कुमार अनिल
दिल्ली विधानसभा चुनाव परिणाम का असर देशभर में होने जा रहा है। आम आदमी पार्टी के संयोजक ओर पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल खुद चुनाव हार चुके हैं। उनके बाद पार्टी में दूसरे नंबर के नेता मनीष सिसोदिया भी हार गए। 2020 चुनाव में 62 सीटों पर जीत दर्ज करनेवाली पार्टी इस बार 22-23 सीटों पर समिटती दिख रही है। कुछ ही देर में अंतिम परिणाम आ जाएगा। सबसे बड़ी बात कि दिल्ली में केजरीवाल की हार से बिहार में प्रशांत किशोर की नाव डगमगाने लगी है। केजरीवाल की हार से प्रशांत किशोर की राजनीति पर संकट गहरा हो गया है।
अरविंद केजरीवाल की हार से प्रशांत किशोर की राजनीति भी फंस गई है। केजरीवाल अ-विचार की राजनीति करते हैं। उनके लिए वोट और चुनाव में जीत ही सर्वोपरि है। उन्हें विचारधारा से मतलब नहीं हैं। उन्हें आरएसएस से कोई शिकायत नहीं है और न ही संघ की विचारधारा से कोई परहेज है। पिछले दिनों उन्होंने संघ प्रमुख को पत्र लिखा था कि भाजपा ठीक से काम नहीं कर रही है, मानो संघ प्रमुख उनके अभिभावक हों।
दिल्ली दंगों के समय उन्होंने अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचार पर चुप्पी साधे रखी। कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी केजरीवाल को छोटा रिचार्ज कहते रहे हैं।
गौर से देखें तो केजरीवाल और प्रशांत किशोर की राजनीति मिलती-जुलती है। प्रशांत किशोर को भी विचारधारा की लड़ाई से कोई मतलब नहीं है। पिछले साल लोकसभा चुनाव में प्रशांत किशोर ने घूम-घूम कर टीवी चैनलों में भाजपा के लिए यह कहते हुए माहौल बनाया कि भाजपा को अकेले 300 से ज्यादा सीटें आ रही हैं। उनका निशाना तेजस्वी यादव और राजद है। कभी-कभार कहने को भाजपा से अलग राय रख देते हैं, लेकिन संघ की विचारधारा के खिलाफ लड़ते हुए वे नहीं दिखते। जाति गणना, 50 प्रतिशत आरक्षण की सीमा को समाप्त करने के मामले में भी केजरीवाल और प्रशांत किशोर लगभग एक ही हैं।
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दिल्ली चुनाव ने बता दिया कि अविचार की राजनीति नहीं चलेगी। या तो आप भाजपा और संघ के साथ रहिए या उसके खिलाफ लड़िए। केजरीवाल की हार में उन सभी राजनीतिक दलों के लिए संदेश है जो अ-विचार की राजनीति करते हैं। दिल्ली की हार से प्रशांत किशोर की राजनीति भी फंस गई है।