SaatRang : UP में पिछड़े, ब्राह्मण चर्चा में, पीछे छूट गए दलित

SaatRang : उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में पिछड़े, ब्राह्मण चर्चा में हैं। किसानों की बात हो रही, लेकिन दलित दावेदारी कहीं दिख नहीं रही। क्यों?

कुमार अनिल

यूपी विधानसभा चुनाव में सबसे ज्यादा चर्चा इस बार पिछड़ी जातियों की हो रही है। रह-रहकर ब्राह्मणों की नाराजगी और उन्हें मनाने की खबरें आती रहती हैं। पिछड़ों के बाद ब्राह्मणों की चर्चा है। जातियों के अलावा वर्गों को देखें, तो सबसे ज्यादा चर्चा किसानों की है। इसके बाद बेरोजगार युवकों को महत्व दिया जा रहा है। यहां तक कि प्रियंका गांधी के #लड़की_हूं_लड़_सकती_हूं नारे के बाद प्रदेश में महिला आबादी भी चर्चा में है और हर दल महिलाओं को अपनी तरफ लाने के लिए कुछ-न-कुछ वादे कर रहा है, कार्यक्रम कर रहा है। लेकिन इस आंधी में यूपी के दलितों की आवाज लगता है गुम हो गई है।

कल भीम आर्मी के चंद्रशेखर आजाद की सपा प्रमुख अखिलेश के साथ वार्ता टूटने के बाद थोड़ी देर के लिए दलित चर्चा में आए, लेकिन शाम होते-होते फिर पिछड़ों की गोलबंदी पर बात टिक गई। चंद्रशेखर दलित राजनीति को यूपी की राजनीति के सतह पर लाने में कामयाब नहीं हुए। इसकी वजह खुद उनकी विश्वसनीयता में कमी है। वे कई दलों से संपर्क में रहे हैं और उनके बारे में कोई भी भविष्यवाणी करना मुश्किल है। इसीलिए उनके इस आरोप के बाद कि अखिलेश को दलितों की जरूरत नहीं है और दलितों के मान-सम्मान का सवाल उठाने के बाद भी यूपी की राजनीति की धार में कोई फर्क नहीं आया।

इस बार पता नहीं क्यों मायावती न पहले की तरह आक्रामक प्रचार करती दिख रही हैं और न ही वे दलित राजनीति पर फोकस कर पा रही हैं। कुछ विशेषज्ञ मान रहे हैं कि वे खुलकर दूसरे दलों की तरह रोज-रोज प्रचार नहीं करतीं और उनका काम जमीन पर चलता रहता है। लेकिन यह कहते-कहते तो यूपी चुनाव आज सपा बनाम भाजपा हो गया है। चुनाव में परसेप्शन (समझ) का बड़ा महत्व होता है और लोगों की समझ बन गई कि मुकाबला सपा बनाम भाजपा है। अगर सही परसेप्शन बना रहा, तो मायावती का अपनी खास जनाधार भी सौ फीसदी एकजुट कह पाएगा, इस पर सवाल है। अब तक माना जा रहा है कि मायावती का अपना आधार उनके साथ है, लेकिन राज्य के मुद्दों और खासकर दलित सवालों पर उनकी चुप्पी इस चुनाव में न सही, लेकिन भविष्य में उनके आधार को उनसे अलग कर सकता है। मायावती के समर्थक भी समर्थक हैं, कोई बंधुआ तो नहीं। कई रिपोर्ट आ रही है, जिसमें उनका अपना जनाधार थोड़ी संख्या में ही सही, सपा की तरफ जा रहा है।

प्रियंका गांधी और कांग्रेस ने दलित उत्पीड़न के सवाल को उठाने की कोशिश की है, लेकिन वह भी दलित सवाल को राजनीति के केंद्र में लाने में सफल नहीं रही है। अगर इस चुनाव में दलित दावेदारी पीछे हो गई, तो तय है कि भविष्य में दलितों की नए सिरे से गोलबंदी होगी।

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