्वारा एक हजार से ज्यादा भारतीयों को मौत के घात उतार दिया गया था.
इस घटना के बाद विदेशी राज के खिलाफ व्यापक जनप्रदर्शन की शुरुआत हुई और इसके बाद राष्ट्रीय आंदोलन का रूप लेने लगा.जड़ें राउल्ट एक्ट के विरोध में उपजे आंदोलन को दबाने के लिए ब्रिटिश सरकार ने हर तरह का जोर जुल्म भारतीयों पर कर रही थी.दर असल इस एक्ट की परिणति डिफेंस ऑफ इंडिया एक्ट 1915 के रूप में हो चुकी थी जो आम नागरिकों के अधिकारों को सीमित करता था. भारतीयों द्वरा इस एक्ट के भारी विरोध को भांप कर अंगरेजी हुकूमत ने सार्वजनिक मीटिंगों और नागरिक अधिकारों को सीमित कर दिया था.
बैसाखी के दिन हुई घटना
जिस दिन यह नरंसहार हुआ वह बैसाखी का दिन था. बैसाखी पंजाबियों को मुख्य त्यौहार है. इस अवसर पर विभिन्न धार्मिक समूहों ने मिल कर एक सभा का आयोजन किया था. उस दिन कर्नल डायर अपनी सेना के साथ सभास्थल पर पहुंचा और निहत्थों पर अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी.
इस फायरिंग के नतीजे में 379 लोगों की जान गयी और ग्यारह सौ से ज्यादा लोग घायल हुए. कांग्रेस ने दावा किया कि इस घटना में एक हजार से ज्यादा लोग शहीद हुए. ब्रिटिश हुकूमत की यह करतूत मानवता के खिलाफ एक बड़ा अत्याचार था जिसने पूरे राष्ट्र को सदमें में डाल दिया.
इस जनसंहार के विरोध में रविंद्र नाथ टौगोर ने नाइटहुड सम्मान का बहिष्कार किया और कहा कि इस नरसंहार के बाद किसी भी तरह के सम्मान का कोई अर्थ नहीं रह जाता.
इस घटना के बाद ब्रिटिश हुकूमत ने फौज की गतिविधि को भले ही सीमित कर दिया पर उसके उपयोग के जरिये भीड़ पर नियंत्रण जारी रखा. साथ ही उसने देश के नागरिकों को बांटने की रणनीति अपनानी शुरू कर दी. इसके बाद उसने भारत के लोगों को धर्म, जाति और भाषा के आधारा पर बांट कर आजादी के आंदोलन को कमजोर करने की कोशिश की.