जलप्रकोप (Water Logging) पर JDU-BJP में घमासान, नया राजनीतिक संकेत: इर्शादुल हक का विश्लेषण
जलप्रकोप (Water Logging) समस्या को BJP, JDU के खिलाफ Blame Game के रूप में इस्तेमाल करके पटना के अपने पारम्परिक वोटरों की नाराजगी नीतीश के सर मढ़ रही है तो दूसरी तरफ 2020 चुनाव के मद्देनजर नीतीश को कमजोर करने का खेल भी खेल रही है ताकि सीएम की कुर्सी पर वह दावेदारी जता सके.
भाजपा के दो बड़े नेताओं ने सीधा तो भाजपा के नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष संजय जायसवाल ने परोक्ष रूप
नीतीश सरकार के खिलफ मोर्चा खोल दिया है. केंद्री मंतरी गिरिराज सिंह ने साफ कहा है कि यह सरकार की विफलता है
जबकि केंद्रीय मंत्री रविशांकर प्रसाद (Ravishankar Prasad) ने प्रशासनिक चूक की बात कहते हुए परोक्ष रूप से भाजपा को पाक-साफ करार देते हुए कहा है कि केंद्र इस जल प्रकोप से निपटने के लिए हर संभव मदद करने का पैसला लिया है. उधर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ने ट्विट कर कहा है कि बारिश रुकने के बावजूद पटना से पानी की निकासी न हो पाना प्रशासनिक विफलता है.
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जलप्रकोप पर जदयू व भाजपा के बीच विवाद के बीच नगर विकास मंत्री सुरेश शर्मा ने बिना नाम लिए भाजपा नेताओं के आरोपों को खारिज किया है.
जलप्रकोप पर भाजपा-जदयू में टकराव के मायने
पटना के जल प्रकोप ने जहां भाजपा के नेता, जो सरकार के पंद्रह वर्षों से साझीदार हैं, अपना दामन पाक-साफ करार दे कर सारा ठीकरा जदयू, या यूं कहें नीतीश कुमार पर फोड़ कर यह संकेत दे चुके हैं कि चुनाव के पहले नीतीश कुमार पर दबाव बनाना चाहते हैं. भाजपा के इस रवैये को भाजपा के खासमखास चैनल्स भी उसी की भाषा में सिर्फ नीतीश कुमार पर सवालों की बौछार करने में जुट गये हैं. जहां राजनीतिक उपलबंधियों का श्रेय देने की बात होती है तो ऐसा चैनल सुशील मोदी के बयानों के बिना खबरें नहीं बनाते. जबकि यही मोदी तीन दिनों तक जलप्रकोप में फंसे रहे.
सीएम की कुर्सी का सवाल
अब सवाल यह है कि क्या भाजपा जलप्रकोप के बहाने नीतीश कुमार पर दबाव की राजनीत करने की रणनीति बना चुकी है. दर असल राजनीतिक जानकारों का अनुमान है कि पंद्रह सालों से मुख्यमंत्री की कुर्सी नीतीश कुमार के हवाले करने वाली भाजपा 2019 लोकसभा चुनाव में सौ प्रतिशत सीटें जीतने से उत्साहित है. वह नीतीश कुमार से सीएम की कुर्सी खाली करवाने के मूड में है.
जलबंदियों से नीतीश ने कहा, रखें धैर्य
लेकिन नीतीश 2020 में अपनी कुर्सी यूं ही भाजपा के हवाले कर देंगे ऐसी संभावना नहीं है. वैसे स्थिति में भाजपा उन्हें मजबूर करना चाहेगी कि वह गठबंधन से बाहर हो जायें. अगर नीतीश बाहर होते हैं तो 2014 के लोकसभा चुनाव जैसे रिज्लट का अनुमान भाजपा को है. जब जदयू लोकसभा में मात्र दो सीटों पर सिमट गयी थी. लेकिन भाजपा को यह भय भी है कि भाजपा से जुदा होने के बाद अगर नीतीश, राजद के साथ हाथ मिला लेते हैं तो फिर लेने के देने पड़ जायेंगे.
ऐसे में भाजपा फूंक-फूक कर कदम रखना चाहती है.
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उधर राजद के वरिष्ठ नेता शिवानंद तिवारी अनेक बार संकेत दे चुके हैं कि नीतीश को 2024 लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी के वैकल्पिक चेहरे के रूप में सामने आना चाहिए. मतलब साफ है कि राजद के साथ जा कर भी नीतीश को 2020 में मुख्यमंत्री पद पर राजद स्वीकार नहीं करने वाला.
नीतीश की कमजोरी
नीतीश कुमार की सबसे बड़ी कमजोरी, आक्रामक सवालों पर उत्तेजित हो जाने की है. वह इस बात को बर्दाश्त नहीं कर पाते कि मीडिया उनसे कड़क सवाल करे. वह ऐसे मीडिया झुल्ला जाते हैं. उन पर अनेक तरह के तोहमत मढ़ने लगते हैं. पाठकों को याद होगा कि जब राजद-जदयू सरकार में थे तो मीडिया का एक हिस्सा भाजपा के, लालू परिवार पर आरोपों के मामले में नीतीश कुमार से सवाल करता था तो वह असहज हो जाते थे. सुशील मोदी समेत भाजपा के दूसरे नेताओं को इस बात का बखूबी एहसास है.
भाजपा-जदयू के बीच बढ़ते टकराव के मामले में फिलवक्त सुशील मोदी चुप हैं. लेकिन पिछले चार-छह दिनों से वह नीतीश कैबिनेट की मीटिंग्स से भी कटे-कटे हैं. कल उन्होंने अपने स्तर पर, पटना के जलप्रकोप पर मीटिंग्स ली. मोदी जलप्रकोप की पीड़ा झेल कर आपदा प्रबंधन विभाग के कर्मियों द्वारा जब रेस्क्यु किये गये तो नीतीश ने उनका हाल-चाल पूछा या नहीं इसकी खबर भी मीडिया में जगह नहीं पायी. ये तमाम बातें भाजपा-जदयू के बीच बढते खटास को दर्शाती हैं.
पटना के धनाढ्य वोटर्स भाजपा से नाराज
हालांकि भाजपा को यह पता है कि नीतीश कुमार पर दबाव बढ़ाने के अपने खतरे भी हैं. वहीं दूसरी तरफ उसे यह भी पता है कि एक हद तक दबाव बना कर वह पटना के शहरी, अमीर मतदाता, जो भीषण जलप्रकोप के सबसे बड़े पीडित हैं और भाजपा के पारम्परिक वोटर्स हैं, को यह जताना चाहते हैं कि इस संकट के लिए भाजपा नहीं बल्कि जदयू (JDU) जिम्मेदार है. ऐसा करके वह अपने पारम्परिक वोटरों की नाराजगी जदयू के सर पर मढ़ना चाहती है. राजेंद्र नगर, कंकरबाग के धनाढ्य तबके के लाखों लोग इस जलप्रकोप के शिकार हैं और इनमें ज्यादातर भाजपा के सपोर्टर्स हैं.