कूल्हा टूटने पर कार्डियक प्रॉब्लम की आशंका : डॉ. शम्स गुलरेज

गोल्ड मेडलिस्ट डॉ. शम्स गुलरेज जल्द ही बिहार में भी अपनी सेवा देंगे। वे सफदरजंग अस्पताल, नई दिल्ली के स्पोट्र्स इंज्युरी सेंटर में सीनियर रेजीडेंट हैं।

डॉ. शम्स गुलरेज

डॉ. शम्स गुलरेज सफदरजंग अस्पातल, नई दिल्ली के स्पोट्र्स इंज्युरी सेंटर में सीनियर रेजीडेंट हैं। इन्होंने मणिपुर यूनिवर्सिटी से आर्थो सजरी में एमएस किया है। 2015 बैच के गोल्ड मेडलिस्ट रहे हैं। वहीं अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से एमबीबीएस किया है। इन्होंने स्कूली शिक्षा आरा से हासिल की। कहते हैं कि जल्द बिहार में सेवा देना शुरू करुंगा।

कोविड के दौरान एक डॉक्टर के रूप में आपने किस तरह की चुनौती का सामना किया?
उत्तर : भारत में जब पिछले वर्ष जनवरी-फरवरी में कोविड बढ़ने लगा था तब दिल्ली के कुछ अस्पताल में ही कोविड का इलाज हो रहा था। इसमें सफदरजंग अस्पताल भी शामिल था। उस समय काफी डर था। क्र्योंकि बीमारी नई थी। इसके बारे में बहुत कुछ जानकारी नहीं थी। वैसे, हमलोग सभी सुरक्षा उपाय मसलन-पीपीई कीट आदि मुहैया कराए गए थे। हमलोगों ने बेहतर इलाज किया और अधिकतर मरीज ठीक हो गए। उस समय दवाइयां बहुत कम थी। उस समय घर आने में भी डर लगता था। ऐसे में कोविड ड्यूटी वाले डॉक्टरों को होटल में रखा जा रहा था। चुनौतियों को मात देकर मरीज का इलाज करने में हमने कोई कमी नहीं छोड़ी।

पिछले डेढ़ वर्ष में देश में लगभग 700 डॉक्टरों की मौत हो गई जबकि बिहार में करीब 150 डॉक्टर अपनी जान गंवा दिए। इसका क्या कारण मानते हैं? क्यों ऐसा हुआ?
उत्तर : दरअसल, मरीज अचानक कोरोना का लक्षण लेकर गंभीर हालत में आ रहा था। ऐसे में उनका इलाज करना हमारा फर्ज था। इस वजह से हम डॉक्टर एक्सपोज हो रहे थे। जिसकी वजह संक्रमित भी हो रहे थे। नतीजतन हमारे कई साथी की मौत हो गई।

कोरोना काल में डॉक्टरों की क्या बेबसी रही?
उत्तर: कोरोना नई बीमारी थी। ऐसे में इसके इलाज के लिए कोई समुचित गाइडलाइन नहीं था। मरीज काफी संख्या में आ रहे थे तो ऑक्सीजन की खपत बहुत ज्यादा हो रही थी। इसकी वजह से कभी कभी ऑक्सीजन की कमी हो जा रही थी। उस स्थिति में बेबसी का सामना करना पड़ रहा था। कभी-कभी दवाइयों की भी किल्लत हो जा रही थी। देर तक पीपीई किट में रहने से पसीना हो रहा था। इस वजह डीहाईड्रेशन हो जा रहा था।

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चीन से कोरोना वायरस पूरी दुनिया में फैला। लेकिन वो बेहतर स्थिति में है, पर पूरी दुनिया परेशान है। इसका क्या कारण हो सकता है?
उत्तर : चीन की आर्थिक स्थिति अच्छी है। चीन ने तत्काल लॉकडाउन लगा दिया ताकि कोरोना का फैलाव रूक सके। घर-घर कर्मी जाते थे। लक्षण वाले लोगों को अलग रखा जाता था। प्री-फेब्रिकेटेड अस्पताल बना दिए गए।

