मीडिया का दावा कांग्रेस की जीत नीतीश के लिए झटका में कितना दम

हिंदी और अंग्रेजी के दो बड़े अखबारों ने लिखा कि कर्नाटक में कांग्रेस की जीत से नीतीश कुमार का महत्व कम हो जाएगा। यह बकवास है। ये हैं तीन बड़े कारण-

कुमार अनिल

हिंदी और अंग्रेजी के दो बड़े अखबारों ने लिखा कि कर्नाटक में कांग्रेस की जीत नीतीश कुमार के लिए झटका है। दैनिक भास्कर और द टाइम्स ऑफ इंडिया ने लिखा कि कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के बाद नीतीश अब विपक्षी एकता की मुहिम से पीछे हटेंगे। अखबारों ने लिखा कि नीतीश कुमार का राष्ट्रीय राजनीति में महत्व कम हो जाएगा। कांग्रेस का मनोबल बढ़ जाएगा और इसीलिए वह नीतीश कुमार को महत्व नहीं देगी। कर्नाटक में कांग्रेस की जीत को इस रूप में देखना और परिणाम निकालना सतही (superficial) मूल्यांकन है। इसकी तीन बड़ी वजह ये हैं-

पहली बात तो यह कि कर्नाटक में बड़ी जीत के बाद भी 2024 लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस नहीं कह सकती कि अब उसे किसी की दरकार नहीं है। वह अकेले ही प्रधानमंत्री मोदी और भाजपा का मुकाबला करने में सक्षम है। सच्चाई यह है कि यूपी, बिहार, महाराष्ट्र, बंगाल, झारखंड, ओड़िशा, असम और दिल्ली जैसे प्रदेशों में लोकसभा की लगभग पौने तीन सौ सीटें हैं। इन सभी प्रदेशों में कांग्रेस भाजपा के सामने पहली पार्टी नहीं है। इन प्रदेशों में वह दूसरे या तीसरे नंबर की पार्टी है। इन राज्यों में भाजपा को कमजोर किए बिना 2024 में दिल्ली की सत्ता से भाजपा को बाहर करने के बारे में सोचा भी नहीं जा सकता। इन सभी राज्यों में क्षेत्रीय दल मजबूत हैं और इन्हें भाजपा विरोधी गठबंधन का हिस्सा बनाने का प्रयास करना ही होगा। इनमें ओड़िशा सबसे भिन्न है, जो भाजपा विरोधी एकता से सहमत नहीं है, लेकिन बाकी क्षेत्रीय दलों को साथ लाना संभव है। कर्नाटक में कांग्रेस की जीत के बाद भी इस काम के लिए नीतीश कुमार महत्वपूर्ण कड़ी आज भी हैं।

दूसरा, इसकी कोई भी संभावना नहीं है, फिर भी एक मिनट के लिए कल्पना कर लें कि अगले कुछ महीनों में कांग्रेस इतना बड़ा आंदोलन खड़ा करती है कि वह अकेले दम पर 2024 में केंद्र में सरकार बनाने की स्थिति में आ जाती है, तब भी यह मान लेना कि कांग्रेस नीतीश को महत्व देना बंंद कर देगी, ऐसा सोचना गलत होगा। दरअसल कांग्रेस भाजपा के हर काम के उल्टा कर रही है या कहें कि भाजपा के हर उल्टा काम का जवाब सीधा काम से देती है। आज भाजपा की यह पहचान है कि वह मित्र दलों को तोड़ दोती है या निगल जाती है। वह क्षेत्रीय दलों को समाप्त करना चाहती है, इसके बारे में उसके नेता बोल चुके हैं। वहीं कांग्रेस ठीक विपरीत भारत के संघीय ढांचे, क्षेत्रीय दलों-क्षेत्रीय भावनाओं का आदर करती है। कर्नाटक में नंदिनी बनाम अमूल दूध में कांग्रेस ने दिखाया कि वह क्षेत्रीय विशिष्टताओं के साथ खड़ी है। तो इस स्थिति में भी कांग्रेस नीतीश कुमार का महत्व कम करके नहीं आंक सकती।

और तीसरी खास बात यह है कि कर्नाटक में जीत का जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने पुरजोर स्वागत किया है। उन्होंने कहा कि कर्नाटक भाजपा मुक्त हुआ। इसके पूर्व-हिमाचल प्रदेश भाजपा मुक्त हुआ। दिल्ली नगर निगम भाजपा मुक्त हुआ। इसी साल मध्यप्रदेश भी भाजपा मुक्त होगा और 2024 लोक सभा चुनाव में देश भाजपामुक्त होगा…इंतजार कीजिए। ललन सिंह का बयान यह बताने को काफी है कि कर्नाटक में कांग्रेस की जीत से जदयू में कोई निराशा नहीं है। बल्कि उसने इस जीत को नीतीश कुमार के अभियान का अंग साबित किया है।

कर्नाटक : मोदी है तो मुमकिन है…हार भी, खो गई खेल पलटने की ताकत

By Editor


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