SaatRang …मेरी लाश लेने सिंघु बॉर्डर के किसान आएं
हम कृष्ण के बाल रूप के गीत गाते हैं। भारत बच्चों में भगवान देखनेवाला देश है। पंजाब के 11 साल के बच्चे पर क्यों बरस रहा आशीर्वाद?
सिखों के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी को सिर्फ नौ साल में सत्य, धर्म और मानवसेवा की अच्छी समझ हो गई थी। उसी पंजाब के 11 साल के अभिजोत सिंह को जब पुलिस ने गिरफ्तार किया, तो उसने जेल जाते हुए जो कहा, उस पर लाखों लोग न्योछावर हैं। पूरे पंजाब, हरियाणा, प. उत्तर प्रदेश में वह वीडियो घर-घर पहुंच गया। लोग बच्चे के हौसले पर चकित हैं, शाबाशी दे रहे हैं। उसकी समझ की भी दाद दे रहे हैं।
वह पुलिस वैन में बैठा है और एक पत्रकार ने पूछा कि आप जेल जा रहे हो। उसने पंजाबी में जवाब दिया। मैंने पटना के पंजाबी बिरादरी के पर्व अध्यक्ष सरदार गुरुदयाल सिंह से हिंदी अनुवाद करने का आग्रह किया। सरदार गुरुदयाल सिंह ने बताया कि बच्चा कह रहा है, हां, मैं जेल जा रहा हूं। कोई गल नहीं। अगर मैं जेल में मर गया, तो मेरी लाश लेने सिंघु बॉर्डर के किसान ही आएं।
बच्चे ने जो जवाब दिया, वह किसी ने उसे रटाया नहीं था। सवाल अचानक पूछा गया था। बच्चे को ऐसा कहने की प्रेरणा कहां से मिली और इसका किसान आंदोलन पर क्या असर पड़ेगा, उससे पहले उसका एक और वीडियो में कहा शब्द जरूर सुनिए।
चंडीगढ़ में भाजपा के एक कार्यक्रम के विरोध में किसान जुटे थे। भारी पुलिस बल जमा था। वह बच्चा भी किसान प्रदर्शनकारियों के साथ था। एक टीवी चैनलवाले ने अभिजोत से पूछा- सामने पुलिसवाले हैं। वे लाठीचार्ज कर सकते हैं। आपको डर नहीं लगता। जवाब में अभिजोत ने कहा-वे अपनी ड्यूटी कर रहे हैं। बच्चे का वीडियो वायरल हो गया। पुलिस से लोग सवाल करने लगे। शाम में बच्चे को पुलिस ने छोड़ दिया।
बच्चे के मां-पिता भी धन्य हैं, जिनसे उस बच्चे को ऐसी समझ और हौसला आया। ऐसे ही बच्चों से कोई देश महान बनता है। जिन घरों में दिन-रात पैसे की, स्वार्थ की बात होती हो, वहां अभिजोत नहीं बनते। एक अभिजोत ने किसान आंदोलन की नींव पहले से कहीं ज्यादा गहरी कर दी। अन्नदाता किसानों को पहले से और भी ज्यादा दृढ़ कर दिया। एक कथा है-
दुर्योधन के यहां दुर्वासा ऋषि दस हजार चेलों के साथ पहुंचे। उसने सभी को भोजन कराया। आशीर्वाद मांगते हुए उसने ऋषि से आग्रह किया कि पांडवों के यहां भी भोजन करने जाएं। भोजन करने तब जाएं, जब द्रौपदी भोजन कर चुकी हो। दुर्योधन जानता था कि सबसे अंत में दौपदी भोजन करती है। खाना नहीं मिलेने पर ऋषि उन्हें शाप देंगे और पांडवों का नाश हो जाएगा।
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दुर्वासा दस हजार चेलों के साथ दोपहर बाद पांडवों के यहां पहुंचे। युधिष्ठिर से कहा, हम स्नान करने जा रहे हैं। भोजन तैयार रखो। बड़ी मुश्किल हुई। द्रौपदी ने अंत में कृष्ण को पुकारा। तो कृष्ण आ पहुंचे। उन्होंने आते ही कहा, भोजन कराओ। द्रौपदी ने हाल बताया। कृष्ण ने कहा, बटलोही तो लाइए। बटलोही में साग का एक छोटा हिस्सा सटा था। उसे ही कृष्ण ने ग्रहण किया और कथा है कि तीनों लोक के पेट भर गए। अब युधिष्ठिर ऋषि को बुलाने गए, तो ऋषि ने कहा कि पेट इतना भर गया है कि हम आचमन भी नहीं कर सकते। वहीं उन्होंने आशीर्वाद दिया-जो तुमसे (पेट भरनेवाले से) दोस्ती करेगा, वह खुश रहेगा, जो दुश्मनी करेगा, उसका नाश हो जाएगा। समझिए, पेट तो किसान के अन्न से भरता है, उससे दुश्मनी का अंजाम क्या होगा?
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