पीएमसीएच के जूनियर डाक्टर फिर हड़ताल पर हैं. इलाज के बिना फिर मरीजों की मौतों की गिनती शुरू हो गयी है. डाक्टरों का कहना है कि एटेंडेंट ने उनकी पिटाई की इसलिए वह हड़ताल पर हैं. इर्शादुल हक, एडिटर नौकरशाही डॉट कॉम
सवाल यह है कि जो डाक्टर मरीजों के लिए जान बचाने वाले फरिश्ते की हैसियत रखते हैं उनकी पिटाई क्यों होती है? क्या एटेंडेंट पागल होते हैं? क्या वे क्रिमिनल और रंगदार होते हैं? नहीं. बिल्कुल नहीं.
पटना मेडिकल कॉलेज अस्पताल के डाक्टरों की हड़ताल का इतिहास देखिए. वहां आम तौर पर सीनियर डाक्टर हड़ताल नहीं करते. जूनियर डाक्टर ही करते हैं. जूनियर डाक्टरों के बारे में आम मान्यता बनी हुई है कि वे डाक्टर की भूमिका के बजाये दबंग की भूमिका में होते हैं. वह मरीजों के एटेंडेंट पर हीन दृष्टि रखते हैं. उन्हें बात बे बात अपमानित करते हैं. कई बार एटेंडेंट को धकिया कर बाहर तक कर देते हैं. उनका व्यवहार डाक्टर के बजाये कसाई की तरह का होता है. गुरुवार को इन डाक्टरों के इग्नोरेंस के कारण मरीज की मौत हो गयी. तो एटेंडेंट भड़क गये. क्रोधित लोगों ने डाक्टरों को दौड़ा दौड़ा कर पीटा. इस घटना में वे लोग भी शामिल और मददगार हो गये जो वहां पहले से इलाज करा रहे हैं और जिन्होंने इन डाक्टरों की हरकतों को सहा और झेला है.
ऐसी हड़ताल इसी वर्ष मई में भी जूनियर डाक्टरों ने की थी. तब दर्जन भर मरीज इलाज के बिना मर गये थे. ऐसी हड़तालों की लम्बी सूची है. साल में कम से कम एक या दो बार ये डाक्टर हड़ताल पर चले जाते हैं.
सरकार जागती क्यों नहीं
पिछली बार की हड़ताल पर राज्य सरकार की काफी आलोचना हुई थी. हर बार होती है. तभी राज्य सरकार ने इमरजेंसी सेवा को हर हाल में बहाल रखने के लिए नयी नियमावली बनाई थी. तय हुआ था कि ऐसी व्यवस्था सुनिश्चित की जाये जिससे इमरजेंसी का काम ठप न पड़े. लेकिन इस नियमावली का कोई अता पता नहीं है. यह राज्य सरकार का अगंभीर रवैया है. पीएमसीएच बिहार का सबसे बड़ा अस्पताल है और कम आय वाले लोगों का एक मात्र सहारा है. यहां इलाज की व्यवस्था भी अच्छी है और डाक्टर भी अच्छे हैं पर जूनियर डाक्टरों का तानाशाही भरा रवैया ही उनकी पिटाई का करण बनते हैं. हालांकि डाक्टरों की पिटाई को किसी भी तरह से जायज नहीं ठहराया जा सकता लेकिन एक वैसे परिवार की कल्पना कीजिए जिसका कोई सदस्य इलाज करवा रहा हो और डाक्टर उसकी बीमारी के प्रति संवेदनशील नहीं हो. मरीजों के रिश्तेदारों को बात बात पर दुत्कारा जाये और अंत में डाक्टरों की लापरवाही के कारण मरीज चल बसे, तो ऐसी हालत में तीमारदारों पर क्या बीतेगी?
यह ठीक है कि स्वासस्थ्य मंत्री जूनियर डाक्टरों के प्रति संवेदनशील हैं. वह कह रहे हैं कि उन्हें परेशानी में नहीं रहने देंगे. उनकी सुरक्षा की जायेगी. पर सवाल यह है कि डाक्टर अगर देवता का रूप है तो उसे किसी से जान को क्यों खतरा हो सकता है. ऐसे देवता जो जान बचाये उसकी जान भला कोई क्यों लेना चाहेगा. क्यों उसके साथ मार पीट की जायेगी. लिहाजा पीएमसीएच के जूनियर डाक्टरों की समस्या का समाधान खुद जूनियर डाक्टर ही हैं. वे अपने व्यवहार को ठीक करें. मरीजों और तीमारदारों के साथ सहानुभूति से पेश आयें. उचित समय पर उनका इलाज करें और उनके दर्द, उनकी पीड़ा को समझें. अगर वे ऐसा करते हैं तो मरीजों की दुआयें उनके साथ होंगी और तीमारदार उनका सम्मान करेंगे. पीटेंगे तो कत्तई नहीं.