बुधवार को बिहार विधान मंडल के शीतकालीन सत्र का चौथा दिन था। इस सत्र में हम पहली बार मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के चैंबर में पहुंचे। भोजनावकाश के बाद का समय था। चैंबर खचाखच भरा था। अधिकतर पत्रकार और कुछ विधायक। हम भी जगह देखकर कुर्सी लपक लिये। मुख्यमंत्री विभिन्न मुद्दों पर पत्रकारों से चर्चा कर रहे थे। इसी क्रम में लड्डू का दौर भी चला। मौका देखकर हमने ‘वीरेंद्र यादव न्यूज’ की कॉपी मुख्यमंत्री को भेंट की और फिर हमने कुर्सी संभाल ली। इस बार हम थोड़ा कुर्सी के मामले में आगे बढ़ चुके थे।
बिहार विधान सभा स्थित सीएम चैंबर से लाइव
वीरेंद्र यादव
मुख्यमंत्री के साथ पत्रकारों की चर्चा जारी रही। दरबार का ‘आशीर्वाद’ के लिए विधायकों का आना-जाना लगा रहा। इसी बीच एक पूर्व विधायक का आगमन हुआ। वह भी नालंदा के ‘पटेल साहेब’ थे। नाम भी बहुचर्चित। राजीव रंजन। पहले जदयू के विधायक थे, अब भाजपा के प्रवक्ता हैं। वे दरवाजे के अंदर आकर आशीर्वाद का इंतजार करते रहे। मुख्यमंत्री की नजर उन पड़ी। दरबार ने उनसे बैठने का आग्रह किया। वे जगह देखकर बैठ गये। चर्चा यथावत जारी रही। इसके बाद मुख्यमंत्री सदन में जाने के लिए उठे।
इस बीच खड़े-खड़े बातचीत भी जारी रही। बात झारखंड चुनाव तक पहुंच गयी। तब तक राजीव रंजन भी बातचीत में शामिल हो गये। एक पत्रकार ने पूछ लिया- राय जी (सरयू राय) के प्रचार में झारखंड जाएंगे न। किसी ने कहा कि वे सरयू राय की पैरवे पर ही झारखंड में बड़े पद की जिम्मेवारी ढो रहे थे। दूसरे ने कहा- सबका अपना-अपना भाग्य होता है। इस मुख्यमंत्री ने कहा- इनका भाग्य था कि दुर्भाग्य था। अगर जदयू छोड़ कर नहीं जाते तो नालंदा से एमपी यही न होते। तीन बार से वह (कौशलेंद्र कुमार) सांसद बन रहा है। मुख्यमंत्री की बात सुनते ही राजीव रंजन का चेहरा उतर गया।
इसी संदर्भ में एक और प्रसंग राजीव रंजन से जुड़ा हुआ बता दें। वह दौर जनता दरबार का था। सीएम हाउस एक अण्णे मार्ग में जनता दरबार के बाद मीडिया दरबार लगता था और इसके बाद ‘मिनी मीडिया’ दरबार। इसमें कुछ चुनिंदा पत्रकार ही शामिल होते थे। उनमें हम भी शामिल थे। एक दिन राजीव रंजन की चर्चा की छिड़ी। तब मुख्यमंत्री ने बताया था कि 2013 में भाजपा के सरकार से अलग होने के बाद बड़ी संख्या में मंत्रियों के पद खाली हुए थे। उस समय राजीव रंजन सरकार में नंबर दो स्थान चाहते थे यानी उपमुख्यमंत्री। लेकिन मुख्यमंत्री ने उनकी इच्छा पूरी नहीं की और इसके बाद राजीव रंजन बागी हो गये थे। 2017 में राजीव रंजन पटना में कुर्मी सम्मेलन करने की घोषणा कर चुके थे, लेकिन भाजपा के दबाव में उन्होंने इस प्रस्ताव को ‘कोल्ड स्टोर’ में डाल दिया था। उस दौर में नीतीश कुमार और सुशील मोदी में ‘गठबंधन’ हो चुका था।