दिल्ली की एक अदालत ने सामाजिक कार्यकर्ता और नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेता मेधा पाटकर को छह महीने जेल की सजा सुनाई है। उन्हें 10 लाख रुपए जुर्माना भी देना होगा। उन्हें यह सजा वीके सक्सेना की याचिका पर दी गई है, जो वर्तमान में दिल्ली के एलजी हैं। 20 साल पहले वे एक संस्था से जुड़े थे, तभी उन्होंने पाटकर के खिलाफ केस किया था।
दिल्ली की साकेत कोर्ट ने सोमवार को मेधा पाटकर को सजा सुनाई। कोर्ट ने 24 मई को ही पाटकर दोषी माना था और फैसला सुरक्षित रख लिया था। आज कोर्ट ने अपना फैसला दिया। देशभर के सामाजिक संगठनों ने कहा कि वे साकेत कोर्ट के फैसले को ऊपरी अदालत में चुनौती देंगे।
द हिंदू की खबर के मुताबिक वीके सक्सेना तथा मेधा पाटकर के बीच पिछले 24 वर्षों से मुकदमे चल रहे हैं। पाटकर ने वर्ष 2000 में वीके सक्सेना के खिलाफ मामला दर्ज कराया था। उन्होंने सक्सेना पर आरोप लगाया था कि सक्सेना ने नर्मदा बचाओ आंदोलन तथा उन्हें बदनाम करने के लिए विज्ञापन छापा। इसके अगले साल वर्ष 2001 में वीके सक्सेना ने भी पाटकर के खिलाफ मानहानि का मामला दर्ज कराया। उन्होंने पाटकर पर टीवी डिबेट में उनके खिलाफ बयान देने तथा प्रेस में वक्तव्य देने का आरोप लगाया।
मेधा पाटकर के खिलाफ वीके सक्सेना ने वर्ष 2001 में मानहानि का मामला दर्ज किया था। सक्सेना वर्तमान में दिल्ली के एलजी हैं। 2001 में जब सक्सेना ने मामला दर्ज कराया था, तब वे अहमदाबाद आधारित एक एनजीओ नेशनल काउंसिल ऑफ सिविल लिबर्टीज के संयोजक थे।
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मेधा पाटकर नर्मदा डैं के पीड़ितों को न्या दिलाने के लिए हाल में अनशन पर थी। देशभर में पिछले हफ्ते ही उनके समर्थन में लोग सड़कों पर उतरे थे।
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