Bihar Election:मांझी की नैया न घर की न घाट की
अपने राजनीतिक विचार और गठबंधन को झटके में मांझी कब बदल दें यह खुद मांझी को भी नहीं पता. ऐसे में बड़ा सवाल है कि क्या मांझी इस बार ना घर के रहेंगे ना घाट के?
जीतन राम मांझी( Jitan Ram Manjhi) एक ऐसे नेता का नाम है जिनकी झोली में मुख्यमंत्री का पद ठीक वैसे ही आ टपका था जैसे मनमोहन सिंह की झोली में प्रधान मंत्री की कुर्सी आ गिरी थी. लेकिन मनमोहन सिंह और मांझी में एक बुनियादी फर्क था. मनमोहन सिंह के पास दो बड़ी विशेषता थी. पहली- वह अपनी पार्टी की अध्यक्ष सोनिया गांधी के प्रति लॉयल बने रहे. और दूसरी- एक बेहतरीन प्रशासक की तरह दस वर्षों तक देश चलाते रहे.
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लेकिन जीतन राम मांझी इन दोनों मोर्चों पर नाकाम साबित हुए. हां उन्होंने अपने नौ महीने के कार्यकाल में इतना जरूर किया कि अम्बेडकरवादी दलितों के दिलों में अच्छी पकड़ बनाने में कामयाब रहे. लेकिन कुर्सी हाथ से जाने के बाद ना तो वह दलितवादी राजनेता रह पाये और ना ही अम्बेडकरवादी आइडियलॉजी पर कायम रह सके. 2015 के शुरुआत होते ही जब मांझी को नीतीश कुमार ने सत्ता से बाहर का रास्ता दिखा दिया तो उन्होंने अपनी नैया को भाजपा के साहिल पर लगा दिया. नतीजा यह हुआ कि अम्बेडकरवादी समाज ने उन्हें भी दरकिनार कर दिया.
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2015 के बाद से मांझी की नैया अलग-अलग पर भिन्न साहिलों पर टिकती रही. कभी वह घोर हिंदुत्व का झंडा बुलंद करते हुए भाजपाई खेमे में रहे तो कभी राष्ट्रीय जनता दल के सामाजिक न्याय का नारा बुलंद करते रहे. अब जब 2020 के बिहार चुनाव का सीजन सर पर है तो फिर मांझी की नैया डोल रही है. एक सुबह वह अपने विरोधी रहे नीतीश के चौखट पर नजर आते हैं तो दूसरी सुबह तीसरा मोर्चा खड़ा करने का प्रयास करते दिखते हैं. मांझी की नैया की यही डोलमडोल स्थिति मांझी को बेजनाधार का नेता बना कर छोड़ दिया है.
यही कारण है कि राजद नेता तेजस्वी यादव ने उन्हें घास डालना छोड़ दिया. क्योंकि उन्हें पता है कि मांझी की स्वीकृति खुद दलितों में भी नहीं बची है. ऐसे में वह एक ऐसे हाथी से दोस्ती का कोई लाभ नहीं देखते जिसके लिए भारी भरकम चारा तो चाहिए पर वह हाथी बोझ उठाने के काबिल ही ना हो.
राजद से रिश्ते टूटने के पहले से ही मांझी ओवैसी की पार्टी से भी दोस्ती करने का प्रयास कर चुके हैं. पर वह प्रयास भी अभी तक बेनतीजा रहा है. अब खबर है कि वह थर्ड फ्रंट के लिए भी अपना दरवाजा खुला रखना चाहते हैं.
उधर मांझी की पार्टी हिंदुस्तान अवाम मोर्चा के एक नेता ने हालांकि साफ कहते हैं कि उनकी पार्टी वाया जदयू एनडीए का हिस्सा बन चुकी है. बस घोषणा बाकी है. लेकिन दूसरी तरफ हकीकत यह भी है कि जब से वह नीतीश कुमार से मिले हैं तब से उन्होंने अपनी पार्टी की कोर कमेटी की बैठक को दो बार स्थगित कर चुके हैं. वह आखिरी फैसला ले पाने के लायक भी खुद को महसूस नहीं कर पा रहे हैं. उधर सूत्र बताते हैं कि उनके डील के दरवाजे अब भी प्रस्तावित थर्ड फ्रंट के लिए खुले हैं. लेकिन बात किसी नतीजे तक नहीं पहुंच पा रही है.
रा