इर्शादुल हक, संपादक, नौकरशाही डॉट कॉम
ये शख्स मुसलमानों की महफिलों में बुलाया जाता है. सबसे ऊंची कुर्सी पर इनका इस्तकबाल किया जाता है. गुलदस्ते से इनकी एहतराम के साथ पजीराई की जाती है.
बदले में माइक थामते ही यह मुसलमानों को, मुसलमानों के सामने ही दुरदुराता है. जलील करता है. डराता और धमकाता भी है. नाम प्रशांत किशोर है. इनकी भाषण शैली देखिए-
आप हमें वोट दीजिए या न दीजिए, जीतेगा तो जनसुराज ही. मैं जानता हूं कि आप खुद जनसुराज से जुड़ेंगे. चुनाव के पहले जुडिये या चनाव बाद जनसुराज की सरकार बनने के बाद जुड़िये. जुडना तो आप को है ही. हां चुनाव के पहले जुडियेगा तो आप इसके संस्थापकों में शुमार किये जाइयेगा. जीत के बाद आइयेगा तो जो जगह, जहां बची होगी वहां आपको सीट दी जायेगी…. जैसे किसी ट्रेने में आप पहले चढ़ते हैं तो मनचाही सीट मिल जाती है. ट्रेन में आखिर में चढ़ते हैं तो पीछे लटक कर यात्रा करनी पड़ती है या अंदर धक्के खाते हुए सफर तय करना होता है. मैं आपसे वोट मांगने नहीं आया हूं. मेरा कोई दल भी नहीं है. मैं तो आपको समझाने आया हूं कि आप राजनीति में अपनी लीडरशिप कैसे डेवलप कर सकते हैं.
यह आदमी इतने अहंकार में है कि मुसलमानों को ऐसा बेबस समाज मानता है जो हार-पाछ के उसके पीछे चलेगा. चाहे उन्हें भरी महफिल में जलील करो, डराओ-धमकाओ, कुछ भी करो.
कल यानी 27 अगस्त को जेडीआर के संयोजक अशफाक रहमान साबह ने प्रशांत किशर जी को आमंत्रित किया था. राजनीतक मंथन का कार्यक्रम था.
मैं वक्त से पहले पहुंचा. अशफाक साहब का हुक्म था. मेरे नजदीक अशफाक साहब उन चंद लीडरान में हैं जो दुरअंदेश हैं, भविष्य द्रष्टा हैं, अनापसंद और खुद्दार भी हैं. सो उनकी दावत की तामील मेरे लिए लाजिमी है. लाजिमी इसलिए भी थी कि उन्होंने बतौर पत्रकार मुझे बुलाया था.
अशफाक भाई ने प्रशांत किशोर से पहले अपनी बात रखी. शायद उन्होंने माहौल को पहले ही पढ़ लिया था. सो महज ढ़ाई मिनट में वो बातें कह दीं, जो कोई और मुस्लिम लीडर आज तक पीके के सामने न कह सका. अशफाक भाई ने कहा-
मुसलमान इस देश को सालाना 12 लाख करोड़ का फौरन एक्सचेंज कंट्रिब्यूट करता है. वह अपने श्रम व हुनर और अपने बाजुओं पर भरोसा करता है. गोया अशफाक भाई ने पीके को इशारों में बताया कि मुसलमान की अना को, उसके हुनर और उसके बाजुओं की ताकत को कम न आका जाये.
एक प्रायोजित घटना
अशफाक भाई बोल ही रहे थे कि इसी दौरान एक प्रायोजित घटना घटी. जनसुराज से जुड़ी दो महिलायें उठती हैं. और आवाज देती हैं कि अशफाक साहब “जय बिहार” व “जय जनसुराज” का नारा लगवायें. जवाब में अशफाक भाई टस से मस नहीं होते हैं. वह बोलते हैं यह कार्यक्रम इस लिए आयोजित है कि लोग प्रशांत किशोर को सुनें. उन्हें समझें. मुसलमान अगर कंविंस हुए तब नारे लगेंगे.
फिर दोहराता हूं कि मैं इसीलिए अशफाक भाई का एहतराम करने पर मजबूर होता हूं.
