किसान आंदोलन के पक्ष में पहली बार दलितों का काली पट्टी अभियान
छह महीने से तीन कृषि कानूनों के खिलाफ किसान आंदोलन कर रहे हैं। उन्हें बदनाम करने, दमन करने की जितनी कोशिश होती है, उन्हें उतना ही समर्थन बढ़ता जाता है।
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आज पहली बार किसान आंदोलन के पक्ष में देशभर के दलित-पिछड़ों के संगठन भी मैदान में उतर गए। बहुजन क्रांति मोर्चा ने आज काली पट्टी निषेध आंदोलन की घोषणा की। संगठन ने एक पोस्टर जारी किया, जिसमें मोर्चा के राष्ट्रीय संयोजक वामन मेश्राम का आह्वान है। मेश्राम बामसेफ के भी राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। उन्होंने केंद्र की मोदी सरकार द्वारा किसानों पर जबरन तीन कृषि कानून थोपने और भाजपा की जिद के खिलाफ काली पट्टी लगाने का आह्वान किया।
वामन मेश्राम के आह्वान करते ही सुबह से ही सोशल मीडिया #काली_पट्टी_निषेध ट्रेंड करने लगा। #IndiaCondemnModiGovt भी ट्रेंड करने लगा। कई लाख लोग अबतक ट्विट कर चुके हैं। अधिकतर ने काली पट्टी बांधकर तीन कृषि कानूनों का विरोध किया है।
किसान आंदोलन को गैरभाजपा सभी दलों का समर्थन प्राप्त है। पहली बार मूलनिवासी, दलित और पिछड़ों के संगठन बहुजन मोर्चा खुलकर किसानों के साथ खड़ा हो गया है। इसका राजनीतिक असर होना भी स्वाभाविक है। अबतक सरकार किसान आंदोलन को धनी किसानों का आंदोलन बताती रही है। अब दलित खेत मजदूर, मेहनतकश अवाम के किसानों के साथ खड़े होने से भाजपा की परेशानी बढ़ेगी।
पंचायतें होंगी प्रशासकों के हवाले, अगले हफ्ते आ सकता है अध्यादेश
पश्चिमी यूपी में पहले ही हर धर्म के किसान एक मंच पर आ गए हैं। यह वही इलाका है, जहां दोनों समुदायों में 2019 में काफी दूरी बढ़ाई गई थी। अब वह दूरी खत्म हो गई है। इधर बहुजन मोर्चा भी किसानों के साथ आ खड़ा हुआ है, इसका असर न सिर्फ अगले साल यूपी में होनेवाले चुनाव पर पड़ेगा, बल्कि देशभर में इसका असर होगा। सोशल मीडिया पर देशभर से पोस्ट आ रहे हैं। लोग भाजपा सरकार पर गुस्से का इजहार कर रहे हैं।