रहमतुल्लाह मोहम्मद सयानी: स्वतंत्रता आंदोलन के नायक जो अंतर्धारमिक सौहार्द का प्रतीक थे
रहमुतुल्लाह सयानी का जन्म 5 अप्रैल 1848 को बम्बे में हुआ था वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 72 सदस्यों में से एक थे. वह भारत के पहले अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त मुस्लिम थे. उन्होंने 1868 में पोस्ट ग्रेजुएट की उपाधि हासिल की थी. बाद में उन्होंने कानून की पढ़ाई भी की. इस दौरान उन्होंने अवाम से जुड़े अनेक मामलों में केस लड़ा.
रहमतुल्लाह सयानी स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ ब्रिटिश हुकूम द्वारा दायर मुकदमों की भी पैरवी करके बड़ी तादाद में उन्हें कानूनी अधिकार दिलाया.
रहमुतुल्लाह बम्बे मुनिसिपल कार्पोरेशन के मेयर भी रहे. वह बम्बे लेजिस्लेटिव काउंसिल और इम्पेलरियल लेजिसलेटिव काउंसिल के मेम्बर भी रहे. रहमतुल्लाह सयानी ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 12वें अधिवेशन की अध्यक्षता की. इस अधिवेशन में सयानी द्वारा दिया गया भाषण कांग्रेस अधिवेशनों के इतिहास के सर्वत्तम भाषणों में शुमार होता है. इस भाषण को समकालीन जर्नलों में बड़ी प्रमुखता से छापा गया था.
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रहमतुल्लाह हिंदू-मुस्लिम एकता के अलमबरदार माने जाते थे और दोनों समुदायों के बीच आपसी भाईचारे के लिए काफी काम किया. भारत की स्वतंत्रता आंदोलन में मुसलमानों के शामिल होने के लिए उन्होंने लोगों बड़े पैमाने पर प्रेरित किया. रहमतुल्लाह ने अंग्रेजों के अत्याचार के खिलाफ लोगों को जागरूक करने में बड़ी भूमिका निभाई.
[box type=”note” ]रहमुतुल्लाह बम्बे मुनिसिपल कार्पोरेशन के मेयर भी रहे. वह बम्बे लेजिस्लेटिव काउंसिल और इम्पेलरियल लेजिसलेटिव काउंसिल के मेम्बर भी रहे. रहमतुल्लाह सयानी ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 12वें अधिवेशन की अध्यक्षता की.[/box]
रहमतुल्लाह सयानी ने टैक्सेशन सिस्टम का व्यापक अध्ययन किया और इस आधार पर भारत के किसानों व मध्यम वर्ग के लोगों की कानूनी लड़ाई लड़ी. इस प्रकार उन्होंने भारतीय लोगों के हुकूक और उनके अधिकारों की रक्षा की लम्बी लड़ाई भी लड़ी.
रहमतुल्लाह सयानी का देहान्त 4 जून 1902 को हुआ. उनके महत्वपूर्ण योगदान ने उन्हें इतिहास के स्वर्णाक्षरों में जगह मिली. वह हमेशा भारतीयों को प्रेरित करते रहेंगे.