लेकिन कुछ मुसलमान तो इस कार्यक्रम में प्रशांत किशोर के पैरों में बिछते दिखे. इन में एक थे मोनाजिर हसन. मोनाजिर हसन को नयी पीढ़ी के लोग शायद उतना न जानते हों. लालू के दौर में सत्ता की मलाई खूब खाई जनाब ने. लालूजी कमजोर हुए तो नीतीश कुमार का दामन थाम लिया. वहां भी मंत्रिपद पर ऐश व इसरत की जिंदगी गुजारी. मुंगेर से लोकसभा चुनाव जीत कर सांसदी की. बाद में बीमार हुए. गालिबन कैंसर के शिकार हुए. जिस्म से लाचार हुए तो सियासत से दूर किये गये. आज एक गुमशुदा जीवन जी रहे हैं. लेकिन सत्ता की हसरत जवान रखते हैं. सो प्रशांत किशोर के करीब आ लिए. गोया जिन दो पार्टियों में लाल बत्ती की शानदार जीवन शैली बितायी, वहां उनके लिए गुंजाइश नहीं तो जन सुराज ही सही.
मुझे मालूम है कि यह पोस्ट लम्बा हो रहा है. पर कुछ बातें आम लोगों के इल्म में होना चाहिए. आप चाहें तो पोस्ट को अधूरा पढ़ कर छोड़ सकते हैं.
खैर मैं बता रहा था कि जन सुराज में कैसे मुसलमान जुड़ रहे हैं. कुछ वैसे लोग हैं जो नन पालिटिकल तो हैं, पर बाशऊर हैं. सियासत में हिस्सेदारी की महत्वकांक्षा रखते हैं. परंतु किसी अन्य स्थापित पार्टियों में जाने में या तो उन्हें, उनकी अना रोकती है या फिर उन दलों में के ताअल्लुक से उनके अंदर नाउम्मीदी है.
दूसरे वो लोग हैं जो किसी भी नाव में छलांग लगा कर चढ़ जाना ही सियासत समझते हैं. अब तक कई दलों के झंडे ले कर जय-जय करते रहे हैं. ये वो लोग हैं जिनके पास राजनीतिक हसरत हिलोड़े मारती रहती हैं. ये अपनी ताकत बनाने के बजाये झंडे ढो लेने को ही सियासत समझते हैं.
ऐसे लोगों के लिए इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि किसकी पोलिटिकल आयडियालॉजी क्या है. भाजपा इन्हें आज किसी आयोग का सदस्य बना दे तो दिलीप जायसवाल के दरवाजे पर खड़े मिलेंगे.
तीसरे किस्म के वे मुस्लिम हैं जो प्रशांतकिशोर के साथ सेल्फी खीच लेने को अपना सौभाग्य समझते हैं.
————
PK के सामने JDR के अशफाक रहमान ने दिखाई मुसलमानों की ताकत
मेरा मानना है कि मुसलमान अपनी ताकत, अपनी अना को पहचानें. आप बिहार की सबसे बड़ी सियासी कुअतः हैं. अपनी ताकत से आगे बढ़ें. अगर किसी मौजूदा दल में रहने को आप गुलामी समझते हैं तो बस ये करें कि एक की गुलामी छोड़ किसी प्रशांत किशोर की गुलामी की जंजीर में न बंधें. और सोचें कि जो आदमी आपको, आपकी महफिलों में आ कर कहे कि मुझे आप वोट दीजिए या न दीजिए जीतेगा तो जन सुराज ही… और सरकार बन जाने के बाद आइएगा तो आपको मेरी ट्रेन में लटक कर सफर करना पड़ेगा. सोचिए कि यह आदमी अगर… अगर सत्ता के करीब भी पहुंच गया (जिसकी गुंजाइश काफी संदिग्ध है) तो आपको किसी नजर से देखेगा.
आज रात आठ बजे #हक_की_बात में झकझोड़ देने वाला विश्लेषण देखिए-
जाति गणना पर तेजस्वी और मुख्यमंत्री में घमासान