केंद्र की एनडीए सरकार नीतीश कुमार के सांसदों पर निर्भर है, लेकिन उन्हें प्रमुख और बड़ा मंत्रालय नहीं दिए जाने से हंगामा है। कहा जा रहा है कि खुद नीतीश कुमार ही नहीं चाहते थे कि उनका कोई सांसद देश का रक्षा मंत्री बने और उसका कद उनके बराबर हो जाए। नीतीश कुमार का पिछला इतिहास भी यही बताता है कि उन्होंने कभी किसी नेता को एक सीमा से आगे बढ़ने नहीं दिया। जॉर्ज फर्नांडिस का कद कभी उनसे बड़ा था, लेकिन धीरे-धीरे उन्हें किनारे लगा दिया। बाद के दिनों में कोई भी नेता नीतीश के कद के बराबर नहीं पहुंच सका। पूरी पार्टी के केंद्र में वे ही रहे। इसी आधार पर माना जा रहा है कि खुद नीतीश कुमार ने ही कोई बड़ा मंत्रालय नहीं चाहा।
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एनडीए की बैठक में जिस तरह नरेंद्र मोदी को पूरी छूट दी कि आप जैसे चाहें, वैसे काम करें, हम आपके साथ हैं। आप अपने ढंग से हर चीज तय करें, हम हर स्थिति में आपके साथ हैं। नीतीश कुमार ने नरेंद्र मोदी के आगे समर्पण कर दिया। पैर तक छू लिया। एक बार भी नहीं कहा कि हम आपको समर्थन दे रहे हैं आप भी मंत्री बनाते समय हमारे सम्मान का ध्यान रखिएगा। इशारों में भी सम्मान पाने की इच्छा नहीं जताई। इसीलिए माना जा रहा है कि नीतीश कुमार ने खुद ही नहीं चाहा। उन्होंने ही अपने सांसदों खासकर ललन सिंह के साथ खेला कर दिया। मंत्रालय तो मिला, पर ऐसा नहीं कि वे बिहार को कुछ विशेष दे सकें और अपना कद बढ़ा सकें।
इधर सोशल मीडिया में जदयू कार्यकर्ता और समर्थक लगातार केंद्र सरकार में सम्मानजनक मंत्रालय नहीं दिए जाने से अपनी नाराजगी जाहिर कर रहे हैं। वे इसके लिए प्रधानमंत्री मोदी की उपेक्षा को जिम्मेदार मान रहे हैं।
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याद रहे 1998 में एनडीए सरकार में जदयू के दो कैबिनेट मंत्री बनाए गए थे। जॉर्ज फर्नांडिस रक्षा मंत्री बनाए गए थे और खुद नीतीश कुमार रेल मंत्री बने थे। इस बार जदयू पर पूरी तरह सरकार निर्भर है लेकिन दो कैबिनेट मंत्री के बदले एक ही पद मिला और मंत्रालय भी महत्वपूर्ण नहीं मिला। कारण चाहे जो हो, लेकिन मंत्रालय बंटने के 24 घंटे के भीतर जदयू और भाजपा के संबंधों में खटास तो आ ही गई है।