जदयू ने RJD के घोषणापत्र पर ऐसा सवाल उठाया है, जिस पर चर्चा होनी चाहिए। जदयू ने तंज कसते हुए कहा कि 23 सीटों पर चुनाव लड़ने वाला राजद राष्ट्रीय मुद्दों पर बात कर रहा है। यहां एक गंभीर सवाल खड़ा हो जाता है कि क्या लोकसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस को छोड़कर किसी दल को घोषणापत्र जारी करने का अधिकार नहीं है? ये ही दो दल हैं, जो 272 से ज्यादा सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं।
जदयू प्रवक्ता नीरज कुमार ने राजद के घोषणापत्र जारी करने पर सवाल उठाया कि 23 सीट पर चुनाव लड़ने वाला राष्ट्रीय संदर्भ में बात कर रहा है। देश का एजेंडा सेट कर रहा है।
''23 सीट पर चुनाव लड़ रहे हैं और पूरे देश के बारे में घोषणा कर रहे हैं. हालत तो यही हो गई है कि हेलिकॉप्टर पर संतरा खा रहे हैं और छिलका कांग्रेस और सीपीआई और सीपीएम के हाथ में गिरा रहे हैं… 17 महीने का रोजगार हम इन्हें दिए और ये रोजगार की बात कर रहे हैं…:'' जेडीयू… pic.twitter.com/f1GcoGU3eH
— AajTak (@aajtak) April 13, 2024
जदयू के सवाल को उचित मान लिया जाए, तो यह मतदाताओं के साथ धोखेबाजी हो जाएगी। छोटे दल लोकसभा का चुनाव लड़ते हैं, लेकिन घोषणापत्र जारी न करें, तो मतदाता किस आधार पर उन्हें वोट करेंगे। लोकसभा चुनाव राष्ट्रीय चुनाव है। छोटे दल के सांसद जीत कर जाएंगे, तो अग्निवीर पर क्या बोलेंगे, यह मतदाता को पता होना चाहिए। अगर छोटे दल घोषणापत्र जारी नहीं करते हैं, तो यह राजनीति में अवसरवाद को बढ़ावा देगा, जो लोकतंत्र को कमजोर करेगा।
जदयू के रुख से माना जा सकता है कि वह अपना घोषणापत्र जारी नहीं करेगा। जदयू केवल 16 सीटों पर चुनाव लड़ रहा है। मतदाता कैसे जानेंगे कि बढ़ती बेरोजगारी पर जदयू का विचार क्या है, मीडिया की स्वतंत्रता पर क्या कहना है, केंद्रीय एजेंसियों के इस्तेमाल पर क्या कहना है। जदयू जब इंडिया गठबंधन के साथ था, तो संविधान पर उसे खतरा नजर आता था, ईडी, सीबीआई का गलत इस्तेमाल हो रहा था, अब जबकि वह भाजपा के साथ है, तो मतदाता को जानने का हक है कि रोजगार पर, केंद्रीय एजेंसियों की भूमिका पर, महंगाई पर उसका क्या कहना है।
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मालूम हो कि क्षेत्रीय दल भी लोकसभा चुनाव में घोषणापत्र जारी करते रहे हैं। यही परंपरा है। सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने भी हाल में ही घोषणापत्र जारी किया है।