पार्टी के नाम में सेकुलर लगाने वाले पूर्व मुख्यमंत्री और हम (से) के संरक्षक जीतनराम मांझी भी हिंदू-मुसलमान की राजनीति पर उतरे। वे कई बार दलित मुद्दे उठाने, शराबबंदी में सबसे ज्यादा दलितों को जेल भेजने का मुद्दा उठा चुके हैं। रोजी-रोटी जैसे बुनियादी सवालों को छोड़ कर वे पहली बार हिंदू मुस्लिम की सियासत में कूद पड़े हैं।
मांझी ने गुरुवार को प्रधानमंत्री का यशगान करते हुए कहा कि मोदी अगर इसी तरह ताकतवर होते गए, तो पाकिस्तान एकदिन हमारा होगा।
भारत में हिंदू-मुस्लिम के बीच नफरत की राजनीति दो तरह से की जाती है। एक तो खुलेआम जैसे प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि कांग्रेस वाले दलितों का आरक्षण छीन कर मुसलमानों को दे देंगे। वे देश के मुसलमानों को घुसपैठिया कहने वाले पहले प्रधानमंत्री हैं। खुलेआम सांप्रदायिक राजनीति के अलावा पाकिस्तान विरोधी उन्माद पैदा करके भी देश के भीतर हिंदू-मुस्लिम में नफरत फैलाई जाती है। पाकिस्तान के खिलाफ उन्माद पैदा करने से देश के हिंदू उत्तेजित होते हैं। इस उत्तेजना में वे रसोई गैस के सिलिंडर की कीमत और युवाओं के रोजगार की बात भूल जाते हैं। यही काम किया है जीतनराम मांझी ने।
मांझी ने सोशल मीडिया एक्स पर पहले प्रधानमंत्री मोदी को कोट किया..ऐसा है पाकिस्तान की ताक़त मैं ख़ुद लाहौर जाकर चेक कर आया हूं, किसी जमाने में वे मेरा ही देश था-@narendramodi। इसके बाद मांझी ने लिखा- वैसे अगर मोदी जी ऐसे ही मज़बूत होते गएं तो आने वाले समय में फिर से इस्लामाबाद में तिरंगा फहरेगा। #पाकिस्तान हमारा था हमारा होगा।
इससे पहले गृहमंत्री अमित शाह कह चुके हैं कि हमें 400 सीट पर जिताइए, पीओके पर कब्जा करेंगे। जल्दी ही मांझी भी पीओके पर कब्जे की बात करें, तो आश्चर्य नहीं होगा। इस्लामाबाद में तिरंगा फहराने की बात करके मांझी ने संविधान, आरक्षण, नौकरी, महंगाई जैसे बुनियादी मुद्दों से ध्यान बंटाने की कोशिश की है। साफ है वे दलितों के सवाल पर पर्दा डालते हुए भाजपा के हिंदू-मुस्लिम एजेंडे को आगे बढ़ाने में लग गए हैं।
यह याद रखना चाहिए कि हिंदू-मुस्लिम में नफरत की राजनीति से सबसे ज्यादा नुकसान दलितों का होता है। नफरत की राजनीति, उत्तेजना की राजनीति से हमेशा दलितों के मुद्दे दब जाते हैं। स्पष्ट है मांझी दलितों की चिंता छोड़ करके भाजपा के एजेंडे पर काम करने में जुट गए हैं।