क्या 17 साल बाद गोपालगंज में डूबेगी भाजपा की नैया
भाजपा गोपालगंज उपचुनाव में फंस गई लगती है। पिछले 17 साल से उसका यहां कब्जा है, लेकिन इस बार राजद ने वैश्य प्रत्याशी देकर समीकरण बदल दिए हैं।
इर्शादुल हक, संपादक, नौकरशाही डॉट कॉम
गोपालगंज को भाजपा का गढ़ माना जाता है। 2005 से भाजपा लगातार चुनाव जीत रही है। लेकिन इस बार दो कारणों से भाजपा का गढ़ टूट सकता है। पहला राजद ने ऐसे बिरादरी के नेता को मैदान में उतारा है, जो परंपरा से भाजपा का वोटर रहा है। राजद ने वैश्य जाति के मोहन प्रसाद गुप्ता को टिकट दिया है। 1952 के बाद से इस जाति के दो बार ही विधायक बने हैं। इस जाति को लग रहा है कि इस बार मौका है। उसकी जाति का व्यक्ति जीत सकता है। इस तरह इस बात की पूरी संभावना है कि राजद प्रत्याशी वैश्यों का एकमुश्त वोट भाजपा में जाने से रोक दे। कितना वोट मिलेगा, यह नहीं कहा जा सकता, पर राजद प्रत्याशी सेंध जरूर लगाएंगे। यह स्थिति भाजपा के खिलाफ है।
इस बार राज्य की राजनीति बदल गई है। नीतीश कुमार और जदयू एक साथ हैं। भाजपा की जीत में सवर्ण के साथ ही वैश्य और अतिपिछड़ों का वोट शामिल रहा है। दलितों का भी उसे वोट मिला है।
2020 में एक तरह से मुकाबला बराबरी का था, जबकि नीतीश कुमार भी भाजपा के साथ थे। भाजपा को 78 हजार वोट मिले थे। राजद प्रत्याशी आशिफ गफूर को 36 हजार वोट मिले थे। वहीं साधु यादव को 42 हजार वोट मिले थे। यह वोट राजद का ही वोट था। दोनों वोट को जोड़ दें, तो इधर भी 78 हजार वोट होते हैं।
इस बार के चुनाव में दो फर्क नोट करने लायक हैं। तेजस्वी यादव बड़े नेता के रूप में उभरे हैं। वे उप मुख्यमंत्री हैं और उनके समर्थक उनमें भविष्य के मुख्यमंत्री का चेहरा देख रहे हैं। इसलिए कहा जा सकता है कि साधु यादव इस बार उतना वोट नहीं पा सकेंगे। इस बार साधु यादव की पत्नी खड़ी हैं।
दूसरा फर्क अतिपिछड़ों को लेकर है। नीतीश कुमार के साथ आने से अतिपिछड़ा गोलबंदी राजद की तरफ पहले से ज्यादा है। उसे दलित वोट भी मिलेगा।
जाति के आधार पर देखें, तो सवर्ण वोट लगभग 50 हजार है। ब्राह्मण 13 हजार, भूमिहार 14 हजार, राजपूत 16 हजार तथा कायस्थ7-8 हजार हैं। ये भाजपा का कोर वोट है। वैश्य बंट रहा है। भाजपा ने अपने दिवंगत नेता सुभाष सिंह की पत्नी को उतारा है। वे राजपूत जाति की हैं।
उधर राजद के लिए देखें, तो यादव 45 हजार, मुस्लिम 60 हजार हैं। अतिपिछड़े 50 हजार हैं। यादव-मुस्लिम दोनों मिल कर ही लाख से उपर हो जाते हैं। फिर वैश्यों का एक हिस्सा, अतिपिछड़ी जाति और दलितों का एक हिस्सा मिल कर राजद को भारी बना देता है।
हां, राजद के लिए चुनौती होगी कि वह अपने कोर वोट को बंटने न दे। तेजस्वी यादव 28 अक्टूबर को गोपालगंज फिर पहुंच रहे हैं। हाल में उन्होंने जिले के विकास के लिए कई योजनाओं की शुरुआत की है। सारे समीकरण बता रहे हैं कि भाजपा अपने गढ़ में फंस गई है।
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