बिहार में भाजपा और संघ की पृष्ठभूमि वाले नेता-कार्यकर्ता कहीं दुखी हैं, तो कहीं सीधे अपने प्रत्याशी का विरोध कर रहे हैं। पटना में भाजपा कार्यकर्ताओं ने ही अपने प्रत्याशी रविशंकर प्रसाद का जम कर विरोध किया। विरोध में नारे लगाए। बैठक में एक-दूसरे पर कुर्सियां फेंकी गईं। उधर भाजपा सांसद अश्विनी चौबे का दर्द भी छलका। बक्सर से उनका टिकट काट दिया गया है। उन्होंने कहा कि उनका दोष सिर्फ इतना ही कि वे ब्राह्मण हैं। इसी कारण उनका टिकट काटा गया। उधर जहानाबाद में जदयू सांसद और प्रत्याशी चंद्रेश्वर प्रसाद का लगातार विरोध हो रहा है।

राजनीतिक पर्यवेक्षक मानते हैं कि जगह-जगह भाजपा में दिख रहे असंतोष, कार्यकर्ताओं और समर्थकों के विरोध की वजह यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भले ही भले ही 400 पार का नारा दे रहे हैं, लेकिन जमीन पर कोई लहर नहीं बन पा रही है। प्रधानमंत्री दो बार बिहार आ चुके। पहले जमुई तथा दूसरी बार नवादा में, लेकिन कोई एजेंडा नहीं सेट कर पाए। पिछली बार पुलवामा-बालाकोट के कारण राष्ट्रवाद का उभार था, इस बार न राष्ट्रवाद चल पा रहा है और न ही राम मंदिर। उधर विपक्ष के हौसले बुलंद है। वे बेरोजगारी, महंगाई, लोकतंत्र, संविधान की रक्षा, आरक्षण का सवाल उठा रहा है। विपक्ष के इन सवालों से भाजपा बचती नजर आ रही है।

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बिहार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने कार्य बताने के बजाय परिवारवाद को मुद्दा बनाया, लेकिन उनके खुद के प्रत्याशी परिवारवाद से आए हैं। जमुई में चिराग पासवान के जीजा चुनाव लड़ रहे हैं। इस बीच विपक्ष ने इलेक्टोरल बान्ड का मामला उठा दिया है। भाजपा को भ्रष्टाचार की वाशिंग मशीन कहा जा रहा है, जिसका जवाब भाजपा नहीं दे पा रही है। इस बीच बिहार में आम धारणा बन रही है कि इस बार एनडीए 40 में 39 सीट नहीं जीत सकता। उसकी सीटें कम होंगी। इन सब बातों के कारण भाजपा समर्थकों का उत्साह बढ़ने के बजाय उनके भीतर का अंतरविरोध उभर कर सामने आने लगा है।

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