New Course : जाति व्यवस्था वंचित नहीं करती, यह ‘समावेशी’ है
भले ही बुद्ध से लेकर आंबेडकर तक जाति को समाज की बुराई मानते रहे हों, लेकिन बीएचयू के New Course में इसे समावेशी बताया गया है।
भारत में जाति व्यवस्था समाज को बांटनेवाली, भेदभाव करनेवाली और कमजोरों का उत्पीड़न करनेवाली व्यवस्था है, इस पर प्राचीन काल से सहमति रही है। बुद्ध, महावीर से लेकर नानक, कबीर और हमारे युग के गांधी- आंबेडकर जाति व्यवस्था के खिलाफ रहे हैं।
अब बीएचयू ने एक नया पीजी पाठ्यक्रम तैयार किया है। हिंदू स्टडीज नाम से नया कोर्स शुरू हो रहा है। कोलकाता से प्रकाशित द टेलिग्राफ ने पाठ्यक्रम तैयार करने तथा इसकी जानकारी रखनेवाले प्राध्यापकों से बात की। अखबार ने लिखा है कि इस नए कोर्स में पढ़ाया जाएगा कि जातिवाद किसी को समाज से बाहर नहीं करता, भेदबाव नहीं करता, बल्कि यह समावेशी है। समावेशी का अर्थ है सबको मौका देना।
बीएचयू के सदाशिव द्विवेदी ने अखबार को बताया कि जाति व्यवस्था किसी को वंचित नहीं करती। यह समावेशी है। बताया कि बढ़ई का कार्य और गहने बनाने का कार्य शूद्रों को दिया गया।
अखबार ने यह भी लिखा है कि नए पीजी पाठ्यक्रम में बताया गया है कि बौद्ध और जैन हिंदू धर्म की ही शाखाएं हैं। नए कोर्स का एक उद्देश्य यह भी है कि संस्कृत और हिंदू शास्त्रों के बारे में जो ‘ नकारात्मक बातें’ पढ़ाई जाती हैं, उन्हें सुधारना और सही तस्वीर सामने रखना।
अबतक किसी राजनीतिक दल ने इस नए कोर्स पर प्रतिक्रिया नहीं दी है। हिंदू स्टडीज की पढ़ाई होगी, यह बात पिछले साल से ही स्पष्ट है, पर अब पहली बार इसके पाठ्यक्रम पर चर्चा हुई है। इसमें जिस तरह जाति को समावेशी बताया गया है, उससे अनेक संगठन सहमति नहीं रखते।
बौद्ध और जैन धर्म को लेकर जो बाते कही गई हैं, उस पर भी विवाद हो सकता है। अगर शाखाएं हैं, तो संविधान में उन्हें अलग धर्म का दर्जा क्यों दिया गया है।
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