राजद के प्रदेश कार्यालय में पार्टी के प्रदेश प्रवक्ता चितरंजन गगन और अन्य प्रवक्ताओं मृत्युंजय तिवारी, अरूण कुमार यादव एवं आरजू खान ने कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नाम से एक अपील जारी किया गया है जिसमें केवल झूठे तथ्यों के आधार पर वोट की अपील की गई है।
राजद प्रवक्ताओं ने कहा कि यह अपील भले ही नीतीश कुमार के नाम से जारी किया गया है पर ऐसा लगता नहीं है। क्योंकि 2005 के बाद उन्होंने राजद के साथ मिलकर सरकार बनायी है, वह भी एक बार नहीं दो-दो बार। हम सबों के लिए नीतीश कुमार सम्मानीय हैं। पर आज उनकी जो स्थिति है वे चुनावी सभाओं में भी लिखा हुआ भाषण पढ़ते हैं जबकि पहले ऐसी बात नहीं थी, केवल आंकड़ों को ही लिखकर रखते थे।
उनके नाम से जारी अपील में यह बताना चाहिए था कि पिछले सत्रह वर्षों में बिहार में बेरोजगारी और महंगाई दूर करने एवं किसानों की दशा सुधारने में उनकी क्या उपलब्धि रही? उनके 17 वर्षों के शासन काल में बिहार में कितने उद्योग धंधे स्थापित हुए? स्वास्थ्य और शिक्षा की स्थिति क्या रही? कानून व्यवस्था में कितना सुधार हुआ? डबल इंजन की सरकार में बिहार को विशेष राज्य का दर्जा और विशेष पैकेज क्यों नहीं मिला? उनके करबद्ध अनुरोध के बावजूद पटना विश्वविद्यालय को केन्द्रीय विश्वविद्यालय क्यों नहीं बनाया गया? बिहार को बिजली खरीदकर उपभोक्ताओं को उंचे दरो पर क्यों दिया जा रहा है? कितने क्षेत्रों में सिंचाई का विस्तार हुआ? छोटे और मध्यम कारोबारी अपना व्यवसाय बंद करने के लिए क्यों मजबूर हो रहे हैं?
राजद प्रवक्ताओं ने कहा कि तेजस्वी प्रसाद यादव के 17 महीने के उपमुख्यमंत्रीत्व काल में जो उपलब्धियां रहीं उसका जवाब जदयू और भाजपा नेताओं के पास नहीं है। इसलिए 17 वर्ष पहले की चर्चा इनके द्वारा बार-बार की जाती है और 2005 के पहले की हकीकत को छुपाया जाता है और केवल दुष्प्रचार कर लोगों को गुमराह करने का प्रयास किया जाता है। उनके दुष्प्रचार में यदि थोड़ी भी सच्चाई रहती तो तीन-तीन बार राजद को बिहार की जनता का अपार जन समर्थन नहीं मिलता और 2004 के लोकसभा चुनाव में 40 लोकसभा क्षेत्रों में राजद गठबंधन को 31 और राजद को अकेले 22 सीटें नहीं मिलती।
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राजद प्रवक्ताओं ने कहा कि जब 1990 में लालू जी मुख्यमंत्री बने उस समय देश भयंकर मंदी के दौर से गुजर रहा था। इसके बावजूद लालू जी ने बिहार में मंडल आयोग के आरक्षण प्रावधानो के अनुसार बड़ी संख्या में सिपाही, दारोगा, शिक्षक, ईजीनियर, डाॅक्टर, प्रोफेसर एवं अन्य सेवाओं में नियुक्तियां की गई थी। जबकि 2005 के बाद एक भी डाॅक्टर, इंजीनियर और प्रोफेसर की बहाली नहीं हुई है और संविदा के आधार पर काम कराया जाता है। सर्व शिक्षा अभियान के तहत 2 लाख शिक्षा मित्रो की नियुक्ति हुई, जो बाद में नियोजित शिक्षक कहलाये। स्थानीय निकायों का चुनाव कराया गया जिसमें महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण दिया गया। 70 के दशक में बेलछी और पिपरा जैसे शुरू हुए नरसंहारों के दौर को नियंत्रित किया गया और राबड़ी जी के दूसरे मुख्यमंत्रीत्व काल में नरसंहार की एक भी घटना नहीं घटी।