किसान आंदोलन खत्म, 11 से लौटेंगे किसान, बिहार का क्या होगा?
लगभग एक साल तक चला किसान आंदोलन खत्म हो गया है। दिल्ली की सीमाओं पर बैठे किसान दो दिन बाद से लौटने लगेंगे। बिहार के किसानों का क्या होगा?
तीन कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर आंदोलन कर रहे किसान दो दिन बाद से घर लौटना शुरू करेंगे। आज संयुक्त किसान मोर्चा की देर तक तली बैठक में आंदोलन समाप्त करने का फैसला लिया। किसान नेताओं ने कहा कि किसानों पर दर्ज मुकदमे वापस लेने पर सरकार सहमत हो गई है। सारे किसान नोताओं ने इस अवसर पर कहा कि यह ऐतिहासिक जीत है।
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कहा कि अपना देश महान है, यहां सत्याग्रही किसान है! सत्य की इस जीत में हम शहीद अन्नदाताओं को भी याद करते हैं। उन्होंने एक वीडियो भी जारी किया, जिसमें जीत के साथ ही आगे आंदोलन जारी रखने की बात कही गई है।
@swati_mishr ने कहा-किसान आंदोलन ने देश में आंदोलनों के लिए एक उम्मीद जगाई है। लोकतंत्र को थोड़ा और मजबूत किया है। किसान नेता राकेश टिकैत ने सिर्फ दो शब्द ट्वीट किया-लड़ेंगे जीतेंगे।
देश में किसान आंदोलन ने इतिहास रच दिया, लेकिन इसमें बिहार कहां है? बिहार के किसान दर्शक की बने रहे। राजनीतिक दलों ने समर्थन में कार्यक्रम किया, लेकिन उसमें दलों के कार्यकर्ता ही रहे, आम किसान कभी सड़क पर नहीं आए।
बिहार के किसानों की स्थिति में कोई परिवर्तन नहीं आएगा। बिहार के किसान सरकारी रेट से कम कीमत पर धान बेचते हैं, लेकिन वे सही कीमत पाने के लिए संघर्ष करने को तैयार नहीं हैं। इसीलिए उन्हें संघर्ष के लिए तैयार करनेवाले संगठन भी नहीं हैं।
बिहार के किसानों की इस उदासी के पीछे क्या कारण है, इस पर शोध किया जा सकता है। कहा जाता है कि बिहार के किसान बाजार के लिए उत्पादन नहीं करते हैं, इसलिए एमएसपी पर आंदोलन करने को तैयार नहीं हैं। यह भी आधा सत्य ही कहा जाता है। ठीक है कि बिहार के किसान पंजाब के किसानों की तरह भारी उत्पादन बाजार के लिए नहीं करते, लेकिन बिहार के हर किसान पांच-दस क्विंटल तो बेचते ही हैं। बिहार के किसानों की उदासी के कारण यहां की सरकार भी इस सवाल पर सक्रिय नहीं दिखती कि किसान को उसकी फसल की सही कीमत मिले।
पंजाब0हरियाणा के किसानों का बड़ा हिस्सा एमएसपी पर बेचता है। कम से कम धान और गेंहू का रेट तो मिल ही जाता है। देखिए, बिहार के किसान कब अपने हक के लिए खड़े होते हैं।
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