SaatRang : बुद्ध के उल्टा अतीतजीवी क्यों हैं नीतीश, किसकी हानि?
बुद्ध की प्रतिमा लगाना और उनके विचारों पर चलना एक ही बात नहीं। बुद्ध ने वर्तमान पर जोर दिया, नीतीश हमेशा 15 साल पहले की बात करते हैं। किसका नुकसान?
हम बिहारी बुद्ध पर गर्व करते हैं, करना भी चाहिए। लेकिन क्या आपने कभी विचार किया है कि बुद्ध के विचार क्या थे? अगर हम बुद्ध को महान कहते हैं, तो वे अपने विचारों से महान हुए। उनके विचारों को भूलकर सिर्फ मूर्तिपूजा से कुछ भी हासिल नहीं होनेवाला।
आप गूगल पर जाकर टाइप करिए- बुद्ध की शिक्षा। उनकी सबसे महत्वपूर्ण शिक्षा, प्रायः सबसे पहले नंबर पर मिलेगी कि हमेशा वर्तमान में जिओ। वे कभी अतीत की बात नहीं करते। वर्तमान की बात करते हैं। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बुद्ध सक्रिट बनवाने की पहल की, कई स्थलों पर बोधि वृक्ष लगाए या लगवा चुके हैं, लेकिन वे हमेशा 15 साल पहले की बात करते हैं। भर उपचुनाव वे मतदाताओं को याद दिलाते रहे कि 15 साल पहले क्या था? नई पीढ़ी को 15 साल पहले की बात जानने के लिए कहते थे कि अपने पिता से पूछो।
बुद्ध ने वर्षों की तपस्या, साधना और चिंतन के बाद ज्ञान पाया। उन्होंने कहा- शरीर और मस्तिष्क के स्वास्थ्य के लिए अतीत का रोना न राएं और न ही भविष्य की चिंता करें, बल्कि वर्तमान पर जोर दें। वर्तमान पर जोर देंगे, वर्तमान को समझेंगे, तो भविष्य का सुंदर होना तय है। इसके विपरीत अतीत का रोना रोकर न वर्तमान ठीक किया जा सकता है और न ही भविष्य।
ओशो कहते हैं आदमी या तो अतीत में जीता है या भविष्य की कल्पना में। वह वर्तमान में जीना नहीं चाहता। नीतीश कुमार आदमी की इस कमजोरी को हमेशा जिंदा रखना चाहते हैं।
नेहरू मूर्ति पूजक नहीं थे, पर वे बुद्ध की शिक्षा पर चले। अगर वे भी अतीतजीवी होते तो कह सकते थे कि सोचो अंग्रेजी राज में क्या था, देश दूसरे देशों से दान में मिले अनाज पर निर्भर था, बड़ी आबादी अनपढ़ थी, भूख और अकाल था। मगर नेहरू वर्तमान में जिए, इसलिए हरित क्रांति की योजना बनाई और अनाज में देश को आत्मनिर्भर किया। पंचवर्षीय योजनाएं बनाईं।
नीतीश कुमार जब कहते हैं कि 15 साल पहले के बारे में सोचो, तब वे दरअसल आज के बिहार के दुख से आंख मूंद रहे हैं। बुद्ध ने पूरा जोर वर्तमान के दुख को दूर करने पर दिया। इसी की विधि बताई। बिहार का वर्तमान कड़वा है। दुखदायी है। गोलगप्पा बेचने के लिए कश्मीर जाना पड़ता है। 15 वर्षों से नीतीश कुमार मुख्यमंत्री हैं, लेकिन गांव का आदमी पांच हजार-दस हजार रुपए महीना कमाने के लिए परदेश जाने को विवश है।
अगर बिहार को अपने दुख से मुक्त होना है, तो बुद्ध की शिक्षा पर चलते हुए वर्तमान पर सोचना होगा, बोलना होगा, कदम उठाने होंगे।
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