ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड सहित चार प्रमुख संगठनों ने वक्फ एक्ट में संशोधन विधेयक का विरोध किया है। इन संगठनों ने साझा प्रेस बयान में वक्फ संशोधन बिल को वक्फ के संरक्षण और पारदर्शिता के नाम पर वक्फ संपत्तियों को तहस-नहस करने और हड़पने की एक घिनौनी साजिश कर दिया है और सरकार से मांग की है इस हरकत से बाज आए और विधेयक को वापस ले।

ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड के अध्यक्ष मौ, खालिद सैफुल्लाह रहमानी, जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौ. अरशद मदनी, अमीरे जमायत इस्लामी हिंद के सैयद सआदतुल्लाह हुसैनी, अमीर मरकजी जमीयत अहले हदीस के मौ. असगर अली इमाम महदी, ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड के महासचिव मौ फजलुर रहीम तथा ऑल इंडिया पर्सनल लॉ बोर्ड के प्रवक्ता डॉ सैयद कासिम रसूल इलयास ने साझा बयान जारी करके कहा कि प्रस्तावित विधायक में न केवल वक्फ की परिभाषा, मुतवली की हैसियत और वक्फ बॉर्ड के अधिकारों के साथ छेड़छाड़ की गई है बल्कि सेंट्रल वक्फ काउंसिल और वक्फ बोर्ड के सदस्यों की संख्या में वृद्धि के नाम पर पहली बार इसमें गैर मुसलमानों को अनिवार्य रूप से सदस्य बनाने का प्रस्ताव लाया गया है। सेंट्रल वक्फ काउंसिल में पहले एक गैर मुस्लिम सदस्य रखा जाता था लेकिन प्रस्तावित विधेयक में यह संख्या 13 तक हो सकती है जिसमें दो सदस्य अनिवार्य होंगे। इसी तरह वक्फ बोर्ड में पहले सिर्फ अध्यक्ष गैर मुस्लिम हो सकता था लेकिन प्रस्तावित विधेयक में यह संख्या 7 तक हो सकती है जिसमें दो सदस्य अनिवार्य होंगे। यह प्रस्ताव संविधान के अनुच्छेद 26 के विपरीत है जो अल्पसंख्यकों को यह अधिकार देता है कि वह अपने धार्मिक और सांस्कृतिक संस्थाओं की स्थापना कर सकते हैं और उन्हें अपने तरीके से चला सकते हैंष

संगठनों ने कहा कि यह बात भी बताना आवश्यक है कि देश के कई राज्यों में हिंदुओं के धार्मिक ट्रस्टों के प्रबंधन के लिए यह अनिवार्य है कि उनके सदस्य और जिम्मेदार लोग हिंदू धर्म का पालन करने वाले हों। इसी तरह गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के सदस्य भी अनिवार्य रूप से सिख समुदाय के होने चाहिए। पहले वक्फ बोर्ड के सदस्य का चुनाव होता था। अब यह नामांकन द्वारा होगा।

———–

भाजपा की रांची रैली में 5 लाख का दावा था, जुटे 5 हजार

————–

इसी तरह प्रस्तावित विधेयक से बोर्ड के सीईओ को मुस्लिम होने की शर्त हटा दी गई है। मौजूदा वक्फ अधिनियम के तहत राज्य सरकार द्वारा वक्फ बोर्ड द्वारा प्रस्तावित दो व्यक्तियों में से किसी एक को नामांकित कर सकती थी जो कि डिप्टी सेक्रेटरी के रैंक से नीचे का हो, लेकिन अब बोर्ड के प्रस्तावित व्यक्ति की शर्त हटा दी गई है और अब डिप्टी सेक्रेटरी की शर्त को हटाकर कहा गया है कि वह जॉइंट सेक्रेटरी के रैंक से कम ना हो। यह संशोधन स्पष्ट रूप से सेंट्रल वक्फ काउंसिल और बोर्ड के अधिकार को काम करते हैं और सरकार की दखलअंदाजी को बढ़ाते हैं।

———

SCST में शामिल करने के लिए बालाकृष्णन आयोग से मिले मुस्लिम प्रतिनिधि

———–

इसी के साथ विभिन्न संगठनों ने कहा कि प्रस्तावित संशोधन विधेयक वक्फ संपत्तियों पर सरकारी कब्जे का भी रास्ता साफ करता है। अगर किसी संपत्ति पर सरकार का कब्जा हो तो इसका फैसला करने का पूरा अधिकार कलेक्टर को सौंप दिया गया है। कलेक्टर के फैसले के बाद वह राजस्व रिकॉर्ड सही करेगा और सरकार वक्फ बोर्ड से कहेगी कि वह संपत्ति को अपने रिकॉर्ड से हटा दे। इसी तरह अगर वक्फ संपत्ति पर कोई विवाद हो तो इसे तय करने का अधिकार भी वक्फ बोर्ड के पास था जो वक्फ ट्रिब्यूनल के माध्यम से इसे तय करता था। अब वक्फ ट्रिब्यूनल का यह अधिकार भी प्रस्तावित विधेयक में कलेक्टर को सौंप दिया गया है। मौजूदा वक्फ अधिनियम में किसी भी विवाद को 1 साल के भीतर वक्फ ट्रिब्यूनल के समक्ष लाना अनिवार्य था। इसके बाद कोई विवाद नहीं सुना जाएगा। अब यह शर्त भी हटा दी गई है। प्रस्तावित विधेयक ने कलेक्टर और सरकारी प्रशासन को मनमानी अधिकार दे दिए हैं। आज जब कलेक्टर के आदेश से मुसलमान के घरों पर बुलडोजर चल रहे हैं तो फिर वक्फ संपत्तियों के मामले में उनके रवैया पर कैसे भरोसा किया जा सकता है। प्रस्तावित विधेयक में वक्फ अधिनियम 1995 के सेक्सन 40 को पूरी तरह से हटा दिया गया है। यह सेक्सन में वक्फ बोर्ड के अधिकार क्षेत्र, सीमाओं और अधिकारों को तय करता था जिसके तहत वक्फ पंजीकरण, वक्फ संपत्ति की स्थिति आदि तय की जाती है। अब यह सभी अधिकार कलेक्टर को सौंप दिए गए हैं। इसी तरह सर्वे कमिश्नर को नामांकित करने के लिए वक्फ बोर्ड के अधिकार को भी समाप्त कर दिया गया। इस जिम्मेदारी को भी कलेक्टर के हवाले कर दिया गया है।

 

By Editor


Notice: ob_end_flush(): Failed to send buffer of zlib output compression (0) in /home/naukarshahi/public_html/wp-includes/functions.php on line 5427