आतंक की आरोपी प्रज्ञा पर BJP का प्रेम DSP देविंदर के लिए प्रेरणा तो नहीं?
आतंकियों से सांठगांठ में DSP देविंदर सिंह की गिरफ्तारी का एक पक्ष यह है कि आतंक की आरोपी प्रज्ञा ठाकुर को संसद में भेजने को तर्कसंगत मानना बड़ी भूल है.
आतंकवादियों से सांठगांठ में DSP देविंदर सिंह की गिरफ्तारी पर चिंता जताने वालों जरा सोचों कि आतंकवाद की आरोप झेल रही प्रज्ञा ठाकुर को संसद में भेजने को तर्कसंगत मानना क्या देविंदर जैसों का हौसला बढ़ाना तो नहीं हैं?
इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट कॉम
जम्मु कश्मीर के डीएसपी देविंदर सिंह की मिलिटेंट्स के साथ हुई गिरफ्तारी से देश में बवंडर मचा है. क्योंकि देविंदर सिंह को ऐसे समय में गिरफ्तार किया गया है जब वह हिजबुल मुजाहिदीन के दो मिलिटेंट्स को दिल्ली ले जा रहा था.
इनमें से एक मिलिटेंट नवेद के सर पर 20 लाख रुपये का इनाम रखा गया था. गणतंत्र दिवस के कुछ दिन पहले दिल्ली में एंट्री देने के मकसद के पीछे किसी बड़ी साजिश की बात कही जा रही है. हालांकि जम्मु कश्मीर पुलिस के इंस्पेक्टर जेनरल ने इस बड़ी घटना को ‘पैसे के लेन देन’ तक सीमित करने की कोशिश की है.
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जेके पुलिस का कहना है कि इस मामले में देविंदर के अलावा किसी और अफसर की संलिप्तता नहीं है.
देविंदर की गिरफ्तारी जब से हुई है तब से कुछ नये तथ्य और रहस्य भी सामने आये हैं. कुछ मीडिया में यह खबर चल रही है कि देविंदर सिंह का सम्पर्क अफजल गुरू से भी रहा है. अफजल गुरू को 2013 में फांसी पर लटका दिया गया था क्योंकि अजफल 2001 के पार्लियामेंट में हमले की साजिशकर्ताओं में से एक था.
अफजल गुरू से संबंध
दी वायर में सिद्धार्थ वर्द्धराजन ने लिखा है कि अफजल गुरू ने अपने अनेक इकबालिया बयान में देविंदर सिंह का जिक्र किया था. देविंदर सिंह ने 2000 में अफजल गुरू को अरेस्ट किया था लेकिन उससे 80 हजार रुपये ले कर छोड़ भी दिया था. अफजल गुरू से देविंदर के तबसे लगातार संबंध बने रहे और देविंदर ने ‘मोहम्मद’ नाम के एक व्यक्ति को अफजल की मदद से दिल्ली पहुंचाने में मदद भी की थी. बाद में मोहम्मद एनकाउंटर में मारा गया था.
कौन हैं प्रज्ञा ठाकुर
प्रज्ञा सिंह ठाकुर 2008 के मालेगांव बम धमाके में मुख्य आरोपी रही हैं इस घटना में दस लोगों की मौत हुई थी. मालेगांव बम धमाके में प्रज्ञा सिंह ठाकुर का स्कूटर इस्तेमाल किया गया था. प्रज्ञा सिंह ठाकुर पर आतंकवाद से जुड़ी वारदात के आरोप हैं. आरएसएस और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद समेत अनेक संगठनों से जुड़ी रही प्रज्ञा ने काफी दिन जेल में बिताये लेकिन 2019 में उन्हें भाजपा ने भोपाल से लोकसभा चुनाव लड़वाय और वह जीत गयीं.
इन्हीं घटनाओं के कुछ दिन बाद यानी 2001 में संसद पर मिलिटेंट्स ने संसद पर हमला किया था.
यहां सबसे बड़ा सवाल यह है कि जब संसद पर हमले की साजिशकर्ता के साथ देविंदर के संबंध थे तो भी दविंदर के खिलाफ कोई जांच क्यों नहीं हुई? और फिर यह भी कि जम्मु कश्मीर पुलिस के इंस्पेक्टर जनरल ने यह कहने में जल्दबाजी तो नहीं दिखा दी कि डीएसपी दविंदर के अलावा पुलिस बल में और कोई नहीं जो आतंकियों को दिल्ली पहुंचाने की साजिश में जुटा हो. क्या पुलिस महकमा यह बताना चाह रहा है कि देविंदर सिंह मात्र पैसों के लिए आतंकवादियों की मदद कर रहा था. पुलिस के इस थ्युरी पर भरोसा करना आसान नहीं है.
पूछा जाने वाला सवाल
एक बात यह भी पूछी जानी चाहिए कि जब पुलिस महकमा के बड़े अफसर अतिवादियों के साथ मिल चुके हैं तो यह कोई सामान्य बात नहीं है. लेकिन दूसरी तरफ यह सवाल भी पूछा जायेगा कि जब भारतीय जनता पार्टी आतंकवाद के आरोपी प्रज्ञा सिंह ठाकुर को संसद का सदस्य बनाने में नहीं हिचकी तो एक पुलिस अफसर का आतंकवादियों के साथ हाथ मिलाने का साहस होना कोई बड़ी बात नहीं है.
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एक तरफ आप आतंकवाद के मामले में, प्रज्ञा सिंह ठाकुर के प्रति नर्मी बरतते हैं और उन्हें चुनाव लडवा कर सांसद बनवाने को जस्टिफाई करते हैं तो दूसरी तरफ आप देविंदर सिंह जैसे पुलिस अफसरों को परोक्ष रूप से प्रेरित करते हैं कि आतंकवाद से महत्वपूर्ण कुछ और चीजें भी हैं जो या तो निजी लाभ या किसी सियासी लाभ के रूप में आप हासिल करना चाहते हैं.
आतंकवाद के प्रति दोहरा मांदंड अपना कर आप आतंकवाद का खात्मा नहीं कर सकते.