बिहार की दूसरी सरकारी भाषा सरकारी उपेक्षा की शिकार है. बरसों से उर्दू अकादमी, उर्दू एडवायजरी बोर्ड, मदरसा बोर्ड, उर्दू निदेशालय डिफंक्ट है.जबकि उर्दू के खिलाफ बड़े पैमाने पर अफसरों के द्वरा भी सौतेला व्यवहार किया जा रहा है. इन तमाम मुद्दों पर सरकार को जगाने के लिए उर्दू काउंसिल हिंद ने एक बड़े धरने का आयोजन किया.

पटना के गर्दनीबाग में आयोजित धरने में बड़ी संख्या में उर्दू के चाहने वालों, शायरों, साहित्यकारों के साथ राजनीति जगत के लोगों ने हिस्सा लिया.

इस अवसर पर उर्दू काउंसिल हिंद के नाजिम ए आला अस्लम जाविदां ने उर्दू के साथ हो रही नाइंसाफी को उजागर किया. उन्होंने कहा कि बिहार उर्दू अकादमी, उर्दू एडवायजरी बोर्ड, औऱ उर्दू निदेशालय डिफंक्ट हैं. जबकि मदरसा शिक्षा बोर्ड चेयरमैन के बिना चल रहा है. असलम जाविदां ने उर्दू के साथ सरकारी भेदभाव पर जोरदार प्रहार करते हुए कहा कि अगर सरकार ने इस दिशा में फैसला नहीं लिया तो राज्यव्यापी आंदोलन शुरू किया जायेगा.

 

उर्दू को धीमा जहर

 

गौरतलब है कि उर्दू को 1980 में बिहार की दूसरी सरकारी भाषा का दर्जा दिया गया था. लेकिन व्यवहार में इस पर अमल नहीं होता. धरने को संबोधित करते हुए बिहार उर्दू अकादमी के पूर्व सचिव मुश्ताक अहमद नूरी ने साफ कहा कि  राज्य सरकार उर्दू की तरक्की के लिए अपनी जिम्मेदारियों को पूरा करे. उन्होंने कहा कि उर्दू को धीमा जहर दे कर मारा जा रहा है.

इस अवसर पर राज्य सरकार के समक्ष उर्दू से जुडी 18 समस्याओं की सूची रखी गयी. इस अवसर पर मांग की गयी कि मैट्रिक में उर्दू अनिवार्य पेपर के रूप में खत्म करने की साजिश न की जाये. कहा गया कि 12 हजार उर्दू टीईटी परीक्षा का रिजल्ट रोक कर ऱखा गया है इसे जारी किया जाये.

इस अवसर पर राजद नेता तन्वीर हसन ने उर्दू काउंसिल द्वारा आयोजित धरने को साहसिक कदम बताते हुए कहा कि हम उर्दू काउंसिल की इस पहल को सैल्यूट करते हैं जिसने उर्दू के हक की लड़ाई को सड़क तक पहुंचाने की पहल की.

 

By Editor

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