कोरोना से कैसे उबरा जा सकता है? एक डॉक्टर के रूप में आप क्या मार्गदर्शन देंगे?
उत्तर : कोरोना से उबरने के लिए सबसे जरूरी है इसके लिए जारी गाइडलाइन का कड़ाई से पालन करना। लोग मास्क नाक के नीचे लगाते हैं या गमछा बांध लेते हैं। यह तरीका बिल्कुल कारगर नहीं है। तीन लेयर का मास्क होना जरूरी है। फिर, भारत में कोरोना का जो टीका मौजूद है, उसे तत्काल लगवाएं। सभी टीका प्रभाावकारी है। भीड़भाड़ में न जाएं। बाहर से घर आने पर सही तरीके से हाथ की सफाई करें। शारीरिक दूरी का पालन करें।

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क्या कुल्हा और हृदय का कोई संबंध है? क्योंकि देखने में आया है कि यदि किसी का कुल्हा टूटता है तो उसे कार्डियक अरेस्ट हो जा रहा है।
उत्तर : कूल्हा जब टूटता है तो आदमी चल नहीं पाता है। ऐसे में खून का सर्कुलेशन सही से नहीं हो पाता है। पैर के नस में खून जम जाता है। जब यह खून हृदय में चल जाता है तो कार्डियक अरेस्ट होता है। इसी तरह मस्ष्कि में जाता है तो मस्तिष्काघात होता है।

घुटना और कुल्हा का प्रत्यारोपण काफी बढ़ गया है। क्या इतनी जरूरत है या इलाज से भी दर्द का निवारण हो सकता है?
उत्तर: हमें अपने जीवन को दर्द रहित जीना चाहिए। यदि घुटना या कूल्हा खराब या घीस गया हो तो दवा से ठीक नहीं हो सकता है। छोटा सा ऑपरेशन कराने के लिए यदि दर्द रहित जीवन जीया जा सकता है तो क्यों दर्द लें। हमलोग 60 वर्ष के बाद घुटना प्रत्यारोपण करते हैं। उकड़ु माकर बैठना, पालथी माकर बैठना या भारतीय तरीके से शौच के लिए बैठना हानिकारक होता है। यदि किसी को घुटना खराब होने के लक्षण आने लगे तो उपरोक्त तीन चीज से परहेज करना चाहिए। हमलोग घुटना या कूल्हे का प्रत्यारोपण उनका करते हैं जिनका घुटना टेड़ा हो गया है, दर्द से नींद नहीं आती या दर्द की गोली रोज खानी पड़ती है। यदि समय से घुटना का प्रत्यारोपण नहीं कराते हैं तो कमर की हड्डी पर असर पड़ता है।

पैर फै्रक्चर होने के बाद दो-तीन माह तक बेड पर पड़े रहना पड़ता है। क्या आधुनिक काल में भी यह जरूरी है या ऑपरेशन कर के हड्डी को जोड़ा जा सकता है?
उत्तर : आधुनिक काल में यह बिल्कुल जरूरी नहीं है कि पैर की हड्डी टूट गई हो तो तीन माह बेड पर पड़े रहे। ऑपरेशन के दो-तीन दिन बाद ही व्यक्ति चल सकता है। ऑपरेशन से हड्डियां भी सही से जुड़ती हैं।

लोग अपनी हड्डी का कैसे ख्याल रखें? क्या जीवनचर्या में शामिल करें कि उनकी हड्डियां मजबूत और निरोग रहे?
उत्तर : यदि कोई रेगुलर व्यायाम करता है तो शरीर खुद को उसी के अनुसार ढालने की कोशिश करता है। इससे हड्डी भी मजबूत होती है। इसलिए रोज कम से कम आधा घंटा टहलें। हड्डियां खराब होने की समस्या महिलाओं में ज्यादा देखने को मिलती है। इसलिए जीवन के शुरूआती 30 वर्ष तक यदि आप अपनी हड्डी का खानपान से ख्याल रखते हैं तो बाद के वर्षाें में हड्डी धीरे-धीरे कमजोर होंगी। 45 वर्ष के बाद विटामिन-डी सप्लटीमेंट लें।

हड्डी का कैं सर काफी सुनने में आता है। कृपया इस पर प्रकाश डालें।
उत्तर : हमलोग के जीवनचर्या में बदलाव हो गया है। विकि रण से सामना होने लगा है। इसी तरह हर चीज बाहर से मंगाते हैं। इस वजह से हर तरह का कैंसर बढ़ रहा है। इसमें हड्डी का कैंसर भी है।

By Editor


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