दिल्ली उच्च न्यायालय ने सोमवार को सत्रहवीं लोकसभा में विपक्ष के नेता की नियुक्ति को लेकर निर्देश देने संबंधी दायर जनहित याचिका खारिज कर दी।
मुख्य न्यायाधीश डी एन पटेल और सी हरिशंकर की खंडपीठ ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि न्यायालय को इस याचिका पर सुनवाई करने की कोई वजह नजर नहीं आती क्योंकि ऐसा कोई कानून नहीं है जो कि लोकसभा में विपक्ष के नेता की नियुक्ति को निर्धारित करता हो।
खंडपीठ ने आगे कहा कि क्योंकि लोकसभा में विपक्ष के नेता की नियुक्ति कोई संवैधानिक जरूरत नहीं है। इसलिए न्यायालय को लोकसभा में विपक्ष के नेता की नियुक्ति की कोई नीति बनाने का निर्देश देने की कोई वजह नजर नहीं आ रही है। जनहित याचिका मनमोहन सिंह नरुला और सुष्मिता कुमारी ने दायर की थी।
गौरतलब है कि सत्रहवीं लोकसभा में कांग्रेस 52 सांसदों के साथ सबसे बड़े विपक्षी दल के रूप में आई है। लोकसभा की कुल सदस्य संख्या का एक दल के 10 प्रतिशत सदस्य जीतने पर विपक्ष के नेता का पद दिए जाने की परंपरा है। सोलहवीं लोकसभा में भी कांग्रेस के 44 सदस्य थे और किसी को विपक्ष नेता का पद नहीं दिया गया था।
जनहित याचिका में संसद में दूसरे बड़े दल कांग्रेस को विपक्ष के नेता का पद नहीं देने को गलत परंपरा बताते हुए कहा कि इससे लोकतंत्र कमजोर होता है। कांग्रेस ने इस बार पश्चिम बंगाल के बहरामपुर सीट से निर्वाचित सांसद अधीर रंजन चौधरी को लोकसभा में पार्टी के संसदीय दल का नेता बनाया है। सोलहवीं लोकसभा में मल्लिकार्जन खड़गे इस पद पर थे और इस बार वह चुनाव हार गये।