प्रशांत किशोर का प्रेस कॉन्फ्रेंस कल, बताइए क्या है उनकी विचारधारा

चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर कल नई पारी का एलान करेंगे। भाजपा की विचारधारा हिंदुत्व -हिंदू राष्ट्र है, राजद का सामाजिक न्याय, पीके की क्या है विचारधारा?

कुमार अनिल

अब तक चुनाव रणनीतिकार रहे प्रशांत किशोर कल अपनी नई पारी- राजनीतिक पारी का एलान करेंगे। वे प्रेस कॉन्फ्रेंस में अपने कार्यक्रम की घोषणा करेंगे। एक सवाल है। हर दल की अपनी विचारधारा होती है। कांग्रेस की विचारधारा महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू की विचारधारा है। वह पूरे स्वतंत्रता आंदोलन की वारिस भी है। भाजपा हिंदुत्व की विचारधारा पर चलती है। सावरकर की विचारधारा, संघ की विचारधारा है भाजपा की विचारधारा। राजद सामाजिक न्याय की पार्टी है। जदयू सामाजिक न्याय के साथ विकास को जोड़ता है। ये दोनों दल लोहिया के समाजवाद की बात करते हैं। प्रशांत किशोर की विचारधारा क्या है या अब जब वे राजनीतिक दल का एलान करेंगे, तो उनकी विचारधारा क्या होगी?

प्रशांत किशोर कई दिनों से पटना में हैं। वे लगातार लोगों से मिल रहे हैं। नौकरशाही डॉट कॉम ने प्रशांत किशोर के पार्टी बनाने के एलान के साथ ही बताया था कि उनका जोर रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य और विकास पर होगा। इसके लिए वे छात्र-युवा, महिला, एनजीओ, लिबरल (उदार) लोगों को संगठित करना चाहेंगे।

आज नौकरशाही डॉट कॉम ने यह पता करने की कोशिश की कि प्रशांत किशोर की विचारधारा क्या होगी। अब तक मिली जानकारी के अनुसार वे महात्मा गांधी और डॉ. आंबेडकर के विचारों पर चलने का एलान कर सकते हैं। आज के दौर में महात्मा गांधी के साथ चलने का अर्थ है आपको नफरत की राजनीति के खिलाफ जाना होगा। आंबेडकर आज वंचितों खासकर दलितों के सबसे बड़े प्रतीक पुरुष हैं। आंबेडकर के साथ चलने का अर्थ भी है कि आपको उग्र हिंदुत्व के विरोध में जाना होगा। ब्राह्मणवादी राजनीति का विरोध करना होगा। कुल मिला कर गांधी और आंबेडकर दोनों आज हिंदुत्व के खिलाफ सबसे जरूरी हैं।

केजरीवाल की आप ने गांधी को छोड़ दिया है। इसीलिए जहांगीरपुरी में जब मुस्लिमों के घर गिराए जा रहे थे, तब आप का कोई नेता सामने नहीं आया। वे चाहते तो वृंदा करात की तरह बुलडोजर के सामने खड़े हो जाते, पर कोई नहीं आया। जहांगीरपुरी में सांप्रदायिकता भड़ने पर भी वे चुप ही रहे, जैसे शाहीनबाग के समय चुप थे या किसान आंदोन के समर्थन में कभी लड़ते नहीं दिखे। प्रशांत किशोर अगर गांधी को अपनाते हैं, तो यह बड़ी बात होगी। बिहार की माटी भी कुछ ऐसी ही है।

जेपी की चर्चा इसलिए नहीं की क्योंकि वे ऐसे नेता रहे हैं, जो भाजपा के लिए भी फिट बैठते हैं और राजद के लिए भी। जेपी कभी सांप्रदायिकता के खिलाफ लड़ने के लिए नहीं जाने गए। गांधी जिंदगी भर सांप्रदायिकता से लड़ते रहे। और अंत में एक हिंदू चरमपंथी के हाथों शहीद भी हुए।

अब तक मिल रही जानकारी के अनुसार पीके से मिलनेवालों में भाजपा की पृष्भभूमि वाला कोई नेता नहीं है। पीके के बिहार आने से सबसे ज्यादा जदयू और भाजपा ही परेशान है। इसकी चर्चा हम पहले की स्टोरी में कर चुके हैं।

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By Editor


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