राजद नेता ने बताया परशुराम ने की थी यदुवंशियों-निशादों की रक्षा
राजद प्रवक्ता चितरंजन गगन ने परशुराम जयंती में बताया किस प्रकार परशुराम ने कमजोर वर्ग की रक्षा की। महिलाओं को शिक्षा का अधिकार और युद्ध कौशल सिखाया।
कदमकुआँ स्थित ” परशुराम कुटी ” में भगवान परशुराम के अवतरण दिवस पर आज विशेष रूप से पूजा अर्चना के साथ हीं ब्राह्मण महासभा की ओर से विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया । पं॰ शैलेन्द्र त्रिपाठी की अध्यक्षता में आयोजित गोष्ठी को मुख्य वक्ता के रूप में सम्बोधित करते हुए राजद प्रवक्ता चित्तरंजन गगन ने कहा कि राजनीति के मंडी में पिछले कुछ वर्षों से भगवान के नाम की खुब मार्केटिंग हो रही है।पर उनके आदर्शों पर अमल नहीं किया जाता। जहाँ भगवान के रूप में पूज्य अवतारों ने मानव कल्याण, प्रेम और बंधुत्व का संदेश दिया वहीं आज भगवान के नाम पर विद्वेष और ईर्ष्या को प्रोत्साहित किया जा रहा है।
भगवान परशुराम के चरित्र की चर्चा करते हुए राजद नेता ने कहा कि ऋषि जमदग्नि के पुत्र होने के कारण जामदग्न्याय और रेणुका के गर्भ से जन्म लेने के कारण इन्हें रेणुका पुत्र भी कहा जाता है। पितृसत्तात्मक विश्व में मां के नाम से चर्चित होने और पहचाने जाने वाले ये संभवतः प्रथम नाम हैं।
वहीं सदैव परशु धारण किए रहने के कारण इन्हें भगवान परशुराम के नाम से जाना जाता है। अन्याय, अधर्म और अनीति के विरुद्ध संवेदनाओं से पूर्ण भगवान परशुराम हैं, जिनके चरित्र में वेदनाओं को हरने और मानवीय मूल्यों के स्थापना का अद्भुत मिशाल मिलता है। जहां राम, कृष्ण और बुद्ध अवतारों का जन्म राजकुल में हुआ।वहीं भगवान परशुराम का जन्म वन में एक फूस की कुटिया में हुआ था । अन्य अवतारों से इतर परशुराम जी का जीवन सुविधाओं के घोर अभाव में बीता। पहले पिता फिर मां और तदुपरांत बंधु बांधव को भी अकारण और असमय खोया। समय की यात्रा में जब तक देवत्व सिद्ध नहीं हुआ तब तक हर संघर्ष में परशुराम जी नितांत अकेले थे। परिवर्तनों के वाहक परशुराम परिश्रम और चमत्कार के जाग्रत देव हैं।
भगवान परशुराम नारी समानता और शिक्षा ज्ञान के भी प्रबल पैरोकार थे।इन्होंने देवी रोहिणी को युद्ध विद्या की शिक्षा दी वही देवी लोपामुद्रा, सती अनुसुइया और देवी लोमहर्षिणी को लेकर नारी जागृति का पावन अभियान भी चलाया था। इन्होंने दुराचारी सहस्त्रार्जुन के कोप से यदुवंशी और निषाद जातियों की रक्षा की थी। इन्हें अभय दिया, वहीं शिक्षा संस्कार संग कृषि वानिकी और गो पशुपालन का ज्ञान दिया। ऐसी ही विद्या और व्यवस्था उन्होंने सहस्त्रार्जुन द्वारा सताए ब्राह्मणों के लिए भी की थी।
परशुराम जी ने पूरी व्यवस्था का हीं विस्तार प्रचार बिना किसी भेदभाव के सुदूर स्थानों तक किया था। क्या आर्य, क्या अनार्य,अघोरी औघड़ से लेकर अवर्ण सवर्ण सब को आर्य श्रेष्ठ बनाया था। चमड़ी, जाति, लिंग और आर्थिक स्थिति के आधार पर बिना अंतर भेंट के उन्होंने सबों को गले लगाया , अपनाया ।किंतु एक साजिश के तहत हीं इनको क्षत्रिय हंता और विरोधी बताया जाता है। पर जिस देव की दादी क्षत्राणी हो जिस पर ऋषि विश्वामित्र का प्रभाव हो क्या वो भला ऐसा हो सकता है? कदापि नहीं।
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