तेजस्वी के ट्रैप में फंसे नीतीश, क्या कोई ऐक्शन ले पायेंगे?
नीतीश कुमार कॉपीराइट चोरी मामले में जुर्माना लगा, यह सच है.हत्या मामले में अभियुक्त थे,यह भी सच है. फिर तेजस्वी को धमकी देने वाले नीतीश क्या कर पायेंगे? पढ़िये ‘हक की बात- इर्शादुल हक के साथ’.
सारी दुनिया ने देखा. नीतीश का ऐसा रूप, जैसा शायद पहले कभी न देखा गया. वह तेजस्वी यादव पर आग बगोला थे. क्रोध से नीतीश के होंट कपकपा रहे थे. आंखें सुर्ख हो चुकी थीं. दोनों हाथ हवा में लहा रहे थे. आपा खो चुके नीतीश कह रहे थे- झूठ बोलता है ये. इसके पिता को लोकदल विधायक दल के नेता किसने बनवाया ( मैंने)? इसे डिप्टी सीएम किसने बनवाया? ( मैंने). नीतीश अपने रौ में कहे जा रहे थे- मेरे भाई समान दोस्त का बेटा है ये. ये झूठ बोलता है. सब कुछ सुनते रहते हैं. कुछ नहीं बोलते. ( अध्यक्ष जी) जांच करवाइए. इसके खिलाफ कार्रवाई होगी.
दर असल नीतीश कुमार, तेजस्वी यादव के दो गंभीर बयानों पर अपना आपा खो चुके थे. तेजस्वी ने सदन में कहा था कि नीतीश कुमार के ऊपर हत्या का मामला चला. उन्होंने ( यह 1991 का मामला है. उस समय एक हत्या हुई थी. उसी में नीतीश अभियुक्त थे.) काफी वर्षों तक मामला टलता रहा. 2019 में नीतीश ने मुख्यमंत्री रहते उनके हक में फैसला आया.
तेजस्वी ने दूसरा मामला साहित्यिक चोरी का उठाया. अकसर उठाते रहते हैं. 2017 में आद्री ने एक पुस्तक छापी थी. इस पुस्तक को नीतीश कुमार ने इंडोर्स किया था. जवाहर लाल नेवहरू युनिवर्सिटी के शोधार्थी अतुल कुमार ने दिल्ली हाई कोर्ट में केस किया था. अदालत ने इस मामले को सही पाया था और नीतीश कुमार पर 20 हजार रुपये का जुर्माना लगाया था. यह तथ्य है. नौकरशाही डॉट कॉम ने भी इस खबर को छापा था.
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तेजस्वी यादव के इन दो आक्रमणों से नीतीश आपा खो दिये, ऐसा नहीं है. हकीकत यह है कि नीतीश चुनाव प्रचार के दौरान से लगातार आपा खोते रहे हैं. कम से कम पांच बार चुनाव सभाओं में वह जनसमूह से उलझ जाते रहे. भीड़ ने उनके खिलाफ नारेबाजी की तो भीड़ में मौजूद लोगों पर बरस जाते थे. कहते थे तुम हो कितने. तुम्हें किसने भेजा है, हम सब जानते हैं. एक बार तो नीतीश ने यहां तक अपने भाषण में कह दिया था कि कुछ लोग बेटे की उम्मीद में बेटियां पैदा करते चले जाते हैं. नीतीश का इशारा, लालू की तरफ था. लालू को 9 बेटियां और दो बेटे हैं. नीतीश के बरअक्स तेजस्वी चुनाव अभियान के दौरान जनसमूह से संवाद करते थे. उनसे नौकरी रोजगार की बात करते थे. वह हजारों के जनसमूह की महफिल लूट ले जाते थे. इन्ही कारणों से नीतीश लगातार आपा खोते जा रहे थे. इसी की एक बानगी विधान सभा में देखी गयी.
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नीतीश कुमार ने सदन के अध्यक्ष से कहा कि इसकी जांच करवाइए. इसके ( तेजस्वी) खिलाफ कार्वाई होगी. नीतीश ने तेजस्वी, जो प्रतिपक्ष के नेता हैं के खिलाफ तुम-तड़ाक की भाषा का इस्तेमाल किया. भले ही उम्र में बड़े हैं पर नीतीश यह क्यों भूल गये कि तेजस्वी भी संवैधानिक पद पर हैं.
अब सवाल यह है कि क्या नीतीश कुमार तेजस्वी के खिलाफ जांच करवा कर उनके खिलाफ कार्वाई कर पायेंगे? इस सवाल का व्यावहारिक जवाब यह है कि तेजस्वी ने कोई झूठ बोला ही नहीं. उन्होंने तथ्यों के आधार पर नीतीश पर हमला बोला. यह तथ्य है कि हत्या मामले में नीतीश कुमार का नाम आया था. कॉपीराइट चोरी मामले में नीतीश को जुर्माना भरने का आदेश दिल्ली हाईकोर्ट ने दिया था. फिर यही बात तेजस्वी ने दोहराई तो क्या गुनाह किया?
ऐसे में तेजस्वी के खिलाफ किसी कार्रवाई का कोई आधार नहीं बनता. यह दीगर बात है कि सरकार में रह कर नीतीश विधानसभा अध्यक्ष पर दबाव बना कर कोई कार्रवाई करवा सकें. जैसा कि तेजस्वी के आरोपों को सदन की कार्यवाही से हटवा दिया गया.
नीतीश से बड़ा जनादेश तेजस्वी को
इस पूरे मामले में गौर करें तो नीतीश कुमार चुनाव अभियान के दौरान से ही तेजस्वी के ट्रैप में फंसते जा रहे हैं. सदन में आप खो चुके नीतीश फिर से तेजस्वी के जाल में आ चुके हैं. तेजस्वी ने नीतीश को मजबूर किया कि वह बौखला जायें. वह बौखला गये. तेजस्वी पर तुम तड़ाक की भाषा बोलना और फिर यह सफाई देने कि वह उनके दोस्त समान भाई का बेटा है. सदन में भाई-भतीजा का क्या औचित्य? तेजस्वी ने जनादेश की ताकत हासिल की है. सदन में सबसे ताकतवर दल के नेता हैं तेजस्वी. नीतीश के दल से लगभग दोगुना शक्तिशाली, तेजस्वी की पार्टी है. भले ही सरकार नीतीश चला रहे हैं. पर तेजस्वी को बखूबी एहसास है कि नीतीश की पार्टी तीसरे दर्जे की पार्टी रह गयी है. इसलिए तेजस्वी यूं ही सरकार को चैन से रहने देंगे, ऐसी कोई गुंजाइश नहीं है. अभी तो शुरुआत है. आगे और भी झेलना है नीतीश कुमार को.