लोकसभा चुनाव में भाजपा के बहुमत से दूर रहने के बाद पहली बार RSS प्रमुख मोहन भागवत ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम लिये बिना उन्हें हड़काया है। कहा कि सच्चा स्वयंसेवक कभी अहंकारी नहीं होता। किसी दूसरे की भावना को चोट नहीं पहुंचाता। कहा कि चुनाव प्रचार में शिष्टाचार और मर्यादा का पालन नहीं किया गया। भागवत नागपुर में संघ मुख्यालय में कार्यकर्ता विकास वर्ग (ट्रेनिंग प्रोग्राम) के समापन के अवसर पर बोल रहे थे।
उधर संघ से जुड़ी पत्रिका ऑर्गनाइजर में संघ के एक नेता रतन शारदा ने आलेख लिखकर भाजपा नेताओं को खरी-खोटी सुनाई है। लिखा है कि चुनाव में भाजपा नेताओं ने संघ से मदद तक नहीं मांगी। शारदा ने सख्त शब्दों में लिखा है कि भाजपा कार्यकर्ता जनता से कट गए हैं। घर बैठकर सोशल मीडिया में पोस्ट करते रहे। वे खुद के बनाए बुलबुले में खुश थे। यही कारण है कि चुनाव में भाजपा को जैसा प्रदर्शन करना चाहिए था, वैसा करने में पार्टी असफल रही।
संघ प्रमुख मोहन भागवत ने अपने संबोधन में पहली बार मणिपुर में जारी हिंसा का भी जिक्र किया। वहां की स्थिति पर चिंता जताई। कहा कि मणिपुर के हालात को नियंत्रित करने के लिए आखिर कौन पहल करेगा।
संघ प्रमुख के वक्तव्य तथा ऑर्गनाइजर के आलेख का मतलब क्या है? मतलब साफ है कि संघ प्रधानमंत्री की कार्यशैली से खुश नहीं है। सख्त आलोचना का मकसद भाजपा को अपने नियंत्रण में लाना है। फिलहाल स्थिति यह है कि मोदी का चेहरा संघ से भी बड़ा हो गया। जेपी नड्डा ने कहा था कि उन्हें संघ की मदद की जरूरत नहीं है। हम दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी हैं। गांव-गांव तक भाजपा के कार्यकर्ता हैं। पन्ना प्रमुख हैं। संघ का मकसद मोदी को आईना दिखाते हुए उन्हें हड़काना है कि संघ से बड़ा होने की कोशिश न करें।
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मोदी शासन में संघ ने खूब फायदा भी उठाया है। विभिन्न संस्थाओं में अपने लोगों को बैठाने में सफल रहा है। इसीलिए संघ की सख्त आलोचना को नए संघ और भाजपा के संबंध में आए असंतुलन को दूर करते हुए फिर से अपनी वौचारिक श्रेष्ठता को भाजपा और मोदी पर कायम करना है। देखना है कि मोदी संघ की दी गई सीख को स्वीकार करते हैं या संघ से खुद को बड़ा समझने की राह पर बढ़ते हैं।