कुमार अनिल
पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव कार्यकर्ता संवाद यात्रा कर रहे हैं, जो अब माई-बहिन योजना यात्रा बन गई है, इस बीच कल मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भी अपनी प्रगति यात्रा शुरू कर दी। पहले दिन वे पश्चिमी चंपारण में थे, दूसरे दिन पूर्वी चंपारण में हैं। आइए, हम बिहार के दो प्रमुख नेताओं की यात्रा की समीक्षा करते हैं और पता करते हैं कि किसकी यात्रा बेहतर है।
पहली बात की किसी भी नेता की यात्रा को सफल तभी माना जा सकता है, जब उसमें तीन बातें दिखें। पहली कि यात्रा में उपस्थिति अच्छी हो, दूसरी कि कार्यकर्ताओं में उत्साह हो। वह ढोकर लाई गई भीड़ नहीं हो। और तीसरी बात कि नेता जो संदेश दे, जो नारे दे, जो नैरेटिव दे, वह पूर् प्रदेश का नारा, नैरेटिव बन जाए, तो उस यात्रा को सफल कहा जाना चाहिए।
इस पैमाने पर देखें, तो नीतीश कुमार की यात्रा जब कल शुरू हुई, तो स्वागत करने के लिए लोग जमा थे, लेकिन निश्चित रूप से यह नहीं कह सकते कि भीड़ उमड़ पड़ी। नेताओं में भी वही ज्यादा दिखे, जो पटना में मुख्यमंत्री के साथ रहते हैं। इसके बाद मुख्यमंत्री कई गावों में गए, लेकिन वहां आम लोगों में कोई उत्सुकता नहीं दिखी। न ही कहीं भीड़ ने उनका स्वागत किया। वे हमेशा अधिकारियों से ही घिरे रहे। उन्होंने कल सिर्फ एक घोषणा की कि गन्ने का मूल्य प्रति क्विंटल 20 रुपए बढ़ाया जाएगा। याद रहे गन्ना बिहार के खास इलाके में ही उगाया जाता है। बिहार की मुख्य फसल धान और गेंहू है। इस तरह मुख्यमंत्री की यात्रा पूरे बिहार में प्रभाव छोड़ने में असफल रही, कार्यकर्ताओं में भी जोश नहीं दिख रहा है।
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माई-बहिन योजना का प्रचार मुहल्लों-गांवों में शुरू, रिस्पांस से कार्यकर्ता उत्साहित
इसके विपरीत तेजस्वी यादव कम साधनों के बीच जहां भी जा रहे हैं, वहां हजारों की संख्या में लोग देखने पहुंच रहे हैं। उनकी माई-बहिन मान योजना की चर्चा गांव-गांव पहुंच गई है। वे बिहार में बदलाव का नारा दे रहे हैं, जो जनता में प्रभाव छोड़ता दिख रहा है। वहीं राजद कार्यकर्ता जोश से भर गए हैं। उन्होंने मुहल्लों में माई-बहिन योजना का प्रचार भी शुरू कर दिया है। पार्टी इस योजना से जोड़ने के लिए निबंधन भी शुरू कर सकती है। इस तरह उसी पैमाने पर तेजस्वी यादव की यात्रा काफी सफल दिख रही है।